बीसीसीआई तो देखे केवल धन

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शशांक शेखर

सोमवार का दिन कट्टर क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक उत्सव की तरह रहा जब बीसीसीआई ने दिसंबर में चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के विरुद्ध तीन एक दिवसीय और दो टी20 मुकाबले होने की पुष्टी की। पाकिस्तानी कप्तान मिसबाह उल हक ने भी इस फैसले पर खुशी जाहिर की। एक तरफ जहां दोनो मुल्कों के लोग खुश हुए वहीं पूर्व धाकड़ बल्लेबाज कप्तान सुनील मनोहर गावस्कर ने बीसीसीआई के इस फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगा कर विवाद खड़ा कर दिया और बीसीसीआई पर आरोप लगाते हुए कहा कि क्रिकेट के इतर और मुंबई हमले की त्रासदी झेल रहे लोगों के प्रति बीसीसीआई ने बेरुखी दिखाई है।

भारत और पाकिस्तान के बीच सीधा मुकाबला (सीरीज) उस दिन से बंद है जिस दिन मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था। उस वक्त क्रिकेट न खेलने का फैसला देशहित में था। इसका सीधा असर पाकिस्तान क्रिकेट पर भी देखने को मिला। कई देशों ने वहां खेलने से मना कर दिया और पाकिस्तान को अपना होम ग्रांउड शारजाह और दुबई को बनाना पड़ा।

पर कल के फैसले ने एक बार फिर ये सोचने पर विवश कर दिया कि क्या वाकई बीसीसीआई की देश के प्रति कोई आस्था है? बीसीसीई के साथ – साथ भारत सरकार भी एक तरह से कटघरे में है क्योंकि जहां एक तरफ पिछले पांच सालो से भारत पाकिस्तान पर आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दबाव बना रहा है वहीं दूसरे तरफ इन पांच सालों में दोनो देशों के बीच हुए व्यापार (आयात –निर्यात) पर नजर दें तो रिकॉर्ड वृद्धि देखने को मिलती है। इस बीच एमएफएन का दर्जा मिलने के बाद से व्यापार में तेजी भी आई है। लेकिन इस कुटनीति का क्या फायदा जब पाकिस्तान आतंक के मसले पर दो टूक बाते करने में भी हिचकता हो। एक तरफ दबाव बनाने के पूरे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं सचिव और विदेश मंत्री स्तर के कई दौर की बैठके हुई हैं पर मसला ढ़ाक के तीन पात ।

खैर मुद्दा क्रिकेट का है, पिछले कुछ महिनों में बीसीसीआई के सरकारीकरण और आरटीआई के दायरे में लाने को लेकर खेल मंत्री अजय माकन की शरद पवार और राजीव शुक्ला के साथ सदन में भी काफी बहस हुई थी। लेकिन बीसीसीआई के इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड जो खुद को एक एनजीओ मानता है अपना काम एक बिजनेस फार्म की तरह कर रहा है जो सीधे – सीधे अपना फायदा देखता है। बीसीसाई को पता है कि भारत में क्रिकेट प्रेमियों की संख्या कम होती जा रही है। खेल प्रेमी स्टेडियम के टिकट खिड़की तक नहीं पहुंच रहे। क्रिकेट को बड़े प्रायोजक नहीं मिल रहे। ऐसे में चिर प्रतिद्वंदियों के बीच होने वाला मुकाबला क्रिकेट प्रेमियों के साथ-साथ बड़े प्रायोजकों को भी स्टेडियम तक खींच लेगा और झोली भड़ जाएगी। उसे आम भारतीयों के दर्द से क्या…

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  1. जैसी हमारी बेशरम सरकार, वैसा ही निकम्मा और लालची भारतीय क्रिकेट बोर्ड….. इन्हें देश के स्वाभिमान से क्या लेना देना…. यह तो देश को बेचने को तैयार हैं….. मुंबई २६/११ के मुख्य आरोपी कसब और पर्लिअमेंट अत्टैक के मुख्य आरोपी अफज़ल गुरु, जिनको कि सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सालों पहले सुना चुका है, हमारी सरकार घर जमाई की तरह चिक्केन बिरियानी खिला खिला कर मोटा कर रही है और फँसी नहीं दे रही, ताकि कहीं देश के मुसलमान नाराज़ न हो जाएँ और कांग्रेस उनके वोट न गवां बैठे. हर चीज़ की सोच मुस्लिम तुष्टिकरण के हिसाब से है और पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना भी मुसलामानों की आरती उतारने जैसा ही है….. २६/११ में तो कुछ लोग मर गए , NSG कमांडो MAJOR संदीप उन्नीकृष्णन और कुछ वीर पुलिस वाले शहीद हो गए, और हमारी सरकार और बोर्ड इन शहादतों को कब का भूल चुके है …..इस से बोर्ड और सरकार का कुछ लेना देना नहीं, बल्कि कसाब को खूब मोटा कर रहे हैं …..
    बेशरम सरकार और महा बेशरम क्रिकेट बोर्ड, मोस्ट एंटी नेशनल…..

    अरे बदमाशों यह क्रिकेट तमाशा और पाकिस्तान से ड्रामाई बातचीत का सिलसिला और नाटक बंद करो और आतंकी राष्ट्र पाकिस्तान को सबक सिखाओ, पागलों……

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