बाबा और केन्द्र सरकार

विश्वास द्विवेदी

बाबा रामदेव ने हजारों स्त्री-पुरूषों की सशस्त्रा सेना बनाने की घोषणा के बाद सरकार को बाबा को घसीटने के लिये एक और बड़ा मुद्दा मिल गया है। बाबा रामदेव ने घोषणा की है कि वे हजारों स्त्राी-पुरूषों की एक सेना तैयार करेंगे जो शास्त्रा और शस्त्रा दोनो में पारंगत होंगी। अपने को बाबा कहलाने वाले इस शख्स की इस घोषणा से एक और तूपफान उठ खड़ा हुआ है। यदि ऐसा हो जाता है तो सरकार की चिन्ताओं में निश्चित ही और इजापफा हो जायेगा। अर्थात अहिंसात्मक आन्दोलन की राह पर चलने वाले बाबा की सेना से निबटने के लिये सरकार को भी कड़ा रूख अख्तियार करना होगा और आने वाले आन्दोलनों की तस्वीर बहुत ही भयानक हो सकती है। दिल्ली में भारी जन समूह के बींच आन्दोलन की राह में बाबा से कुछ तो चूक अवश्य हुई जिसके कारण योग का विपरीत प्रभाव पड़ा। बाबा रामदेव ने योग सिखाने के नाम पर जमीन का आवंटन कराया पिफर उसका उपयोग अन्य कार्यो के लिये किया तो बाबा रामदेव स्वयं भी कानून तोड़ने के लिये जिम्मेदार साबित होते हैं। बाबा के अनशन को समाप्त करने के लिये सरकार का रवैया भले ही जनता की दृष्टि में नकारात्मक रहा हो परन्तु एक बात तो तय है कि दस हजार की भीड़ को दिल्ली से बाहर निकालने में इतनी बड़ी जनहानी नहीं हुई जितनी कि हो सकती थी। सरकार ने जो भी कदम उठाये वे जनता की सुरक्षा की दृष्टि से भी उचित ही है क्योंकि वर्तमान परिस्थतियों पर नजर डालें तो आतंकवाद का डर चारों ओर अपने पैर पसारे खड़ा है। यदि इतने विशाल समुदाय के बींच कोई आतंकवादी अपने मकसद में कामयाब हो जाता तो स्थिति और भी भ्यानक हो सकती थी। सरकार की इसकी तारीपफ करने मे कोई गुरेज नहीं होना चाहिये।

बाबा के बयान कि ‘अगली बार रामलीला में रावण लीला होगी तब देखते हैं कि वहां कौन पीटा जाता है’ से उनकी हिन्सात्मक प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। बाबा रामदेव ने भारत को एक ओर तो )षि-भूमि बनाने, वर्णव्यवस्था को योग के माध्यम से पुर्नस्थापित करने और ऐसी अर्थव्यवस्था कायम करने की मंशा जाहिर की है जिसके अन्तर्गत एक रूपया एक डॉलर व एक पौण्ड के बराबर हो जायेगा। उनके पफार्मूले के अनुसार कर के नाम पर केवल 2 प्रतिशत की दर से लगने वाला ट्रांजक्शन टैक्स रहना चाहिये। बाकी सभी प्रत्यक्ष और परोक्ष करों को समाप्त कर देना चाहिये। दूसरी ओर इन बातों में कहीं न कहीं तर्क संगत तथ्यों की कमी जरूर दिखाई पड़ती है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि जो लोग बाबा को करोड़ो रूपये दान स्वरूप देते हैं वह पैसा क्या काला ध्न नहीं है। क्या बाबा उस पैसे का हिसाब दे पायेंगे जो उन्हें या उनकी ट्रस्ट को दान स्वरूप दिया गया है। क्योंकि आमतौर पर जो उद्योगपति अथवा कारापोरेट जगत से जुड़े लोग दान स्वरूप ध्न देते हैं क्या वह ध्न नं0 1 में दर्शाया गया है? सभी जानते हैं कि इस प्रार की संस्थाओं में दान में दी गई राशि को नं0 एक में दर्शाने के लिये ही आमतौर पर ऐसा किया जाता है। कहीं न कहीं वे उद्योगपति भी इससे प्रभावित अवश्य होंगे। इस प्रक्रिया से बाबा के कट्टर समर्थकों की परेशानियां भी बढ़ सकती हैं। बाबा के इन बयानों से विवेक पूर्ण तर्क शायद ही ढूंढे जा सकेगे। बाबा रामदेव ने अल्प समय में जो भी शोहरत पाई है वह योग गुरू के रूप में हीं मिली है।

भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा कर बाबा ने एक बड़े तबके का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाबी हांसिल की है। यही कारण है कि जब सरकार की ओर से बाबा के आन्दोलन का दमन करनें में जो पुलिसिया कार्रवाही हुई उसकी निन्दा देश ही नहीं विदेशों में भी जोरदार ढंग से हुई। और ये भी सच है कि इन सभी घटनाक्रमों ने बाबा के व्यक्तित्व को राष्ट्रीय जीवन का एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में जनता की अपेक्षाएं बढ़ना लाजमी है। और लोग उनके मुख से देश की गंभीर समस्याओं पर गंभीर और जिम्मेदाराना बयानों की उम्मीद करते हैं। सशस्त्रा सेना तैयार करने जैसी बाते उनके व्यक्तित्व को विपरीत दिशा में ले जा सकती है। ऐसी बातें लोगों को बाबा की ओर से न सिर्पफ मायूस करेंगी बल्कि वे सरकार को अपनी कार्रवाही सही ठहराने की दलील भी मुहैया करानी होगी। जो लोग प्रसिद्धि कम समय में अर्जित कर लेते हैं उनके लिये जवाबदेही बहुत आवश्यक हो जाती है। बाबा को यह नहीं भूलना चाहिये कि यदि वे देश की व्यवस्था को सशस्त्रा चुनौती देने की बात करेगे तो यह विवेक शील लोगों के गले इतनी आसानी से नहीं उतरने वाली और इसका उनके अभियान पर विपरीत असर भी पड़ सकता है।

1 COMMENT

  1. क्या अपने देश में लोगो को शास्त्र और शस्त्र का शिक्षा देना अपराध है क्या?,कम से कम ऐसी शिक्षा से किसी को फायदा हो या न हो लेकिन महिलायों को जरुर होगा,शस्त्र शिक्षा से महिलायों को एक बार फिर से दुर्गा का रूप मिलेगा जो की अपने हथियारों से दुष्टो का संहार करना शुरू कर देगी,शायद कांग्रेसियो को लक्ष्मीबाई जैसी महिला रास नहीं आती,उन्हें तो बस हमबिस्तर होने वाली महिलाओ का ही रूप अच्छा लगता है जैसे की उनके युवराज को कम्बोडिया की महिला…………..

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