लड़ाई इस तंत्र से है

1
150

सुशान्‍त सिंघल

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस इस समय अभूतपूर्व परिस्थितियों से दो चार हो रही है। कांग्रेस ने आज़ादी के बाद से ही भ्रष्टाचार के मामले में “जियो और जीने दो” की नीति अपनाई है जिसके अन्तर्गत तुम भी देश को लूटो और हमें भी लूटने दो” के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया गया। प्रयासपूर्वक एक ऐसा तंत्र विकसित किया गया जिसमें देश में भ्रष्टाचार को प्रश्रय मिले, सारे भ्रष्टाचारी सुख से रहें। हज़ार रुपये सरकार को जुर्माना देने के बजाय दो सौ रुपये इंस्पेक्टर को दे दो । इंस्पेक्टर भी खुश, आप भी खुश। बिजली का बिल दस हज़ार रुपये महीना आता है? कोई दिक्कत नहीं, मीटर रीडर को हज़ार रुपये महीना देते रहो, वह मीटर को उल्टा घुमा देगा। आप भी खुश, मीटर रीडर भी खुश। रिश्वत लेते-देते पकड़े गये ? कोई दिक्कत नहीं, रिश्वत दे कर छूट जाओ। यदि सरकारी दफ्तर का चपरासी या चौराहे पर खड़ा पुलिसकर्मी सौ – पचास रुपये जेब में डाल कर खुश हो लेता है तो सरकार के लिपिक को पांच सौ से पांच हज़ार तक की रिश्वत चाहिये। अधिकारियों के स्तर का काम हो कुछ लाख रुपये चाहियें । मंत्री की सिफारिश की जरूरत हो तो वहां करोड़ों रुपये देने होते हैं तब जाकर काम होता है। यदि किसी कार्पोरेट को सरकार की नीतियों में अपने अनुकूल परिवर्तन चाहिये या मंत्रियों से कोई विशेष लाइसेंस चाहिये तो मामला अरबों रुपये के लेन-देन तक पहुंच जाता है। टैक्स से बचना हो तो जितनी बड़ी रिश्वत, उतनी अधिक छूट।

स्वाभाविक ही है कि जिनको अपने गलत काम कराने होते हैं, उन सबको यह भ्रष्टाचार सुहाता है और यह बहुत सुविधाजनक प्रतीत होता है। खास तौर पर यदि गलत काम कराना हो तो रिश्वत देने में लोगों को बड़ी खुशी होती है पर सही काम के लिये भी, वृद्धावस्था पेंशन लेने के लिये भी रिश्वत देनी पड़ती है। देश में करोड़ों लोग ऐसे ही हैं जो तात्विक रूप से रिश्वत लेना देना बुरा मानते हैं पर फिर भी रिश्वत लेते या देते हैं। एक आम आदमी पूरी व्यवस्था से नहीं लड़ पाता। हर जगह विरोध का झंडा उठा कर नहीं चल सकता। सत्यकाम ऐसे ही ईमानदार अधिकारी की करुण कहानी थी जो अपनी ईमानदारी के चक्कर में दर-दर का भिखारी हो गया, हर जगह से उसे दुत्कारा गया, उसका अपना परिवार उसे गलत मानने लगा, उसका विरोधी हो गया। अतः स्थिति ये हो गई है कि जनता ने भी रिश्वत को अपनी ज़िन्दगी का अनिवार्य हिस्सा मान कर इसी में खुश रहना सीख लिया है। अक्सर लोग कहते भी हैं, ईमानदार अफसर हो तो हमारे काम रुक जाते हैं, इससे लाख बेहतर है कि अफसर रिश्वत भले ही ले ले, पर काम तो कर दे। सरकारी विभागों में ईमानदार व्यक्ति का सम्मानपूर्वक रहना कठिन से कठिनतर होता गया है। उदाहरण के लिये, बैंकों में यदि रीजनल मैनेजर और सहायक प्रबन्धक, दोनों ही रिश्वतखोर हों और उनके बीच में कहीं ईमानदार शाखा प्रबन्धक फंस गया तो उसका डिप्रेशन का शिकार हो जाना लाज़मी है। दोनों ही तरफ से उसकी मौत है। न तो बास खुश और न ही मातहत खुश। दोनों की निगाह में वह खलनायक बनता है, मूर्ख कहलाता है। अन्य विभागों में भी, रिश्वतखोरों के बीच में कहीं कोई इक्का दुक्का ईमानदार अफसर फंस जाये तो उसे इतना हैरान – परेशान किया जायेगा कि वह तौबा बोल जाये। हर दूसरे महीने उसका ट्रांस्फर। अपने आप रास्ते पर आ जायेगा या इस्तीफा देकर घर बैठ जायेगा।

