पाकिस्तान को लेकर भारत की कूटनीति का दिवालियापन

– कुलदीप चंद अग्निहोत्री

पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री श्री एस एम कृष्णा पाकिस्तान के दौरे पर गए थे। कहा जा रहा है कि कृष्णा भारत और पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने के लिए वहां के विदेश मंत्री से बातचीत करने गए थे। जिस उद्वेश्य को लेकर कृष्णा पाकिस्तान गए थे, उसके बारे में दो राय नहीं हो सकती दोनों देशों के संबंध सुधरने ही चाहिए। कृष्णा अपने इस दौरे में उन कारणों की खोज भी कर रहे थे जिनके कारण दोनों देशों के संबंध दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे है। कृष्णा को शायद यह विश्वास था कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मोहम्मद कुरैशी से आमने-सामने बातचीत करने के बाद दोनों देशों के संबंध ठीक रास्ते पर चल पडेंगे।

वैसे तो भारत-पाकिस्तान के संबंध खराब क्यों हैं? यह कोई इतना बडा रहस्य नहीं है जिसके लिए कृष्णा को इस्लामाबाद जाकर गहरा शोध कार्य करना पडे और कुरैशी के साथ घंटों मथापच्ची करानी पडे। पाकिस्तान अपने जन्म से ही भारत को शत्रु देश मानता रहा है और पिछल कुछ दशकों से उसने भारत के खिलाफ आंतकवाद के माध्यम से छद्म युद्व छेड रखा है। ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है कि एस एम कृष्णा इस छोटे से साधारण तथ्य को न जानते हों। वे घुटे हुए राजनीतिज्ञ हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। महाराष्टन् के राज्यपाल भी रहे हैं। इसलिए कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए, इस को भी भलिभांति जानते है। राजनीति और कूटनीति में यही अंतर है। राजनीति में बोलकर कार्यसिद्धि होती है और कूटनीति में अनेक बार मौन रहकर ज्यादा कार्यसिद्धि होती है।

कूटनीति में बोलने के समय की भी बहुत ज्यादा महत्ताा होती है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी शयद इस रहस्य को ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। इस्लामाबाद में प्रेस कांफ्रेश में कुरैशी जिस प्रकार भारत के खिलाफ बोले और बोलते समय जिस प्रकार की भागभंगिंमा उन्होंने बनाई वह उन लोगों के लिए आश्चर्यजनक हो सकती है जो पाकिस्तान की मानसिकता को नहीं समझते लेकिन जो इससे बखूबी वाकिफ हैं वे जानते हैं कि यह सारा शोर-शराबा पाकिस्तान की भारत विरोधी रणनीति का ही हिस्सा है। परंतु आश्चर्य इस बात पर हुआ कि एस एम कृष्णा इन सब बातों पर मौन धारक बने रहे। कुरैशी ने कहा था कि भारत-पाक संबंध पिल्लई जैसे लोगों के कारण ही बिगड रहे हैं। रिकार्ड के लिए बता दिया जाए कि पिल्लई भारत सरकार के विदेश सचिव हैं और उन्होंने ये कहा था कि हेडली के ताजा बयानों से यह सिद्व हो गया है कि मुंबई पर आंतकवादियों के माध्यम से जो आक्रमण हुआ था उसके पिछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। जाहिर है कि पिल्लई एक स्थापित तथ्य कि ही चर्चा कर रहे थे कुरैशी इससे आग बबूला होते यह समझा जा सकता है। लेकिन एस एम कृष्णा इस पर मौन क्यों रह गए? यह रहस्य किसी की समझ में नहीं आ रहा था।

