बहकें बहकी होली में …

संजय बिन्नाणी

रस, रंग, स्वाद, गंध और स्पर्श, पाँचों ही तत्वों की प्रमुखता हमारे जीवन में है। शरीर, स्वास्थ्य और आहार का आधार यही हैं। होली हमारी संस्कृति का ऐसा एकमात्र त्योहार है, जिसमें इन पाँचों तत्वों का ऐसा समावेश है कि किसी एक को भी बाद दिया तो होली का रंग फीका पड़ सकता है। यह त्योहार न सिर्फ आनन्द-उल्लास की वृद्धि करता है, बल्कि संस्कृति और प्रकृति के निकट भी लाता है।

होली के दिन जब नजदीक आने लगते हैं, तब लोगों को हास्य-व्यंग्य, चुटकुलेबाजी, लफ्फाजी और कितनी ही प्रकार की बदमाशियाँ याद आती हैं; जिन्हें अंजाम देने के बाद ‘बुरा न मानो होली है’ कहते हुए बच निकलते थे। याद आते हैं वे दिन, जब हम भी होली के रसिया हुआ करते थे। चंग और सूखे रंग लेकर निकल पड़ते थे सड़कों पर। जिसे बोली से भिगोना होता उसे गा-बजा कर और जिसे रंगना होता उसे रंग लगाकर मजे लेते थे। लोग बुरा भी नहीं मानते थे।

हर आदमी अपनी तरंग में रहता। उपाधियाँ दी जायँ अथवा किसी पर कविता पढ़ी जायँ, लोग उनका आनन्द लेते। किसी पर आपने कुछ नहीं कहा तो उलाहना भी मिलता। कई-कई दिनों तक स्वाँग प्रतियोगिताएँ होती और हम लोग स्वाँग बन कर गली-मुहल्लों में घूमते रहते।

बदलते समय के साथ सारी चीजें ही बदल गई हैं। अधिकांश लोगों को तो उत्सव-उल्लास के लिए समय ही नहीं मिलता। कई लोग अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं को ढकोसले या पोंगापंथ की संज्ञा देकर, उनसे किनारा कर रहे हैं।

बच्चों की परीक्षाएँ चल रहीं हैं और इसी बीच पड़ा है मौज-मस्ती का हुड़दंगी त्योहार होली। ऐसे में परीक्षार्थियों में थोड़ा तनाव होना स्वाभाविक है। फिर भी उन्हें हमारा सुझाव यही है कि टेन्शन नहीं लेने का, बिन्दास होली खेलने का, फुलटुस फटास मस्ती लेने का। क्योंकि जैसे फाइनल परीक्षाएँ एक ही बार आती हैं, वैसे ही होली भी साल में एक ही बार आती है। और त्योहार हमें री-चार्ज करते हैं, वह भी फ्री ऑफ कॉस्ट।

चारों ओर रंग-रंग की गुलाल उड़ रही है। बंगाल में हरा, यूपी में लाल, गोआ व पंजाब में केसरिया, मणिपुर, उत्तराखण्ड में तिरंगा हुआ आसमान है। अपना देश महान है।

महान वे लोग भी हैं जो होली में रंग-पानी से, आनन्द-उल्लास से, उमंग भरी हुड़दंग से दूर रहने का कोई न कोई बहाना ढूँढ़ ही लेते हैं और अपनी इस उपलब्धि पर गर्व करते हैं। महान वे भी हैं, जो अपने मन की विकृतियों, ग्रन्थियों से चिपके रहना चाहते हैं और इसलिए होली को गन्दा या गन्दगी का त्योहार बताकर, अपनी शेखी बघारते हैं।

अपन लोग तो सेलिब्रेशन का कोई न कोई बहाना ढूँढ़ने वालों में हैं। इसलिए, आपसे इतनी सी रिक्वेस्ट करते हैं कि कम से कम आज के दिन सारे बन्धन तोड़ के, गिले-शिकवे भुला के, भेदभाव मिटा के खुली हवा में आ जाइये और होली के मदमस्त रंगों में रंग जाइये।

 

 

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