कुछ लोगों को यह भी लगता है कि इस नीति में भी बुराई क्या है? काम हो रहा है, जनता, अधिकारी और मंत्री – सब अमीर होते चले जा रहे हैं। फिर परेशानी किसे है? परन्तु इसी नीति पर चलते – चलते विभिन्न सरकारी उपक्रम और सरकारी बैंक कंगाल होते चले गये हैं। क्योंकि बाड़ को ही खेत को खाने की छूट दे दी गई है। दूसरी ओर, बड़े – बड़े बैंक अधिकारी और ऋण लेकर वापिस न करने वाले व्यापारी, उद्यमी करोड़पति – अरबपति होते चले गये। दूसरी ओर, जो व्यक्ति ईमानदारी का जीवन जीना चाहता है, भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करना चाहता, वह हर तरफ से पिसता है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार देश में ४७ प्रतिशत से ७० प्रतिशत तक जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रही है। उनको रोजगार नहीं है, नये रोजगार सृजित करने के लिये सरकार के पास पैसे नहीं होते हैं। बैंक ऋण पर ब्याज दर इतनी अधिक है कि गरीब आदमी उस ब्याज को चुका नहीं सकता अतः आत्महत्या के लिये विवश होता है। हमारा देश गरीब देशों की श्रेणी में शामिल है। देश में सड़कें टूटी पड़ी हैं, रेलगाड़ियां दुर्घटनाग्रस्त होती रहती हैं क्योंकि तकनीकी रूप से उनको उन्नत करने के लिये रेलवे पैसे का अभाव बताती है। सेना में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार फैल रहा है, न्यायपालिका भी भ्रष्टाचार से दूर नहीं रह गई है। भ्रष्टाचार रूपी यह दीमक देश को अंदर ही अंदर खोखला और असुरक्षित करती चली जा रही है। भ्रष्टाचार से अर्जित सारी काली कमाई ऐसे देशों में भेजी जाती है, जो टैक्स हैवन कहलाते हैं। स्विस बैंक भी अपने ग्राहकों के नाम पते व खातों की जानकारी पूरी तरह से गुप्त रखते हैं अतः वह भी मंत्रियों और उच्च अधिकारियों के मध्य बहुत लोकप्रिय हैं। इन बैंकों में भारतीयों का जितना काला धन जमा है, वह दुनिया के किसी भी अन्य देश से कहीं अधिक है।

सुविधाशुल्क के रूप में देश में जितनी भी राशि एकत्र होती है वह सब काली कमाई होने के कारण देश के किसी भी काम नहीं आ पा रही है। यदि देश से बाहर भेजी जा रही इस काली कमाई को सरकारी खज़ाने में जमा किया जा सके, जैसा कि बाबा रामदेव की मांग है, तो देश की किस्मत संवरते देर नहीं लगेगी। यह राशि इतनी बड़ी है कि आर्थिक संसाधनों की कमी का रोना रोते रहने वाली हमारी केन्द्र व राज्य सरकारें देश के लिये न जाने कितनी परियोजनाओं को सफलता पूर्वक पूरा कर सकेंगी। सालों साल देश को बिना घाटे के बजट दिये जा सकेंगे । हमारे देश पर जितना भी विदेशी ऋण है, उसे पूरी तरह से चुकता किया जा सकेगा और वर्ल्ड बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की दादागिरी के कारण देश को जिन आत्मघाती नीतियों को झेलना पड़ रहा है, उनसे भी मुक्ति मिल सकेगी।