अब कृष्णा ने उस रहस्य पर से भी पर्दा उठा दिया है। बकौल कृष्णा भारत-पाक के बीच इस सुखद वर्ता का दुखद अंत पिल्लई के बयानों के कारण ही हुआ है। कृष्णा के अनुसा पिल्लई को पाकिस्तान के खिलाफ इस तरह की बात नहीं कहना चाहिए थी। कृष्णा के इस बयान का क्या अर्थ है? क्या अब भारत सरकार ने मानना शुरू कर दिया है कि मुंबई पर आक्रमण के पिछे पाकिस्तान का हाथ नहीं था? क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि ज्यो-ज्यो इस आक्रमण के पिछे पाकिस्तानी सलिंप्त्ताा के प्रमाण मिलते जा रहे हैं त्यों-त्यों भारत सरकार अपने पैर पिछे घसीटने लगी है। लेकिन इस व्याख्या को तो कोई भारत का विरोधी भी स्वीकार नही करेगा। तब प्रश्न है कि आंतकवाद और पिल्लई को लेकर कृष्णा ने भारत में आकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री की हां में हां क्यों मिलायी? इस का खुलासा भी कृष्णा ने स्वंय ही किया। उनके मुताबिक पिल्लई ने जो कहा वे असत्य नहीं है लेकिन पिल्लई ने अपनी बात कहने के लिए जो समय चुना वह गलत था। कृष्णा चाहते थे जब दोनों देशों के मध्य में बातचीत चल रही थी तो विदेश सचिव पिल्लई को कोई ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी जिससे पाकिस्तान नाराज हो जाता।

कृष्णा के बयान का यह हिस्सा अत्यंत महत्वपूर्ण है और जरूरी है कि इसके पिछे छुपे हुए अर्थों की चर्चा की जाए। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि जब भारत और पाकिस्तान की बातचीत चल रही हो तो पाकिस्तान को खुश रखना जरूरी है चाहे उसके लिए झूठ और फरेब का ही सहारा क्यों न लेना पडे? भारत सरकार ने सीबीआई की सहायता से मीडिया के एक वर्ग को विश्वास में लेकर राष्टन्ीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ ठीक उसी समय अभियान चलाया जिस समय भारत-पाकिस्तान की वार्ता चल रही थी। सरकार ने हिंदू आंतकवाद का शगूफा छोडा और तोते-बिल्ली की कहानी सुनाकर यह सिध्दा करने की कोशिश कि की संघ के कुछ लोग भी आंतकवाद से जुडे हुए हैं। क्या हिंदू आंतकवाद का यह शगूफा कृष्णा की रणनीति के मुताबिक केवल पाकिस्तान को प्रसन्न करने के लिए ही छोडा जा रहा था? जिस प्रकार कृष्णा की दृष्टि में पिल्लई द्वारा पाकिस्तानी आंतकवाद के खिलाफ दिए गए मौके का अत्यंत महत्व है उसी प्रकार भारत सरकार द्वारा संघ के खिलाफ चलाए गए अभियान और हिंदू आंतकवाद की गढी गयी अवधारणा, अवसर महत्वपूर्ण हो जाता है। क्या यह केवल पाकिस्तान को प्रसन्न रखने की एक कूटनीति साजिश थी, इसकी जांच की जानी चाहिए।

5 COMMENTS

  1. अग्निहोत्री जी आपकी टिपण्णी काफी हद तक सत्य के करीब जान पड़ती है. कृष्णा कूटनीति के मामले में शुन्य है. भारत के पारंपरिक स्टैंड से हटकर पिल्लई पर दोष मध् दिया. कृष्णा इस बात के लिए असभ्यता के हद तक चला गया. मुख्यमंत्री बनना आसन है क्योकिं इसके लिए किसी योग्यता की जरुरत नहीं है. लेकिन शिष्टाचार कठिन है और कूटनीति और भी कठिन क्योंकि इसके लिए व्यक्ति का बुद्धिमान और अनुभवी होना जरुरी होता है. कृष्णा जैसे व्यक्ति मंत्री पद के लिए उपयुक्त नहीं है. हारे हुए नेता कहीं के भी नहीं रहते वह मुख्यमंत्री पद से शर्मनाक हार से राज्य की राजनीती से बाहर हुआ. आज उसके बाद कांग्रेस राज्य में लगातार हार रही है. इसी श्रेणी में दिग्विजय सिंह आता है. ऐसे नेताओं को जिम्मेदारी का पद नहीं दिया जाना चाहिए. कृष्णा ने अपनी असभ्यता से सारे देश को शर्मिंदा किया.

