गोबर गणेश से कौन परिचित नहीं होगा। हर उस घर में जहां नियमित पूजा-पाठ होता है वहां गोबर गणेश विराजते हैं। पंडितजी थोडा सा गोबर लेते हैं, शिवलिंगनुमा आकृति बनाकर उसे पूजा के चौके पर रख देते हैं और लीजिए हो गए गोबर गणेश तैयार, शुऱू हो जाती है पूजा।
लेकिन अपनी धुन के दीवाने कुछ लोगों ने इस बार की दीपावली के पूर्व देश को इस गोबर गणेश से प्रेरणा ले कर एक नया उपहार दिया है। यदि प्रयोग चल निकला तो गोबर गणेश लक्ष्मी संग हर घर में, दुकानों में विराजेंगे। इस प्रयोग को मूर्त रूप देने वाले लोगों में प्रमुख नाम है ओमप्रकाशजी का।
कौन हैं ये ओमप्रकाशजी तो उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के उत्थान को जिन लोगों ने करीबी से देखा है, अनेक हिंदू आंदोलनों को परवान चढते देखा है वे लोग जानते हैं कि ओमप्रकाशजी असल में कौन हैं।
एक समय था उत्तरप्रदेश का ही नहीं तो देश का केंद्रीय सत्ता प्रतिष्ठान भी ओमप्रकाश जी से नित्य सलाह मशविरा करता था। वही ओमप्रकाश जी, आज उम्र है 84 साल लेकिन गौभक्ति की धुन ऐसी चढी कि संघ प्रचारकी को नई परिभाषा दे डाली।
संगठन के माहिर माने जाते हैं संघ के प्रचारक, लोगों की परख का प्रशिक्षण ही दिन-रात उन्हें मिलता है, इसमें कई बार जीवन की रचनात्मकता लोगों की योजना-रचना करते करते ही कहीं छुप सी जाती है। और जब उम्र आखिरी के पडाव पर प्रचारक पहुंचता है तो लगता है कि अब क्या करें, सिवाय संगठन के क्या कर सकता है।
लेकिन ओमप्रकाश जी इसमें भी कुछ अलग निकले। गोवंश की रक्षा हो, गोवंश देश के आर्थिक विकास में इस मशीनी युग में भी सहयोग करता रहे, लोग-बाग गाय से जुडी अपनी महान संस्कृति के साथ जुडे रहें, यही उनके जीवन का स्वप्न बन गया।
उम्र के आखिरी पडाव पर उन्होंने संकल्प लिया और पिछले 10 सालों में एक से बढकर एक सफल प्रयोग दुनिया के सामने ला खड़े किए।
देश के तकनीकी विज्ञान से जुड जाने माने वैज्ञानिकों से वे मिले। दिल्ली आई आई टी के वैज्ञानिकों को साथ लेकर पहला काम किया कि गोबर गैस को सिलिंडरों में भरने की तकनीकी के सफल प्रयोग कर दिखाए। जरा सोचिए कि गोबर गैस को यदि सिलेंडर में भरने के छोटे छोटे प्लांट गांव गांव में खडे हो जाएंगे तो कैसी ग्राम्य आर्थिक क्रांति हो जाएगी। तो इस प्रयोग को उनके लगातार प्रयासों से आईआईटी के वैज्ञानिकों ने सफल किया। देश के अनेक जिलों में ये प्लांट प्रयोग के स्तर पर काम कर रहे हैं।
दूसरा काम जो उनके प्रयासों से हुआ कि गोमूत्र के एंटी बैक्टिरियल गुण को विभिन्न मंत्रालयों, सरकारों ने मान्यता दी, उन्होंने कुछ संस्थाओं को प्रेरित कर गोमूत्र से फिनाइल बनाने का काम शुरू किया, वह प्रयोग भी सफल हुआ। देश के अनेक अस्पताल, संस्थान, सरकारें अपने यहां साफ-सफाई के लिए इसका प्रयोग करने लगे हैं।
गोमूत्र से दवाएं बनाने के काम में उन्होंने विभिन्न आयुर्वेद शास्त्रियों को सक्रिय किया। अनेक रोगों के इलाज में गोमूत्र से बनी दवाओं के सफल प्रयोग उनकी प्रेरणा से देश मे अनेक स्थानों पर होने लगे।
इसी कडी में उन्होंने अब गोबर के इस्तेमाल के मूर्तिकला को एक नया आयाम दिया है। गोबर से बनने वाली मू्र्तियां जहां पर्यारवण के लिए अनुकूल है वहीं इनके निर्माण में पंचगव्य के प्रयोग से घर में सदैव शुभ वातावरण बना रहता है। इन मूर्तियों में रंग भी देसी यानी इकोफ्रेंडली, कोई साइड इफेक्ट पर्यावरण पर नहीं पडता।
