गाँव छोड़ कर लोग लगातार शहरों में आ रहे हैं।शहरों पर बोझ बढ़ रहा है। शहर में बुनियादी सुविधाएँ पहले ही नाकाफी थी, अतिरिक्त जनसँख्या के दवाब में तो अब हालत और भी खस्ता हो गई है। सुबह हो या शाम, घर से बाहर निकल कर सड़क पर आते ही आपको हर छोटे बड़े शहर में सड़कों पर जाम से रूबरू होना पड़ेगा और सडकों पर गुजारे सारे वक्त में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को झेलना पड़ेगा। हालांकि वायु प्रदूषण का प्रकोप सर्वव्यापी है, फिर भी नगरों, महानगरों की हालत गाँव की अपेक्षा बहुत ही गंभीर होती जा रही है दिन-पर-दिन। वायु प्रदूषण के विभिन्न आयामों पर चर्चा जारी रखने से पहले आइये इन तथ्यों पर गौर कर लें :
चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा आबादीवाला देश है । भारत की आबादी 120 करोड़ से ज्यादा है ।
- भारत में यात्री वाहनों की संख्या चार करोड़ से ज्यादा है ।
- हर साल भारत में 110 लाख वाहन का उत्पादन होता है ।
- भारत विश्व के दस बड़े वाहन उत्पादक देशों में से एक है ।
- हमारे देश में पेट्रोल, डीजल आदि की खपत तेजी से बढ़ रही है ।
- हम अपने खनिज तेल की जरूरतों का 80% आयात करते हैं ।
- वर्ष 2011-12 में हमने खनिज तेल के आयात पर 475 बिलियन डालर खर्च किया है ।
- कोयले के उत्पादन और खपत में भी लगातार वृद्धि हो रही है ।
उपर्युक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर हम स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी स्थिति कितनी गंभीर होती जा रही है। देश में खनिज तेल जरुरत की तुलना में मात्र 20% है, पर तेल पर चलनेवाले वाहनों की संख्या तेजी से बढती जा रही है।सड़कें छोटी पड़ती जा रही हैं, वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी निरंतर बढती जा रही है, देश की राजधानी विश्व के कुछ सबसे बड़े प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया है, लेकिन किसे इन बातों की फिक्र है? नतीजतन, आज हम सभी निम्नलिखित परिस्थिति से दरपेश हैं:
- वायु प्रदूषण से भारत में हर साल 6 लाख से ज्यादा लोग मरते हैं ।
- वायु प्रदूषण से एक बड़ी आबादी दमा, हृदय रोग, कैंसर , चर्म रोग आदि से ग्रस्त हैं ।
- गर्ववती महिलाएं और पांच साल तक के बच्चे वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित होते हैं
- वायु प्रदूषण के कारण मानव समाज के अलावे पशु-पक्षी एवं वनस्पति तक को गहरी क्षति होती है ।
तो आखिर क्या करें? सिर्फ सरकार द्वारा उठाये जानेवाले क़दमों के भरोसे रहें? या अपनी ओर से अपने वायु मंडल को प्रदूषण से बचाने के लिए नीचे लिखे कार्यों को अंजाम तक पहुँचाने में बढ़-चढ़ कर भाग लें और सरकार को भी इन्हें सख्ती से लागू करने के लिए संविधानिक तरीके से मजबूर करें:
- सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में व्यापक एवं प्रभावी सुधार ।
- साइकिल चालन को अत्यधिक प्रोत्साहित करना ।
- मौजूदा जंगलों /पेड़ों को संरक्षित करना एवं साथ-साथ बड़े पैमाने पर वनीकरण को बढ़ावा देना ।
- यथासंभव प्राथमिकता के आधार पर सौर तथा पवन उर्जा को लोकप्रिय बनाना ।
- उत्सर्जन मानदंडों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना ।
आशा है, हम समय रहते इस समस्या से निबटने में एक हद तक कामयाब होंगे ।
हम वाकई कब आजाद होंगे ?
पिछले 15 अगस्त को हमने अपना 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। बड़े ताम-झाम से मनाया। प्रधान मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री तक सब ने देश/प्रदेश के तरक्की के बारे में विस्तार से लोगों को बताया, अनेक नए वादे भी किये। इन सब आयोजनों पर करोड़ों का खर्च जनता के नाम गया , विशेष कर उन तीन चौथाई से भी ज्यादा देश की जनता का, जो आज भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ साथ स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार की समस्या से बुरी तरह परेशान है, बेहाल है – आजादी के साढ़े छह दशकों के बाद भी। क्या यह शर्मनाक स्थिति विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जानेवाले देश के योजनाकारों, नीति निर्धारकों और नौकरशाहों को अब भी परेशान नहीं करती , उन्हें जल्दी कुछ करने को मजबूर नहीं करती ?
