बलिष्ठ शरीर में मासूम दिल रखता है ‘बजरंगी भाईजान’

bajrangi

कलाकार: सलमान खान, करीना कपूर खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर्षाली मल्होत्रा, ओम पुरी, शरत सक्सेना
बैनर: इरोज इंटरनेशनल, सलमान खान फिल्म्स, कबीर खान फिल्म्स
निर्माता: सलमा खान, सलमान खान, रॉकलाइन वेंकटेश
निर्देशक: कबीर खान
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती
स्टार: 4
वह बचपन में संघ की शाखा जाता है। पाकिस्तान जाकर जय श्री राम से लोगों को नमस्कार करता है। वह हनुमान जी का इतना बड़ा भक्त है कि सब उसे बजरंगी बुलाते हैं। पहलवानी में निपुण होने के बावजूद उसका दिल बच्चों की तरह मासूम है। शादीशुदा नहीं है लेकिन एक बाप से बढ़कर फ़र्ज़ निभाता है। जी हां, ये ‘बजरंगी भाईजान’ है जो आपके दिलों को छूते हुए आपकी आंखों को नम कर देता है। सलमान खान (बजरंगी) की मासूमियत इस फिल्म से अरसे बाद लौटी है। ‘बजरंगी भाईजान’ सलमान की अन्य मसाला फिल्मों की तरह नहीं है। यहां न वो अपनी शर्ट उतारकर मांसल देह दिखाते हैं और न ही दस-पचास गुंडों को अकेले धोकर हीरोइन को बचाते हैं। वे तो एक 6 साल की अबोध बच्ची के प्रेम में इतने निश्छल हो चुके हैं कि सरहदों पार की नफरत, आग और षड़यंत्र की परवाह किए बिना उसे उसके बिछड़े परिवार से मिलाने निकल पड़ते हैं। सलमान के करियर में यह फिल्म निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगी।
कहानी: हिन्दुस्थान-पाकिस्तान के आपसी संबंधों, तनाव एवं संस्कृति को प्रदर्शित करती फिल्में बनाना फिल्मकारों का शगल रहा है। राजकपूर की ‘हिना’ और अनिल शर्मा की ‘ग़दर’ दोनों देशों के संबंधों के नए आयामों को छूती फिल्में थीं, किन्तु कबीर खान की ‘बजरंगी भाईजान’ इन सबसे जुदा है। फिल्म यह साबित करने की कोशिश है कि सरहदों की नफरत इंसानियत से बड़ी नहीं है। फिल्म का नायक जब पाकिस्तान की एक अबोध गूंगी बच्ची मुन्नी (हर्षाली मल्होत्रा) जोकि नाटकीय घटनाक्रम के तहत अपनी मां से बिछड़कर हिन्दुस्थान आ पहुंचती है; को छोड़ने अवैध रूप से पाकिस्तान जाता है तो असंभव होते हुए भी उसका प्रयास तालियों का हकदार बनता है। यहां तारीफ करना होगी कबीर खान की कि उन्होंने बजाये नफरत के, पाकिस्तानी फौजियों को भी मानवता की ऐसी चादर उढ़ाई है जो पडोसी मुल्क की अधिकांश जनता की हकीकत है। पूरी फिल्म हालांकि सलमान और हर्षाली के इर्द-गिर्द ही घूमती है मगर अन्य किरदारों का साथ कहानी को रोचक बनाने के साथ ही सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वाकई दोनों देशों के बीच नफरत की खाई इतनी गहरी है कि उनका मिलन असंभव है? फिल्म के बहाने यह जताने की कोशिश भी की गई है कि यदि आने वाली पीढ़ी चाहे तो नफरतों के दाग को धोया जा सकता है। बस ज़रूरत है तो ‘बजरंगी’ जैसों की जिनके लिए उनका जीवन आदर्शों से भरा हो। लेखक वी. विजयेन्द्र प्रसाद (जिन्होंने बाहुबली की कहानी भी लिखी है) सलीम-जावेद, यश चोपड़ा जैसे दिग्गजों की श्रेणी में आ गए हैं जो सीधे दर्शकों के दिलों पर राज करते हैं। ‘बजरंगी भाईजान’ की कहानी को उन्होंने इस तरह से लिखा है कि परदे पर कहीं भी नफरत नहीं दिखती।
अभिनय: पूरी फिल्म में यकीनन सलमान खान छाए हुए हैं किन्तु पाकिस्तानी पत्रकार चांद के रोल में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कोई जवाब नहीं है। इंटरवल के बाद वे जब भी परदे पर दिखे हैं, सलमान को मात दी है। मुझे आश्चर्य हुआ कि सलमान की मौजूदगी के बावजूद नवाज़ दर्शकों की तालियों और सीटियों के हकदार बने। नवाज़ सिनेमा के उन चंद कलाकारों में से एक हैं जो अपनी अदाकारी से दिल जीत लेते हैं। फिल्म में करीना कपूर खान सीधी-साधी प्रेमिका के किरदार में हैं जो सलमान की ताकत बनती हैं। हालांकि उनके हिस्से जो आया उन्होंने वही निभा दिया। ओम पुरी 15 मिनट के किरदार में भी प्रभावित करते हैं। शरत सक्सेना, करीना के पिता के रोल में जमे हैं। हालांकि इनमें से कोई भी फिल्म का असली नायक नहीं है। फिल्म की असली नायक हैं हर्षाली मल्होत्रा। हर्षाली ने अपनी मासूमियत से सबका दिल जीत लिया है। एक न बोल सकने वाली अबोध बच्ची के किरदार को उन्होंने इतने जीवंत तरीके से निभाया है कि वे दर्शकों की जान बन जाती हैं। बिना एक शब्द बोले वे आंखों से सब बयां कर गईं। इस साल का अभिनय का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार उन्हें मिलना चाहिए क्योंकि इतनी कम उम्र में इतना जीवंत अभिनय हर किसी के बस की बात नहीं होती।