ऐसे में अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव जैसे लोग, जो कांग्रेस की इस भ्रष्टाचार-पोषक नीतियों में परिवर्तन की मांग कर रहे हैं, देश की जनता के लिये आशा की किरण बन कर सामने आये हैं। पर दूसरी ओर, कांग्रेस द्वारा पोषित और पल्लवित इस तंत्र से लाभ उठाने वालों की दृष्टि में वह सबसे बड़े खलनायक बन गये है। इनके द्वारा चलाये जा रहे अभियान को असफल करना उन सब के लिये जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। कांग्रेस को किसी भी भ्रष्टाचारी से कोई गुरेज़ नहीं है । उसका तो साफ-साफ कहना है कि देश को जितना लूट सकते हो, लूट लो पर इतना ध्यान रखो कि पकड़े मत जाओ। अगर पकड़े गये तो एक सीमा तक ही बचाने की कोशिश की जा सकती है, आगे तुम्हारी किस्मत है। कांग्रेस की दृष्टि में भ्रष्ट होना कतई बुरा नहीं है, बुरा है भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाना। ईमानदार होना सबसे बुरी आदत है क्यों कि ईमानदार व्यक्ति न तो खुद खाता है और न ही किसी और को खाने देता है। ऐसे लोग कांग्रेस की निगाह में खरपतवार के सदृश हैं जिनको कांग्रेस जड़ से उखाड़ कर फेंकती चली आई है। कई लोग यह भी कहते दिखाई देते हैं कि भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे तक व्याप्त है, इसे दूर नहीं किया जा सकता। परन्तु ये लोग एक सिद्धान्त भूल जाते हैं – गरीबी दूर करनी हो तो समाज के सबसे नीचे के पायदान पर बैठे व्यक्ति से आरंभ करो और यदि भ्रष्टाचार दूर करना है तो सबसे ऊपर बैठे व्यक्ति से शुरुआत करनी होगी। यदि ऊपर बैठे व्यक्ति ईमानदार हों तो नीचे वालों तक सही संदेश जाता है।

राजीव गांधी का यह कथन बहुत प्रसिद्ध हुआ था कि सरकार द्वारा जनता के हित में यदि १ रुपया खर्च किया जाता है तो सिर्फ १५ पैसे जनता तक पहुंचते हैं, पचासी पैसे रास्ते में गायब हो जाते हैं। यदि इसका उलट हो सके अर्थात् १५ पैसे खर्च हो जायें किन्तु पचासी पैसे जनता तक पहुंचने लगें तो देश में कितनी खुशहाली आ सकती है।जब हमारा देश आज़ाद हुआ था तो देश पर इस पैसे का भी विदेशी कर्ज़ नहीं था पर अब देश के हर नागरिक के हिस्से में लगभग २४००० रुपये का विदेशी कर्ज़ा बताया जाता है। यदि इस कर्ज़े से मुक्ति मिल सके, पूरे देश में रेल लाइनों का, सड़कों का जाल बिछाया जा सके, तीस लाख से भी अधिक अस्पताल खोले जा सकें तो देशवासियों का कितना भला होगा? पर इतना अवश्य है कि बड़े से बड़े सम्राटों को भी लज्जित कर सकने लायक जीवन शैली जीवन जी रहे हमारे उच्च अधिकारी और मंत्री इस भ्रष्ट व्यवस्था को बचाये रखने के लिये अपने प्राणों की आहुति भले ही दे दें किन्तु बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के अभियान को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। कपिल सिब्बल जैसे लोग साम – दाम – दंड – भेद हर उपाय का इस्तेमाल करेंगे जिससे इस आंदोलन को क्षत-विक्षत किया जा सके। न्यूज़ चैनल्स को, अखबारों को खरीदा जायेगा, दुनिया भर की अफवाहें और गलत सूचनायें प्रसारित की जायेंगी, आंदोलन को नेतृत्व दे रहे लोगों को बदनाम किया जायेगा, उनको झूठे मुकद्दमों में फंसाया जायेगा, लेखकों, पत्रकारों को भी खरीदा जायेगा ताकि जनता को बरगलाया जा सके और इस आंदोलन से दूर किया जा सके।

