भालू की हज़ामत‌

bear
बाल हुये जब बड़े बड़े,बूढ़े भालू चाचा के|
गुस्से के मारे चाची ,उनको बोलीं चिल्लाके||

बाल कटाने सियारनाई के ,घर क्यों न जाते हो?
बागड़ बिल्ला बने घूमते, ,फिरते इतराते हो||

भालू बोला सियार नाई ने, भाव कर दिये दूने|
साठ रुपये देने में बेगम,जाते छूट पसीने||

इतनी ज्यादा मंहगाई है ,रुपये कहां से लाऊं?
इससे सोचा है जीवन भर ,कभी न बाल कटाऊं||

नहीं हज़ामत भालू ने, जब से अब तक बनवाई|
बड़े बड़े बालों में ही, रहते हैं भालू भाई||

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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