बेहतर शादी शुदा जिन्दगी के लिये…

शादाब जफर ”शादाब”

 

बात सन् 1999 की है। मण्डी हाऊस के नजदीक नई दिल्‍ली स्थित रूसी ऑडिटोरियम के सभागार में बालकन जी बारी इन्टरनेशल नई दिल्ली द्वारा आयोजित देश भर से आये कवि शायरों के सम्मान समारोह का कार्यक्रम चल रहा था। मुझे भी इसी वर्ष इस संस्था ने मेरी काव्य रचना पर राष्ट्रीय कविता अवार्ड से सम्मानित किया था। उस वक्त तक मेरी शादी नहीं हुई थी। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत सरकार में उस समय कैबिनेट श्रम मंत्री माननीय शांता कुमार जी थे। ज्यादातर हम सम्मानित कवि शायरो में अविवाहित ही थे। शायद शांता कुमार जी ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों का गहनता से अध्ययन किया था। अपने संबोधन में सब से पहले कार्यक्रम में शामिल उन्होंने अपनी पत्नी का सब लोगों से परिचय कराया और बोले कि मेरे प्यारे बच्चों, आज मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप लोगों के बीच आने और बोलने का मौका मिला। बूढे लोग हमेशा बच्चों को कुछ न कुछ सीख जरूर देते है मेरा मन भी कर रहा है कि आज आप को कोई ऐसी सीख दूं जो आप लोगों के जीवन में आप के काम आये। बच्चो जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में ये दो काम नहीं किये उस का जीवन अधूरा रहने के साथ ही उसने जिन्दगी के वो हसीन पल महसूस ही नहीं किया जो जीवन में सब से अनमोल होते है। जो व्यक्ति अपने जीवन में बच्चों के संग बच्चा बन के न बोला हो। और दूसरा जिसने अपनी पत्नी के साथ कीचन में मिलकर खाना न बनाया हो। पूरे सभागार में ठहाका गूंज उठा। वो कुछ देर रूक कर बोले में अक्सर अपनी पत्नी के साथ जब कभी भी मुझे देश और राजनीति से वक्त मिलता है कीचन में जाकर खाना बनाता हूं। इस से आपस में हम पति पत्नी के बीच प्यार बढता है। बेहतर और खुशनुमा शादी शुदा जिन्दगी के लिये ये बेहद जरूरी है।

शांता कुमार जी की एक बात पर मैंने तुरन्त घर आकर अमल कर लिया सच बच्चों के साथ बच्चों वाली तोतली जबान में बोलकर बड़ा ही आनन्‍द आया मगर दूसरी बात में अभी वक्त था। मैंने दिल को समझाया। इसे पूरा होने में अभी वक्त लगेगा कितना लगेगा मैं खुद नहीं जानता था। पर जब 25 अप्रैल 2002 को मेरी शादी हुई तो मुझे शांता कुमार जी की बात याद थी। पर संयुक्त परिवार में रहकर ये सब करना माना लोहे के चने चबाने जैसा था। धीरे धीरे वक्त बीता घर में बिटिया का जन्म हुआ इसी दौरान वो वक्त आ गया जब मुझे अपनी पत्नी के साथ किचन में खाना बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जैसा शांता कुमार जी ने कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ। एक अलग प्रकार के प्यार की अनुभूति प्राप्त हुई और हम दोनो में मोहब्बत भी बढी। अक्सर देखने और सुनने में ये आता है कि शादी वो लड्डू है जो खाये वो पछताए जो न खाये वो भी पछताए। दरअसल प्यार उमंग की वजह से शादी शुदा जिन्दगी में कदम रखने वाले जोडे शादी के बाद की जिम्मेदारिया अच्छी तरह से न निभा पाने की वजह से कुछ ही दिनो में परेशान हो उठते है, जिसका असर नये शादी शुदा रिश्‍ते पर पड़ता है क्योंकि शादी का दूसरा नाम है जिम्मेदारी। शादी से पहले जिस जीवन को लडका लड़की जी कर आते है दोनों में जमीन आसमान का फर्क होता है। शादी के पहले की दुनिया आसमान से चॉद तारे तोड़ कर लाने की होती है वही शादी के बाद दोनों का जमीनी हकीकत से सामना होता है तो छोटी बातों और छोटी मोटी फरमाईशों पर दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो जाता है आपसी बहस और तकरारों का सिलसिला चल पड़ता है। तमाम चीजों के बीच रिश्‍तों में तालमेल के साथ खुशहाली बनाए रखने के लिये आर्थिक मजबूती के लिये पैसा ही जरूरी नहीं होता प्यार और स्नेह भी काम आता है। मैंने यह आजमा कर देख लिया कि शादी-शुदा जिन्दगी में अचानक आई सुनामी में शांता कुमार जी का फार्मला रामबाण का काम करता है।