  2. आलेख में उसका केन्द्रीय बिंदु सिरे से गायब है .एस एम् कृष्णा पाकिस्तान क्यों गए ?किसकी प्रेरणा थी ?परदे के पीछे अंतरराष्ट्रीय ताकतों की ;खास तौर से अमेरिका का दवाव कितना था ?चीन की कूटनीतिक बढ़त का खतरा कितना था ?कश्मीर की दावाग्नि का ताप कितना था ?यह सब अन्योंनाश्रित है .इसको जाने बिना कृष्णा की भूमिका और पिल्लई की भूमिका को नहीं समझा जा सकता .इस सम्वेदनशील विषय पर देश के सर्वोच्च नेत्रत्व -पक्ष -विपक्ष में आम तौर पर सहमती हुआ करती है ;यह आवश्यक नहीं की विदेश नीति और ख़ास तौर से पाकिस्तान के बरक्स हम अपनी ताकत बढाने के बजाय कमजोरियों कोudaghatit मीडिया के मार्फ़त दुनिया भर में जग हंसाई कराएं .

  3. आलेख में उसका केन्द्रीय बिंदु सिरे से गायब है .एस एम् कृष्णा पाकिस्तान क्यों गए ?किसकी प्रेरणा थी ?परदे के पीछे अंतरराष्ट्रीय ताकतों की ;खास तौर से अमेरिका का दवाव कितना था ?चीन की कूटनीतिक बढ़त का खतरा कितना था ?कश्मीर की दावाग्नि का ताप कितना था ?यह सब अन्योंनाश्रित है .इसको जाने बिना कृष्णा की भूमिका और पिल्लई की भूमिका को नहीं समझा जा सकता .इस सम्वेदनशील विषय पर देश के सर्वोच्च नेत्रत्व -पक्ष -विपक्ष में आम तौर पर सहमती हुआ करती है ;यह आवश्यक नहीं की विदेश नीति और ख़ास तौर से पाकिस्तान के बरक्स हम अपनी ताकत बढाने के बजाय कमजोरियों को मीडिया के मार्फ़त दुनिया भर में जग हंसाई कराएं .

  4. सच है -पर क्या करें मजबूरी है .
    पाकिस्तान का घाव ;नाशूरी है .
    चीर फाड़ बहुत जरुरी है .
    लोग कहेंगे की ये तो हिंसा है .
    वतन के दुश्मनों का खात्मा जरुरी है
    इसीलिए इस देश में भाईचारा जरुरी है .

  5. धन्यवाद डां अग्निहोत्री जी।
    पिछले दिनों जो वाक्या हुआ वाकई भारत देश के लिए बहुत बड़े शर्म की बात है कि हमारे देश के प्रतिनिधी का इतना बड़ो अपमान हो और हम कुछ कह भी न सकें।

    वैसे बिच्छु को कितना भी चुन्बन देने के कोशिश करो वह अपनी पूंछ से जहर का डंक मारेगा। यह उसकी मूल प्रवृत्ति है। फिर हम क्यों पकिस्तान से बातचीत की उम्मीद लगाऐ बैठे हैं। होना वही है ाक के तीन पात। वह अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आयेगा और हम सिद्ध पुरूष की तरह मौन व्रत करके बैठे रहेंगे। आज काश्मीर में जो हो रहा है शत प्रतिशत पाकिस्तान का उसमें परोक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्ष हाथ है।

    कारगिल युद्व में हमारे देश का 40 से 50 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। क्या एक बार भी हमारे किसी नेता ने यह रकम पकिस्तान से लेने के लिए बात उठाई हैं। हां अगर अमेरिका, चीन या अन्य कोई देश होता तो इससे कई गुना ज्यादा रकम वसूल कर लेता।

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