अक्तूबर का महीना हमारे चार बड़े नेताओं और देश भक्तों, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा प्रख्यात समाजवादी जननेता राम मनोहर लोहिया के जन्म दिवस या पुण्य तिथि के साथ जुड़ा है, जो अपने जीवन काल में सिर्फ और सिर्फ गरीब,शोषित,दलित जनता के लिए काम करते रहे। तो क्यों न इस मौके पर हम अपने सत्तासीन नेताओं, योजनाकारों, नीति निर्धारकों आदि से यह पूछें :
- क्या प्रत्येक भारतीय को रोज दो शाम का भी खाना भी नसीब हो पाता है?
- क्या प्रत्येक भारतीय को एक मनुष्य के रूप में रहने लायक कपड़ा उपलब्ध है ?
- क्या प्रत्येक भारतीय को रहने के लिए अपना मकान नसीब है?
- क्या प्रत्येक भारतीय को न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है?
- क्या प्रत्येक भारतीय बच्चे को बुनियादी स्कूली शिक्षा उपलब्ध है?
- क्या प्रत्येक भारतीय व्यस्क को साल में 180 दिनों का रोजगार भी मिल पाता है?
इन सभी मौलिक सवालों का जबाव तो बहुत ही निराशाजनक है,फिर भी सत्ता प्रतिष्ठान से सम्बद्ध सारे लोग चीखते हुए कहेंगे कि इन दशकों के दौरान देश ने हर क्षेत्र में प्रगति की है। लेकिन, वही लोग इस तथ्य को नहीं नकार पाएंगे कि जितने वायदे उन लोगों ने जनता से इन वर्षों में किया है, उसका दस प्रतिशत भी वे पूरा करने में नाकाम रहे। देखिये, दुष्यंत कुमार क्या कहते हैं :
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ।
सभी यह मानेंगे कि किसी भी पैमाने से आजादी के ये 65 साल किसी भी देश को अपनी जनता को बुनियादी जरूरतों से चिंतामुक्त करके देश को सम्पन्न और शक्तिशाली बनाने के लिए बहुत लम्बा अरसा होता है। और वह भी तब, जब कि इस देश में न तो प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी रही है और न तो मानव संसाधन की। तो फिर यह तो साफ़ है कि भारी गलती हुई – नीति, योजना,कार्यवाही और सबसे ऊपर नीयत के मामले में। चुनांचे, हम सभी को देश/ प्रदेश की सरकारों से पूरी गंभीरता से पूछना पड़ेगा कुछ बुनियादी सवाल और मिल कर बनानी पड़ेगी एक समावे शी कार्य योजना जिसे समयबद्ध तरीके से आम जनता की भलाई के लिए लागू किया जा सकें, तभी हम अपने को एक मायने में आजाद भारत के नागरिक कह सकेंगे। अन्यथा कोई विदेशी यह कहते हुए मिलेगा :
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है !
– दुष्यंत कुमार
सिन्हा जी, आपने वायु प्रदूषण पर कुछ कहने का प्रयत्न किया है और समस्या को सामने लाये हैं,पर आपने समाधान वाले पहलू पर विशेष प्रकाश नहीं डाला है.प्रदूषण की समस्या,जिसमे वायु प्रदूषण भी शामिल है एक विकराल समस्या है.अगर हम केवल वायु प्रदूषण पर भी विचार करें ,तो यह समस्या न केवल वाहनों द्वारा फैलाए गए प्रदूषणों तक सिमित है और न केवल सार्वजनिक वाहनों को प्रोत्साहन देने सेयह समस्या हल हो जायेगी.
सार्वजानिक वाहनों को प्रोत्साहन के साथ उनमे डीजल की जगह प्राकृतिक गैस (सी.एन.जी.) के प्रयोग से वे प्रदूषण पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है.
उसी तरह पवन ऊर्जा और सौर उर्जा को प्रोत्साहन देने से बिजली उत्पादन में प्रदूषण कम किया जा सकता है.
वायु प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों में उचित प्रदूषण निरोधक उपकरणों,ई.एस.पी. इत्यादि का सख्ती से प्रयोग करा कर उन पर नियंतरण रखा जा सकता है.
बिजली उत्पादन की कमी के कारण डीजल का व्यापक प्रयोग भी प्रदूषण फ़ैलाने में एक मुख्य भूमिका निभाता है,पर अभी तक हम बिजली की खपत के अनुसार उसका उत्पादन नहीं कर सकें हैं.
ऐसे यह इतना व्यापक विषय है क़ि इस पर सार्थक बहस और समस्या के समाधान हेतु एक व्यापक परिचर्चा की आवश्कता है.