बेहतर और खुशनुमा शादी-शुदा जिन्दगी के लिये ये भी बेहद जरूरी है कि पति पत्नी एक दूसरे की भावनाओं और इच्छाओं को खुले दिल से समझने के साथ ही उनका आदर सम्मान करे और एक दूसरे को महत्व दें। ज्यादातर देखने में आता है कि हम रोजमर्रा के जीवन में गुजरते वक्त के साथ ही अपने लाइफ पाटर्नर के साथ सामान्य शिष्टाचार भी भूल जाते है। जबकि आप के द्वारा आफिस या घर से बाहर जाते वक्त पत्नी को आई लव यू या आफिस से आने के बाद प्यार से चूमने के बाद आई मिस यू कहना आप की शादी शुदा जिन्दगी मे कितनी खुशहाली और मजबूती ला सकता है इस का आप प्रयोग कर के देख सकते है। अपनी शादी के शुरू के दिनों की बाते सोचता हूं और फिर अपने आज को देखता हूं तो संतुष्टि का अहसास होता है। ऐसा नहीं कि हमारी शादी-शुदा जिन्दगी में परेशानियां नहीं आई। आम लोगों की तरह हमारे सामने भी आर्थिक परेशानियां थीं। जिस की वजह से कई बार हम दोनों में आपस में छोटे मोटे हल्के फुल्के विवाद भी हुए। कई बार मुझे उलझन का अहसास भी हुआ मगर धीरज और आपसी समझदारी से हम दोनों ने वो सब कुछ पा लिया जो हम पाना चाहते थे। आज मान सम्मान पैसा एक बेटा व एक बेटी और सुन्दर सुशील समझदार मेरी लाईफ पार्टनर मेरी बीवी, खुदा का दिया मेरे पास सब कुछ है। शादी के शुरूआती दिनों में हम दोनों पति-पत्नी के बीच पैसे और खर्च को लेकर बहस हो जाती थी। एक दिन बैठकर हम दोनों ने इस बात पर चर्चा की कि हमारी और बच्चों की क्या क्या जरूरतें है। उन्हें किस तरह से पूरा किया जा सकता है। हम दोनों ने एक तरफ घर गृहस्‍थी की चीजों की खरीदारी के लिये ऐसी जगहों की तलाश की जहां उचित कीमत पर अच्छा सामान मिलता था। दूसरी तरफ आमदनी बढाने के जरिये भी तलाश किये। मैं समाचार पत्र-पत्रिकाओ एंव फीचर एजेंसियो के लिये फीचर कहानियां स्मरण आदि लिखने लगा। वही शायरी के ताल्लुक से देश भर में आल इन्डिया मुशायरों में शिरकत होने लगी। आकाशवाणी नजीबाबाद, दूरदर्शन दिल्ली, लखनऊ, जी टीवी, ईटीवी उर्दू आदि टीवी चैनलों से बुलावे आने लगे। और थोडे़ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो गया।

