सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा यूपी

-निशा शुक्ला-

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अंग्रेजों को देश से खदेड़ने कि लिए हिन्दू-मुस्लिम एक की इबारत लिखने वाला उत्तर प्रदेश आज खुद सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा है। कभी साथ मिल कर राम-रहीम की कसमें खाने वाले हिन्दू-मुसलमान भाई आज एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। आज एक दूसरे के खिलाफ नफरत का आलम यह है कि छोटी-छोटी बात पर तलवारें तन जा रही हैं, जिसका सीधा फायदा राजनीतिक दलों को हो रहा है। अंग्रेज भले ही इन्हें (हिन्दुओं और मुस्लिमों) आपस में लड़ा पाने में सफल नहीं हो सके लेकिन हमारे देश के राजनेताओं ने यह काम बखूबी कर दिखाय़ा। सत्ता परिवर्तन के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जितने भी दंगे हुए उसमें कहीं न कही उपद्रवियों को किसी एक पक्ष से संरक्षण देने को कारण हिंसा कम होने के बजाय औऱ भी भड़कती गई। सरकार औऱ पुलिस प्रशासन भी इन पर तब तक ध्यान नहीं देता जब तक हालात बेकाबू नहीं हो जाते औऱ शहर में खून की नदियां नहीं बह जातीं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन साल में पश्चिमी यूपी में 50 से अधिक दंगे हुए जिसमें सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वहीं हजारों की संख्या में लोग अपाहिज होकर बिस्तर पर रहने को मजबूर हो गए।

दंगे की आग में झुलस रहा उत्तर प्रदेश अखिलेश सरकार की नाकामी की गवाही दे रहा है। सपा मुखिया मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव को अभी मात्र दो साल हुए हैं सत्ता संभाले हुए, लेकिन इन दो वर्षों में जितने सांप्रदियक दंगे हो गई उतने शायद इससे पहले कभी भी नहीं हुए। मुजफ्फरपुर, सहरनपुर, मेरठ, बरेली, प्रतापगढ़, फैजाबाद, बागपत, बुलंदशहर, शामली आदि जिले सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस चुके हैं। बीते दो वर्षों में कोई ऐसा महीने नहीं होगा जब प्रदेश के किसी व किसी जिले में हिन्दू व मुस्लिम भाइयों का खून न बहा हो औऱ देश की सर्व धर्म संभाव को चोट न पहुंची हो। आज प्रदेश में जो हो रहा है वह हमारी गंगा जमुनी तहजीब को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वैसे तो अंग्रेजों में भी यहां की एकता को खंडित करने की पुरजोर कोशिश की थी लेकिन आपसी विश्वास व भाई चारे के कारण वह इन्हें अलग नहीं कर पाए। आज से करीब 157 साल पहले हमारे देश के सभी धर्मों व जातियों के लोगों ने अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए एकजुट रहने का संकल्प लिया था और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए गए थे। एक वह समय था जब देश में राम रहीम की कसमें साथ में खाई जाती थीं और आज वहीं लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हो है जो दुखद ही नहीं आने वाले समय में देश की एकता के लिए खतरा भी है।

27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कांवल गांव में युवती की छेड़छाड़ के बाद भड़की हिंसा में दो भाइयों की मौत हो गई। पुलिस को सूचित किए जाने के बाद कार्रवाई न होने पर महांपचायत आयोजित की जिस पर एक संप्रदाय विशेष द्वारा पथराव व फायरिंग किए जाने के बाद भड़की हिंसा ने माहौल में तनाव ला दिया,  जिससे शहर में महीनों कर्फ्यू रहा।

वहीं 7 अगस्त 2012 को प्रतापगढ़ के सनेही गांव में टैम्पो का किराया ज्यादा लेने जैसी मामूली बात पर हुई झड़प ने सांप्रदियक हिंसा का रूप ले लिया।

बरेली में अगस्त 2013 में जुलूस-ए-मोहम्मदी के बाद भड़की हिंसा में तीन की मौत हो गई। इसके बाद लगभग 18 दिन तक तनाव जैसे हालात रहे।

26  जुलाई 2014 सहारनपुर में सिक्खों और मुस्लिम समुदाय के बीच जमीन को लेकर हुए विवाद ने  देखते ही देखते सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया।

26 जुलाई 2014 धामिर्क स्थल बनाने को लेकर सांप्रदायिक हिंसा, तीन की मौत, 35 जख्मी

यह तो महज बानगी भर है बाकी प्रदेश के हालात औऱ भी बदतर हैं। कब, कहां, कौन सी बात हिंसा की वजह बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।  सच तो यह है कि वर्तमान  समय में अपन-अपने फायदे के लिए और सत्ता हासिल करने के मकसद से राजनेताओं द्वारा लगाई गई आग में प्रदेश ही नहीं पूरा देश झुलस रहा है। छोटी-छोटी बातों पर हो रही मामूली कहासुनी कब दंगे का भयंकर रूप ले लेती है यह अंदाजा लगाना  मुश्किल हो गया है। आज देश का छोटा सा बच्चा भी हिन्दू-मुस्लिम में भेदभाव करने लगा है, जो देश की एकता, अखंडता और विकास के लिए घातक है।

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