शास्त्रों में लिखा है कि गोमूत्र में साक्षात गंगा और गोबर में लक्ष्मी जी का निवास रहता है। सो अब गोबर, देसी घी, गोमूत्र, गोदही और गोदुग्ध के इस्तेमाल से बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां घर लाकर आप इस बार की दीपावली पर अपने घर-आंगन-दुकान-प्रतिष्ठान को नूतन मंगल भाव से भर सकते हैं।
ओमप्रकाशजी अपने सहयोगियों बादाम सिंह, रामगोपाल, मुकेश कुमार और भारत भूषण के साथ गोरक्षा के काम को विलक्षण स्वरूप देने में रात-दिन जुटे हैं।
उनका कहना है कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से त्रस्त है, ऐसे में गोमाता की शरण में हमे जाना होगा। गोमाता प्रकृति का प्रतीक है, इसकी रक्षा में हमारी धरती और हमारे पर्यावरण की रक्षा का मंत्र छुपा हुआ है।
उन्होंने अब गोबर को औद्योगिक प्रतिष्ठानों से भी जोडने की ठान ली है। पिछले दिनों वे विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के सिलसिले में दिल्ली आए थे तो कंधे पर जो झोला लादा हुआ था उसमें भी गोबर भरा था, उनके दिमाग में भी दिन-रात गोबर ही भरा रहता है। हंसिए नहीं, उनके गोबर चिंतन ने गोबर को नई सृष्टि और समाज को गोवंश के प्रति नई दृष्टि दी है। गोबर से कार्ड बोर्ड, गोबर के गत्ते, गोबर का प्लाईवुड, गोबर से बनी विशेष प्रकार की लकडी और उनके फर्नीचर आदि जाने कितने गोबर से जुडे प्रयोग उनके दिमाग की उपज हैं और इसे अपने सहयोगियों के साथ वे विस्तृत आयाम देने में जुटे हैं।
उनके झोले में ऐसी ही गोबर और पंचगव्य से बनी वस्तुओं के नमूने हमेशा की तरह रखे रहते हैं, आप उनसे मिलें, वे अपने झोले से गोबर की कोई न कोई अनूठी चीज आपकी सेवा में प्रस्तुत कर देंगे।
गोबर गणेश की मूर्तियों व अन्य जानकारी के लिए संपर्क करें-
09412221735, 09198228888- ओमप्रकाशजी, 09868893106, 011-26178992- रामगोपाल जी, आर.के.पुरम, दिल्ली, 09412784837- भारत भूषणजी, नोएडा, 0121-2514820, 09412784840- बादाम सिंह, मेरठ
Sri राकेश जी को बधाई उन्होंने ithi achhi जानकारी दी. Vaakai yeh to baut achhi baat है. इस तरह से से लाखो करोडो लोगो को रोगजार मिलेगा. पर्यावरण को कितना फायदा होगा. देश का पशुधन बढेगा, देश का विकास होगा.
हमारे छत्तीसगढ़ में गावों में गोबर से सामन रखने के लिए टोकरिया बनायीं जाती थी , छोटे छोटे बर्तन की तरह होते थे इनमे सुखी वस्तुए रखते थे , अब प्लास्टिक के आने से गोबर की ये चीजे नहीं मिलती , अब केवल उपले ही मिलते है , यहाँ बैलो का भोज भी होता है , जिसे बैलाभात खाना कहते है , इसमें इनका जूठा भोजन सब लोग प्रसाद के रूप में खाते है ,
गोबर के उपयोग से इस देश की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने का स्वप्न देखने वाले ओमप्रकाश जी धन्य है।ईश्वर से प्रार्थना है कि ओमप्रकाश जी की कल्पनाएँ फलीभूत हो और भारत गौ,गणेश,गंगा,गीता और गायत्री के अमृत-तुल्य पंचामृत से समस्त विश्व का मंगलाभिषेक करेँ और प्राचीन भारतीय ग्राम सभ्यता पर आधारित विकास का संरक्षणवादी माँडल समस्त वसुंधरा हेतु अनुकरणीय हो।इतने सुन्दर आलेख के लिए धन्यवाद।