जब आप को लगे कि पैसा आप के प्यार पर हावी हो रहा है और आप की शादी शुदा जिन्दगी में हल्के हल्के दाखिल होने लगा है। आप के प्यार के बीच पैसा ही आपकी लड़ाईयों की वजह बनता चला जा रहा है। तब आप अपने भविष्य के लक्ष्यो पर फोकस करते हुए अपने जीवन साथी के साथ मनी मैटर्स पर खुलकर चर्चा करे। सारे खर्चे मिल बॉटकर करने में ही समझदारी है। ऐसा करने से अपने शादी शुदा रिश्‍तों पर इस का रिर्टन आप को तुरंत मिलता नजर आयेगा। लेकिन ये सब किसी एक की जिम्मेदारी नही है जरूरी है कि पति पत्नी दोनो अपनी शादी शुदा जिन्दगी की बेहतरी के लिये बराबरी का प्रयास करे। एक दूसरे से जुडे रिश्‍तों और रिश्‍तेदारों का मान सम्मान करे। छुट्टी वाले दिन पत्नी और बच्चो को घर के माहौल से बाहर सैर कराने, चाट, बर्गर, आईस्क्रीम या डीनर कराने ले जायें। शादी शुदा जिन्दगी से जुडी उम्मीदो के बारे में गहराई से आपस में बाते करे। बच्चो के कैरियर, संयुक्त परिवार, इन्वेस्टमेंट, बूढे मॉ बाप आदि जरूरी मुद्दो पर कोई गंम्भीर असहमति तो नही। जरूरी है ऐसे तमाम मसलो पर घर में बैठकर ही आपस में बात साफ कर ले। यदि किसी मुद्दे पर अहसहमति है तो उसे दोनो आपस में ही सुलझा ले तीसरे व्यक्ति के पास बात जाने से घर के भेद खुलने और बदनामी का डर रहता है। ऐसे में हमे ”हम” की भावना से बाहर आकर एक दूसरे को अपने अनुसार जीवन जीने के लिये भी प्रोत्साहित करना चाहिये। सोच समझ कर फैसला करने से शादी शुदा जिन्दगी की नीव सदैव मजबूत रहने के साथ ही आपस का प्यार भी बूढापे तक जवां और तरो ताजा रहता है।

4 COMMENTS

  1. बहुत सुन्दर, बहुत प्यारा लेख. धारा से हटकर ऐसा कुछ कम ही मिलता है पढ़ने को. बधाई स्वीकार करें.

  2. बहुत अच्छा सर जी, what an idea sir jee…………चाय का taste बढ़ गया….कोटिशः बधाईयाँ

  3. शादाब जफर ”शादाब”
    बहुत सुंदर एवं सही लेख। यहां अमरिका में बराबरी की लडाई में दोनों पति और पत्नी अपने परिवार का नाश करते हैं। यदि आम=नारंगी यह समीकरण सही हो सकता है, डालर=पौंड यह समीकरण सही हो सकता है, तो पुरूष=स्त्री भी सही हो जाएगा। पुरूष पुरूष है, स्त्री स्त्री है। दोनो एक दूसरे के पूरक हैं।
    दोनों के प्राकृतिक गुण भी अलग अलग है।
    बराबरी की लडाई ने दोनों को लडवा कर परिवार का नाश कर दिया है। भारत इस आग की दिया सलाई से चेत कर रहे। परिवार जब समाप्त हो जाएगा–संस्कृति समाप्त होने में देर न लगेगी। यूनान और रोम में पहले कुटुंब व्यवस्था समाप्त हुयी थी, (ऐसा पढा है)—बादमें संस्कृतियां समाप्त हुयी।
    दोनों अपने अपने कर्तव्य पर ही ध्यान दें।अपने अधिकार (हक) पर नहीं।
    इसलिए अमरिका का विवाह विच्छेद दर ५० % हैं, मेरे भारत का १.१ % (यह सी आय ए के आंकडे हैं) ध्यान अपने कर्तवोंपर रखे।अपने, अधिकार पर नहीं। और अन्य के कर्तव्य पर नहीं। अपने कर्तव्य ही आपके हाथ में है।
    इसी भारतीय संस्कृति की सीख ने उसे ऐसी दारूण परिस्थिति में भी बचा के रखा है।
    शादाब जफर ”शादाब” जी आपने सही सही लेख लिखा। धन्यवाद।

  4. समझने वाले हमझ जाते है और न समझने वाले कभी नहीं समझते | प्रेरणा दायक है आपका लेख |

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