निर्देशन: कबीर खान के चित्रण को परदे पर देखना हमेशा सुखद अनुभूति होता है। उनकी ‘काबुल एक्सप्रेस’ हो या ‘एक था टाइगर’ या न्यूयॉर्क’ सभी में कहीं न कहीं दो मुल्कों के संबंधों को नयापन मिलता है। ‘बजरंगी भाईजान’ से उन्हें पूर्णता प्राप्त हुई है। उनका निर्देशक साधा हुआ है। हालांकि कई वाजिब खामियां हैं किन्तु परदे के सम्मोहन में वे खो सी जाती हैं। कई सवाल भी हैं जिनका जवाब कबीर खान से पूछा जाना चाहिए था मसलन अवैध रूप से पाकिस्तान जाना कैसे संभव है, बच्ची को उसके माता-पिता ने क्यों नहीं ढूंढा, उच्चायोग इस मामले में क्या प्रतिक्रिया देता इत्यादि किन्तु फिल्म के विषय और उसके आदर्शों को देखते हुए कबीर को बख़्श देना उचित होगा।
संगीत: ‘सेल्फ़ी ले ले रे’ गाना अच्छा बन पड़ा है जो सलमान की ‘चुलबुल’ छवि के अनुकूल है। ‘भर दो झोली’ आपकी आंखें नम कर सकता है। अदनान सामी ने लंबे अरसे बाद बेहतरीन दिया है। ‘तू जो मिला’ का अच्छा उपयोग हुआ है। प्रीतम चक्रवर्ती ने सलमान स्टाइल का संगीत दिया है जो उनके फैंस को निराश नहीं करेगा।
क्यों देखें: न देखने का कोई वाजिब कारण नहीं है और देखने की सैकड़ों वजहें हैं। ‘बजरंगी भाईजान’ सलमान खान का हिन्दुस्थान-पाकिस्तान को ईद का मीठा तोहफा है जिसका स्वाद लेना तो बनता है बॉस।

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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