महाराष्ट्र के बहाने हितों को साधने की राजनीति

सिद्धार्थ शंकर गौतम

केंद्र सरकार पर मंडराते सियासी संकट को अधिक गहरा करते हुए एनसीपी कोटे से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने इस्तीफ़ा दे दिया है और खबर है कि उनका इस्तीफ़ा मंजूर भी कर लिया गया है| हालांकि उनके समर्थन में अन्य मंत्रियों द्वारा दिए गए सामुहिक इस्तीफे नामंजूर हो गए हैं| महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले में अपना नाम आने और घोटाले की निष्पक्ष जांच को आधार बनाकर दिया गया उनका इस्तीफ़ा और उसके तुरंत बाद एनसीपी कोटे के मंत्रियों द्वारा इस्तीफे की पेशकश ने राज्य सरकार के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिए हैं| चूँकि राज्य सरकार में शामिल ३० मंत्रियों में से १५ एनसीपी कोटे के हैं तथा १० राज्यमंत्रियों में से ५ पर भी एनसीपी के विधायक हैं, ऐसे में उनका इस्तीफ़ा सौंपना और फिर नामंजूर होना राज्य सहित केंद्र में एनसीपी से संबंधों में रार बढ़ाएगा| हालांकि अजित पवार के इस्तीफे को दबाव की राजनीति के तहत भी देखा जा रहा है किन्तु यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका यह पैंतरा शरद पवार को बैकफुट पर लाने के लिए भी हो सकता है| दरअसल महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर मराठा क्षत्रप शरद पवार ने जबसे अपनी राजनीतिक विरासत अपनी पुत्री सुप्रिया को सौंपी और यशवंत राव चव्हान प्रतिष्ठान का अध्यक्ष बनाया, यह तभी तय हो गया था कि सुप्रिया के बढ़ते कद से नाखुश अजित कोई न कोई ऐसा कदम ज़रूर उठाएंगे जिससे राज्य में उनकी ताकत का अंदाजा हो| अजित काफी हद तक इसमें कामयाब भी रहे हैं और ऐसी खबरें आ रही हैं कि उनके समर्थन में २५ में से १२ निर्दलीय विधायक जो सरकार को समर्थन दे रहे हैं, अपना इस्तीफ़ा सौंपने को तैयार हैं| पवार सियासत से इतर अजित मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हान को भी आईना दिखाना चाहते हैं| दरअसल चव्हान उसी सतारा जनपद से हैं जो शरद पवार का गढ़ मानी जाती है| आदर्श घोटाले में कथित संलिप्तता को लेकर अशोक चव्हान के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए पृथ्वीराज ने अजित पर जमकर निशाना साधा| यहाँ तक कि मंत्रालय में लगी भीषण आग को लेकर भी अप्रत्यक्ष रूप से अजित को निशाने पर लिया गया था| फिर सिंचाई घोटाले पर श्वेत पत्र लाने की मांग को लेकर भी उनका अड़ियल रवैया अजित में असंतोष बढ़ा रहा था| अजित के इस्तीफे से अब पृथ्वीराज पर भ्रष्टाचार में लिप्त अपने अन्य मंत्रियों पर कार्रवाई करने या त्यागपत्र लेने का दबाव बढ़ गया है| यह भी हो सकता है कि संकट बढ़ता देख कांग्रेस हाईकमान राज्य की कमान किसी और को सौंप दे या अजित के भाग्य से भी झींका फूटने की आशंका है| कारण चाहे जो हों किन्तु अजित के दांव से कांग्रेस ज़रूर चारों खाने चित हो गई है|

 

फिर यह भी संभावना है कि अब तोलमोल की राजनीति में माहिर शरद पवार भले ही अपनी बेटी को राजनीतिक उत्तराधिकारी बना दें किन्तु भतीजे द्वारा हाथ आया यह मौका वह छोड़ेंगे नहीं| केंद्र में मंत्रीपद से लेकर राज्य की कमान तक का सौदा वह कांग्रेस से कर सकते हैं| यानी ममता के झटके के बाद अब कांग्रेस को शरद पवार से दो-दो हाथ करना होगा और राजनीतिक समझबूझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह दावे के साथ कह सकता है कि शरद का जला, हर दांव फूंक-फूंक कर चलता है| महाराष्ट्र के सियासी संकट के बीच द्रमुक ने भी अपने कोटे से केंद्र में मंत्रिपद लेने से इंकार कर दिया है| गौरतलब है कि द्रमुक के १८ सांसदों में से १ फिलहाल केंद्र में मंत्री है| करूणानिधि भी अपनी बेटी कनिमोझी की २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कथित संलिप्प्ता और कांग्रेस द्वारा साथ न दिए जाने से नाराज बताये जा रहे हैं| चूँकि केंद्र में व्यापक रूप से फेरबदल होना है और शरद पवार की उसमें महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता लिहाजा महाराष्ट्र के बहाने राजनीतिक हितों को साधने की पटकथा बखूबी लिखी जा रही है| महाराष्ट्र की राजनीति की थोड़ी बहुत भी समझ रखने वाला यह दावे के साथ कह सकता है कि राज्य में भले ही मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी का हो किन्तु ताकत के लिहाज से राकांपा, खासकर पवार गुट हमेशा कांग्रेस पर भारी पड़ता रहा है| याद कीजिए, कैसे अजित के दबाव के आगे झुकते हुए छगन भुजबल को उपमुख्यमंत्री के पद से हटाया गया था और अजित की ताजपोशी हुई थी| १३ साल पुराने कांग्रेस-राकांपा गठबंधन में यदि रार पड़ती दिखाई दे रही है तो उसमें पवार परिवार की भूमिका ही अधिक दिखाई पड़ती है| राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते पवार परिवार ने तो शिवसेना से भी गठबंधन कर उसे बीच भंवर में छोड़ दिया था तो कांग्रेस क्या चीज है? फिर शरद पवार एकमात्र राजनेता हैं जो कांग्रेस छोड़ने के बाद भी पार्टी में अपना प्रभुत्व और कद बरकरार रखने में सफल रहे हैं| अजित के बहाने शरद पवार को यह मौका कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से आत्मघाती सिद्ध हो सकता है| इस राजनीतिक नाटककी अभी अन्य कड़ियां खुलने के इंतजार में हैं, ऐसे में किसी भी पूर्वानुमान पर पुख्ता दावा करना ठीक नहीं होगा पर इतना तय है कि यह समय सच में कांग्रेस के सियासी भविष्य के हिसाब के अच्छा नहीं कहा जा सकता|

Previous articleनहीं पेड़ पे पैसा उगता
Next articleअन्ना-केजरीवाल मतभेद: बात दरअसल ये है…
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here