घुसपैठ को आम तौर पर बड़ी समस्या नहीं माना जाता और न ही इसके बारें में गंभीरता से सोचा जाता है। असम समेत पूर्वोत्तर भारत में सारी फसाद की जड़ हैं – बांग्लादेशी घुसपैठ। पूर्वी भारत के राज्यों की सीमा सुरक्षा की कमजोरी और वोट बैंक की राजनीति के कारण हो रही; अवैध घुसपैठ यहां की सुरक्षा के साथ ही सांस्कृतिक, समाजिक, आर्थिक एव राजनीतिक संकट बनती जा रही है।पिछले तीस सालों से जारी घुसपैठ ने अनेक राज्यों में जन – संख्या के अनुपात को बिगाड़ कर वहां के मूल निवासियों के समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। ये घुसपैठिये असम, बंगाल, त्रिपुरा व बिहार में ही सीमित नहीं बल्कि दिल्ली, राजस्थान, मुम्बई, गुजरात व हैदराबाद तक जा पहुंचे हैं। वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 3 क़रोड़ बतायी जाती है। असम के राज्यपाल ने केंद्र को सौंपी एक रपट में कहा है कि हर दिन 6 हजार बांग्लादेशी भारत में प्रवेश करते हैं। साथ ही सं. रा. सं. की एक सर्वे में बांग्लादेश से 1 करोड़ नागरिकों को लापता बताया गया है। सीमा से लगे 4600 किमी के भारतीय इलाकों में अप्रत्याशित जनसंख्या वृध्दि इस बात को पुख्ता करती है कि ये लोग भारत में ही घुसे हैं। इन घुसपैठियों की बढ़ती तादाद की वज़ह से असम, बिहार एव बंगाल के अनेक जिलों में बांगलादेशी मुसलमानों की बहुलता हो गई है अर्थात् ये राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। और यही से शुरू होता है वोट बैंक की राजनीति।
इन अवैध घुसपैठियों को राशनकार्ड देकर जमीन का पट्टा व मतदाता सूची में नाम शामिल कर राजनीतिक दल देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करती आ रही है। आज इन बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा लूट, हत्या, तस्करी, जाली नोट व नशीली दवाओं के कारोबार समेत आतंकी गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है। प्राकृतिक रुप से समृध्द पूर्वोत्तर आतंक का गढ़ बनता जा रहा है। आतंक के सौदागरों और आइ. एस. आइ. जैसे संगठनों के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो रहा हैं। इस उपकरण को राजनीतिक, समाजिक, और आर्थिक सभी मुद्दों पर भारत के विरुध्द इस्तेमाल किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के सहारे हासिल राजनीतिक ताकत, अपराध और आतंकवाद के जोर पर एक सुनियोजित योजना के तहत असम के 11 बंगाल के 9 बिहार के 6 एवं झारखंड के 3 जिलों को मिलाकर ग्रेटर बांग्लादेश बनाने का काम किया जा रहा है। प्रख्यात लेखक जयदीप सैकिया की मानें तो इस क्षेत्र में बांग्लादेश – म्यांमार के कुछ भाग और उत्तर-पूर्वी भारत को सम्मिलित कर एक इस्लामिक राज्य की कल्पना की जा रही है। कुल मिला कर भारत को पुन: विभाजित करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है परन्तु सरकार की उपेक्षा से यह मसला ठंडे बस्ते में ही पड़ा दिखता है। सत्ता की दौड़ में वोट की सियासत का ही असर है; वर्षों के शासन काल में कांग्रेस ने इस दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति से काम नहीं किया। हाँ आइ.एम.डी.टी एक्ट जैसे कानून के सहारे उनको यहां बसाने में मदद अवश्य पहुंचायी गयी! बांग्लादेशी आतंकियों को भगाने के बजाय घर-जंवाइ बनाने की संरक्षणात्मक तुष्टीकरण की नीति 1977 से ही जारी है। केंद्र की कांग्रेस सरकार से लेकर राज्य की असम गण परिषद सरकार; जो इसी मसले को लेकर सत्ता में आई, का रवैया भी एक सा रहा है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से एक बात तो साफहै कि कुर्सी के आगे देश कुछ भी नहीं ।
बहरहाल आगामी लोकसभा चुनावों में घुसपैठ का मुद्दा नया रंग ला सकता है। देश की एकता,अखंडता एवं स्थानीय नागरिकों की आर्थिक और समाजिक सरोकारों से जुड़े इस मामले में बरती जा रही उदासीनता के गंभीर परिणाम हमें भविष्य में भुगतने होंगे।
– जयराम चौधरी
बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
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