हरि शंकर व्यास
सुबह तक चैन था कि ईद का दिन शांति से गुजर रहा है। पर फिर बांग्लादेश में आंतकी हमले की वैसे ही खबर आई जैसे रमजान के महिने लगभग हर रोज सुनाई दी है। ईद के दिन इन घटनाओं पर विचार किया जाए या डा जाकिर नाईक को ले कर हुई चर्चा पर करें। समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे हुआ कि भारत को बांग्लादेश से खबर लगी कि भारत में डा जाकिर नाईक के नाम से एक कट्टरपंथ प्रचारक है। उसके बताए फार्मूले से इस्लामी स्टेट के आंतकवादी बने है! मतलब बांग्लादेश से भारत को पता पडे कि उसके यहां से डाले जा रहे आईडिया से दुनिया में इस्लामी स्टेट के बर्बर लड़ाके बन रहे है!
कैसी भयावह बात है यह! डा जाकिर नाईक की बाते सुन कर बांग्लादेश में आंतकियों ने बुराईयों के प्रतीक गैर-मुसलमानों के गले कटार से रेत किए! यह भी मालूम हुआ कि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान याकि दक्षिण एशिया में ही नहीं बल्कि अरब-अफ्रिका के भी कई इस्लामी देशों में डा नाईक के करोड़ों अनुयायी है। पीस टीवी चैनल के जरिए डा नाईक ने मुसलमानों पर जादू बिखेरा हुआ है। उनकी बाते सुन अमेरिका भड़का, ब्रिटेन भड़का और बांग्लादेश में आंतकियों ने तलवारें उठाई। मगर इस सबसे भारत राष्ट्र-राज्य बेखबर था। उसे खबर तब हुई जब बांग्लादेश सरकार ने बताया कि ढ़ाका के बर्बर आंतकियों के मार्गदर्शक डा जाकिर नाईक है!
कितनी शर्मनाक बात है यह! कांग्रेस याकि सोनिया गांधी, डा मनमोहनसिंह की सरकार के वक्त पी चिंदबरम आदि की लापरवाही समझी जा सकती है मगर नरेंद्र मोदी, राजनाथसिंह, अजित डोभाल के सुरक्षा प्रबंधों में यह कैसे है कि दूसरे देश हमें बताए कि आपके यहां डा जाकिर नाईक आंतकवादियों का पथ-प्रर्दशक है और तब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू यह बताए कि सरकार जांच करने, जाकिर नाईक के खिलाफ उचित कार्रवाई पर विचार कर रही है!
सो दो पहलू है। एक भारत सरकार, भारत राष्ट्र-राज्य की लापरवाही का है। दूसरा पहलू है कि डा जाकिर पर आखिर क्या राय बनाए? डा जाकिर नाईक क्या है? भारत ने लापरवाही की है, यह साबित है। डा जाकिर नाईक और मुंबई में बनाए उनके इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ने मुस्लिम अवाम को अपने टीवी चैनल के जरिए, अपने उपदेशों के जरिए जिस तरह दिवाना या उग्रवादी बनाया उसके प्रति सरकार ने व्यवस्थागत ढर्रे में लापरवाही बरती। जिस देश का सूचना -प्रसारण मंत्रालय समाचार चैनलों, केबल नेटवर्क पर छोटी-छोटी गलतियों के लिए उन्हे कसता है उस मंत्रालय ने डा नाईक के पीस टीवी चैनल की खबर नहीं रखी हुई थी। अब अपुष्ट खबर यह भी है कि पीस टीवी चैनल ने लाईसेंस नहीं ले रखा था। टीवी चैनल और फिर उसका
केबल नेटवर्क पर चलना सब गैर-कानूनी था। यदि ऐसा है तो भारत राष्ट्र-राज्य की व्यवस्था और खुफिया तंत्र का यह पूरी तरह क्या फेल होना नहीं है?
इससे अधिक गंभीर सोचने वाली हकीकत यह है कि टीवी चैनल पर भाषण कर-करके डा जाकिर नाईक ने जो मैसेज दिया उसे कई देशों ने जिहादी व अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला माना और भारत सरकार में यह विचार तक नहीं हुआ कि यदि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने उन पर प्रतिबंध लगाया है तो आखिर माजरा क्या है! क्या इस बारे में कभी कोई खुफिया रिपोर्ट बनी?
जाहिर है डा जाकिर नाईक, उनके इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन और पीस टीवी चैनल के प्रति भारत राष्ट्र-राज्य पूरी तरह लापरवाह रहा है। शायद कारण यह मानना हो कि जाकिर नाईक अमन के फरिश्ते है। वे इस्लाम की उस धारा के प्रचारक है जो इस्लाम को अमन का धर्म बताती है।
तब बांग्लादेश के इस्लमी स्टेट के आंतकियों ने उन्हे अपना पथ-प्रदर्शक क्यों बताया?
ऐसा होने के पीछे शायद डा नाईक की यह थीसिस है कि सभी मुसलमान आंतकी बने। हां, इस तरह के उनके वाक्य कल-परसों टीवी चैनलों पर सुनाई दिए है। अल कायदा, ओसामा बिन लादेन, अमेरिका, 9/11 को ले कर डा नाईक ने जो कहां उसके कई वाक्य अलग-अलग सुनाई दिए है। इस सब पर डा नाईक ने सफाई दी है कि उनके कहे को तोड़ मरोड़ कर, बिना संदर्भ के पेश किया जा रहा है। उनके इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के प्रबंधक मंजूर शेख ने कह है कि फाउंडेशन में सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। लाइब्रेरी में कुरान है तो वेद, पुराण, गीता और बाईबल भी हैं।
सवाल है कि अन्य धर्मों की तुलना में क्या डा नाईक दूसरे धर्मों को भी अच्छा बताते है? वे दूसरे धर्मों का हवाला देते हुए इस्लाम की श्रेष्ठता और दुनिया को दारूल इस्लाम बनाने की पैरवी क्या नहीं करते है? वे बुराई से लड़ने के लिए यदि सभी मुसलमानों को आंतकी बनने का आव्हान करते है तो क्या उस बुराई का प्रतीक उन्होने दूसरे धर्मों को या अमेरिका को नहीं बनाया हुआ है? डा जाकिर नाईक ने बुराई के खिलाफ आंतकी बनने की बात कही और उसे मानते हुए बांग्लादेश के इस्लामी स्टेट के हत्यारों ने इटली, जापान के गैर-इस्लाम धर्मावलंबिय़ों का गला रेत किया तो क्या इसलिए नहीं कि ये दूसरे धर्म को एक बुराई मानते है?
तभी लाख टके का जांचने वाला सवाल है कि डा जाकिर नाईक ने मुसलमान को कट्टरपंथी बनाया या मिलजुल कर सभी धर्मों के साथ सह-अस्तित्व में रहने वाला बनाया? डा नाईक ने अपने भाषणों से यदि ढ़ाका के जिहादियों को हत्या करने का फार्मूला परोसा तो उन्हे अमन का प्रचारक माने या हिंसा का?
जवाब डा जाकिर नाईक को देना है और फैसला भारत को करना है!