भिक्षावृत्ति: बेचारगी में छुपा एक व्यवसाय

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हमारे भारतीय परिवारों में बहुधा इन बातों का प्रचलन बहुत पुरातन काल से रहा है कि उल्लास और प्रसन्नता के क्षणों में दान-दक्षिणा इत्यादि देकर अवसर प्रतिसाद लिया जाता रहा है । इसके मूल में बदले में प्राप्त होने वाली वे अनमोल दुआएॅं होती है जो अप्रिय परिस्थितियों से लडकर सकारात्मक पक्ष के निर्माण में सहायक होती हैं, ऐसा माना जाता है ।
ऐसा ही एक प्रसन्नता का सौभाग्य पिछले दिनों मेरे परिवार को मिला । उस उल्लास को पर्व के रूप में मनाने के लिये मैं सपरिवार नर्मदा नदी के तट पर वृहद रूप में मिठाई वितरण के लिये गया ।
चूॅंकि नर्मदा नदी का तट धार्मिक आस्था का प्रतीक तो है ही, साथ ही पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है । प्रत्येक धार्मिक त्योहारों एवं सभी अमावस्या, पूर्णिमा के अवसरों पर नदी के तट पर हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या उपस्थित होती है ।
बहरहाल, मिठाई वितरण के समय मैं तब स्तब्ध रह गया, जब कुछ भिक्षुकों ने यह कहकर प्रसाद लेने से मना कर दिया, कि हमें प्रसाद नहीं चाहिए, यदि आप रूपए-पैसे देना चाहें तो दे सकते हैं । एक भिक्षुक ने तो मुझसे यह तक कह दिया कि आपको प्रसाद के रूप में मिठाई चाहिए तो मुझसे ले लो । उस भिखारी के व्यंग्य भरे वाक्यों ने मुझे अंदर तक आहत कर दिया । वहीं दूसरी ओर अन्य श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने सहजता से प्रसाद को स्वीकार किया । कुछ परिचितों ने हमारे परिवार द्वारा किये जा रहे इस धार्मिक कार्य की सराहना भी की । लेकिन उन चंद भिक्षुकों के व्यंग्य भरे वाक्यों ने उनके भिक्षुक होने के औचित्य पर ही सवाल खडे कर दिये ।
वास्तव में भिक्षावृत्ति एक ऐसा पहलू है जो भिक्षुक को बेचारे होने का अहसास दिलाता है और यही अहसास उसे भिक्षा के व्यवसाय से लगातार जुडे रहने में मदद करता है ।
भिक्षुकांे का एक तबका ऐसा भी है जो भिक्षा में मिलने वाले चिल्लर पैसों को एकत्रित करके जरूरतमंद व्यापारियों को उस चिल्लर पैसों की एवज में अच्छी खासी रकम वसूलते हैं तथा भिक्षा में प्राप्त सामग्री को खुले बाजार में खुलेआम बेचकर अपना मुनाफा कमाते हैं ।
भिक्षावृत्ति के पक्ष और विपक्ष में अलग-अलग गणमान्यों के चर्चा के उपरान्त मुझे दो परस्पर विरोधाभासी राय मिली । पहले पक्ष ने राय दी कि सुपात्र को दान देना उचित है, कुपात्र को दान देना पाप है । अब आपको तय करना है कि भिक्षुक सुपात्र है अथवा कुपात्र है। दूसरे पक्ष द्वारा मिली राय के अनुसार जो भिक्षुक आपके पास याचना लेकर आया है, उसकी यथासंभव मदद करनी चाहिए । भिक्षा के रूप में भिक्षुक को दी गई वस्तु का इस्तेमाल भिक्षुक किस रूप में करेगा, यह सोचना आपका कार्य नहीं है ।
ऐसा भी उदाहरण मिला है, जिसमें एक व्यक्ति द्वारा भिक्षुक को खाने योग्य कोई वस्तु दी गई । उस भिक्षुक ने खाने की वस्तु को खाकर बीमार होने का अभिनय किया तथा जिस व्यक्ति ने भिक्षा दी थी, उस पर ही घटिया खाद्य पदार्थ देने का आरोप लगाकर उसे ब्लैकमेल करने लगा । समस्या तब हल हुई जब उस व्यक्ति ने कुछ पैसे देकर उस भिक्षुक से पीछा छुडाया ।
भिक्षावृत्ति की आड में किये जाने वाले गलत कार्यों की तरफ पता नहीं हमारा ध्यान क्यों नहीं जाता है । जब ये भिक्षुक दिन के उजाले में भिक्षा से मिली वस्तु अथवा रूपयों को व्यवसाय का रूप दे देते हैं तो बहुत संभव है, रात के अंधेरे में जासूसी, मुखबिरी अथवा अन्य अनैतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हों ।
अनेक उदाहरण ऐसे भी मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि भिक्षुकों ने भिक्षावृत्ति के माध्यम से आजीवन कमाये लाखों-करोडों रूपयों का दान देकर सराहनीय कार्य किया है ।
भारत में धार्मिक आधार पर भिक्षा को मदद के स्वीकार्य साधनों में सम्मिलित किया गया है । यह उनके अनुयाइयों के आध्यात्मिक विकास को केन्द्रित करने का एक तरीका मात्र है । विभिन्न धर्मों जैसे हिंदुत्व में भिक्षा, इस्लाम में जकात, ईसाइयों में चैरिटी का नाम दिया गया है जो उन्हें मंदिर, मस्जिद तथा चर्च के बाहर धर्मावलंबियों से प्राप्त होती है । संसार के अन्य मुल्कों के कानूनों में भिक्षावृत्ति की अनुमति पर विविधता है । यूनाईटेड किंगडम, नार्वे, चीन और डेनमार्क जैसे मुल्कों में भिक्षावृत्ति गैरकानूनी है । वहीं फ्रांस और फिनलैंड के कानूनों की कुछ धाराएॅं भिक्षावृत्ति को वैध बनाती हैं । अन्य ओर ग्रीस, हंगरी तथा फिलीपींस जैसे मुल्कों में तो भिक्षावृत्ति एक दंडनीय अपराध है ।

 

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