आज बाबा रामदेव के साथ अनशन के लिये आये हज़ारों सत्याग्रहियों पर जिस प्रकार पुलिस ने लाठी चार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े, महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया उससे लगता है कि भ्रष्ट तंत्र की येन-केन-प्रकारेण सुरक्षा करने के लिये सरकार किसी भी हद तक जा सकती है। कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के लिये यह वास्तव में ही जीवन-मरण का प्रश्न है। पर जनता को भी समझना होगा कि देश को किस दिशा पर आगे बढ़ना है। कुछ मुठ्ठी भर लोगों को करोड़पति – अरबपति बना कर शेष सारे देश को गरीबी रेखा के नीचे रखने वाली कांग्रेस सरकार स्वीकार्य है या नहीं ।

आज देश की जनता एक दोराहे पर खड़ी है। दो रास्तों में से एक को चुनना होगा – भ्रष्ट व्यवस्था चाहिये या सार्वजनिक जीवन में शुचिता चाहिये। यदि सरकार, नौकरशाही, और यहां तक कि सेना और न्यायपालिका पूरी तरह से भ्रष्ट होती जा रही हो तो पूरा देश ही असुरक्षित है। ऊपर से देखने में आपको लग सकता है कि देश प्रगति कर रहा है, पर वास्तव में हम और आप रेत के महल पर खड़े हैं जो कब भरभरा कर गिर पड़ेगा, कुछ कहना कठिन है। यदि देश की सत्तर प्रतिशत जनता गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही हो तो उसे टी.वी. पर अधनंगे डांस दिखा कर और फूहड़ चुटकुले सुना सुना कर बहुत लंबे समय तक भरमाया नहीं जा सकता। हालत कुछ ऐसी है कि घर के मालिक के पास पैसे बहुत हैं पर घर में खर्च करने के लिये नहीं हैं, बच्चे भूखे मर रहे हैं, पर उनके पिता को अपना धन अधिक प्यारा है वह उस धन को अपने बच्चों से छुपा कर विदेशों में जमा करता चला जा रहा है, अपने बच्चों की शिक्षा पर, उनके जीवन-यापन पर, उनके लिये रोजगार के अवसर सृजित करने पर खर्च करने का उसका कोई मन नहीं है। यदि कोई उसका विरोध करे तो वह मरने – मारने पर उतारू हो जाता है। आप ऐसे पिता को क्या कहेंगे ? सरदार मनमोहन सिंह और कपिल सिब्बल सदृश नेता ऐसे ही निर्लज्ज पिता हैं इस देश की जनता के लिये ! कब तक झेलेंगे ऐसे पिताओं को आप?

1 COMMENT

  1. पहले एक जगह मैंने निम्न टिप्पणी दी है.मुझे लगता है की यहाँ के लिए भी वह टिप्पणी उपयुक्त है.,
    “अपनी अदूर्दर्शिता के कारण कोई भी विनाश की ओर बढते हुए अपनी कदमों को देख नहीं पा रहा है.अंग्रेजी में एक शब्द है,विसश सर्कल यानि दुष्चक्र.मुझे तो लगता है कि हमलोग उसी दुष्चक्र में फँसे हुए हैं.इसको एक चित्रकार ने बहुत ही अच्छे ढंग से दिखाया है.चित्र कुछ ऐसा है कि एक सांप ने दूसरे सांप का पूँछ पकड रखी है और निगलने का प्रयत्न कर रहा है.दूसरे सांप ने पलटकर पहले की पूँछ पकड ली है और वह भी पहले वाले सांप को निगलने का प्रयत्ना कर रहा है.हमारी वर्तमान अवस्था कुछ ऐसी ही लगती है.परिणाम क्या होगा,यह हमलोग अभी से सोंच लें तो ज्यादा अच्छा हो.”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here