परिवार की अदावत के मारे बाल ठाकरे

भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति या परिवार हो जो तथा उनकी राजनीति से परिचित न हो| ठाकरे परिवार की राजनीति हमेशा ही कट्टर हिंदुत्व पर आधारित रही है| समय के साथ इसमें मराठी मानुष के हितों से जुडी राजनीति भी हावी होती गई| दशकों से मराठी मानुष की राजनीति में रंग चुके बाल ठाकरे ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी राजनीति की धार कुंद करने का माद्दा परिवार का ही कोई उनका अपना दिखाएगा| बाल ठाकरे पहले भी अपने भतीजे राज ठाकरे से राजनीति की बिसात पर ज़ोरदार मात खा चुके हैं| सभी जानते हैं कि राज की लोकप्रियता महाराष्ट्र में बाल ठाकरे से उन्नीसी ही है| मगर इस बार उन्हें जो तगड़ा झटका लगा है उससे शायद उनकी राजनीति की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न-चिन्ह लग सकते हैं| दरअसल बाल ठाकरे के तीन बेटों में से सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव ठाकरे की पुत्री नेहा ने गुजरात के डॉ. मोहम्मद नबी हन्नान से शादी कर एक तरह से अपने दादा की वैमनष्यता पूर्ण राजनीति को आइना दिखाया है| बाल ठाकरे जिंदगी भर जिस कौम के प्रति अपनी जुबान से ज़हर उगलते रहे; उसी के बाशिंदे को अब उन्हें अपना दामाद स्वीकार करना पड़ रहा है| अस्पुष्ट सूत्रों का दावा है कि नेहा ने शादी के बाद इस्लाम धर्म अपना लिया है मगर ठाकरे परिवार का कहना है कि नेहा की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था है और उसने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया है| खैर; सच्चाई जो भी हो मगर बाल ठाकरे के लिए उनके जीवन का सबसे गहरा ज़ख्म है यह विवाह| हालांकि बिंदुमाधव के काफी पहले ही ठाकरे परिवार से सम्बन्ध विच्छेद हो चुके थे मगर खून का रिश्ता तो खून का ही होता है| नेहा के इस अप्रत्याशित कदम से ठाकरे परिवार लाख दामन बचाए फिर भी उनकी राजनीतिक विचारधारा को तो इस विवाह से नुकसान होना तय है|

 

नेहा और नबी की प्रेम कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है| दरअसल नेहा और नबी के पिता आपस में घनिष्ठ मित्र थे| नेहा और नबी दोनों एक दूसरे को जानते थे और यही जान-पहचान समय के साथ प्यार में बदल गई| ऐसा भी नहीं था कि नेहा अपने दादा की राजनीतिक विचारधारा को न जानती हो; मगर अपने प्यार की खातिर उसने लगभग तीन माह पूर्व कोर्ट मैरिज कर ली| ज़ाहिर है इस रिश्ते से तूफ़ान तो उठना ही था मगर जो हो चुका था उसे अब बदला भी नहीं जा सकता था| इसलिए बाल ठाकरे ने अपने पूरे परिवार सहित मुंबई के ताज लैंड्स एंड में नेहा-नबी की शादी के उपलक्ष्य में भव्य डिनर पार्टी दे डाली| बाल ठाकरे तो पोती के प्यार में झुक गए मगर सबसे बड़ा सवाल लोगों सहित तमाम राजनीतिक हलकों में उठ रहा है कि अब बाल ठाकरे किस मुंह से मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी भड़ास निकालेंगे? जो व्यक्ति बाहरी प्रदेश के लोगों को महाराष्ट्र से निकाला देने पर तुला रहता है, जिसे उत्तर भारतीय किसी कीमत पर पसंद नहीं; क्या अन्य धर्म के व्यक्ति को अपने परिवार का हिस्सा स्वीकार कर पाएगा? क्या उनके परिवार में हुई इस अदावत से राज ठाकरे को राजनीतिक लाभ मिलेगा? क्या ठाकरे अब अपनी राजनीति को सेकुलरिस्म में बदल देंगे? क्या ऐसा करके बाल ठाकरे आडवाणी का ही अनुसरण करने वाले हैं? ऐसे ही अनगिनत प्रश्न लोगों के मस्तिष्क में उमड़ रहे हैं| बाल ठाकरे ने जो हिम्मत नेहा और नबी की शादी को स्वीकार करने में दिखाई है; ऐसी ही हिम्मत क्या वे इन प्रश्नों के उत्तर देने में दिखायेंगे? शायद नहीं|

 

बाल ठाकरे की राजनीति पर वैसे भी सवाल उठते रहे हैं| दरअसल बाल ठाकरे स्वयं मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले से ताल्लुक रखते हैं जहां उनका जन्म हुआ था| मगर परिवार के महाराष्ट्र में बसने के बाद उन्होंने मुंबई को अपनी कार्यस्थली बनाया| एक कार्टूनिस्ट से राजनेता बनने का जो सफ़र बाल ठाकरे ने तय किया है वह निसंदेह आज के युवा राजनीतिज्ञों के लिए एक मिसाल है| मगर कहते हैं न कि यदि आदमी में कुछ अच्छाइयां होती हैं तो बुराई का अनुपात भी कम नहीं होता| बाल ठाकरे की अच्छाइयों पर उनकी बुराइयां हावी हो गईं और वक़्त की नजाकत को भांपने में माहिर बाल ठाकरे ने मराठी मानुष की राजनीति को अपना हथियार बना कर जमकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकी| एक समय ऐसा भी था कि मुंबई में बाल ठाकरे की इजाज़त के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था| समय बदलते ही उनकी राह में कई प्रतिद्वंदी आए मगर उनके अपनों ने उनकी राजनीति को जितना नुकसान पहुँचाया; उसका असर आज पूरा देश महसूस कर रहा है| ज़रा सोचिए; नेहा और नबी की शादी से बाल ठाकरे के दिल पर क्या बीत रही होगी? बाल ठाकरे के साथी जो जीवन भर उनकी वैमनाश्यता की राजनीति का मैल ढ़ोते रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

 

नेहा और नबी की शादी से निश्चित ही बाल ठाकरे को राजनीतिक हानि हुई है| हाँ; इससे राज ठाकरे ज़रूर राजनीतिक लाभ ले सकते हैं| अपने बेबाक एवं विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर बाल ठाकरे अब बोलने से पहले सौ बार सोचेंगे; खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के विरोध में उनके बयान ज़रूर संतुलित भाषा में होंगे| ऐसे में कट्टर हिंदुत्व एवं मराठी मानुष राजनीति की राह पर चलने में उनका साथ देने वाले साथी उनसे दामन छुड़ाने में ही अपनी भलाई समझेंगे| इन परिस्थितियों में उनके पास राज को अपनाने में संकोच नहीं होगा| इससे राज ठाकरे की राजनीतिक ताकत बढ़ना तय है| बाल ठाकरे के लिए यह समय निश्चित ही कठिन परीक्षा से कम नहीं होगा| देखना दिलचस्प होगा कि मुसीबत के झंझावातों से हमेशा लड़कर जीतने वाले बाल ठाकरे इस बार क्या और कैसे करते हैं?

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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