सामाजिक न्याय की बात आने पर बिदकते क्यूँ है कुछ लोग ?

अरविन्द विद्रोही

संसद भवन में डॉ भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा स्थल के समीप देश १६३ सांसदों ने सामाजिक न्याय की मांग को बुलंद करते हुये विगत बुधवार को धरना दिया| अपनी मांगो के लिए धरना देना ,ज्ञापन देना आदि संवैधानिक -लोकतान्त्रिक अधिकार भारत के सभी नागरिको को प्राप्त है और सांसद भी भारत के नागरिक ही है| अगर अनुसूचित जाती -अनुसूचित जनजाति के १६३ सांसद एक साथ लोकपाल में हिस्सेदारी यानि आरक्षण की मांग को लेकर धरना दे देते है तो इसमें बुराई क्या है ,यह समझ में नहीं आता है| सामाजिक न्याय के लिए भारत के सभी वर्गों ,सभी जातियो,सभी धर्मो का प्रतिनिधित्व प्रत्येक समिति ,प्रत्येक संस्था में करने में हर्ज़ ही क्या है? वंचितों को आगे लाकर समाज व देश की तरक्की में सभी की हिस्सेदारी करवाने से देश -समाज में समानता ही फैलेगी| समता और समानता समाज के लिए बहुत जरुरी तत्त्व है,भारतीय समाज को सामंतवादी सोच से बाहर आकर सामाजिक न्याय की दिशा में निरंतर अग्रसर होते रहना चाहिए| लोकजनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम विलास पासवान के नेतृत्व में बुधवार को अनुसूचित जाती-अनुसूचित जनजाति के १६३ सांसदों ने धरना देकर ,लोकपाल में सभी वर्गों -जातियो को शामिल किये जाने सम्बंधित ज्ञापन भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को देकर सामाजिक न्याय के एक सज़ग प्रहरी की भूमिका निभाई है |लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान एक दलित नेता के रूप में सैदेव अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे है| सशक्त लोकपाल के लिए चल रहे आन्दोलन और संभावित लोकपाल गठन में सामाजिक न्याय की अनदेखी यक़ीनन समाज के वंचित-दलित तबके की अनदेखी करने उनको पीछे धकेलने सरीखा कृत्य है | देश-समाज के बड़े तबके को देश के बड़े ,संवैधानिक निर्णयों को निर्धारित करने में भागीदारी ना देकर ,निर्णायक संस्थाओ में उनकी भागीदारी सुनिश्चित ना करके , आरक्षण ना देकर के देश -समाज को तोड़ने व आपसी कटुता उत्पन्न करने का काम डॉ लोहिया के अनुयायी कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे | आज डॉ लोहिया के एक शिष्य राम विलास पासवान ने सामाजिक न्याय के सवाल को लोकपाल गठन में उठा कर डॉ लोहिया के तात्कालिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष के सिधान्त को साकार कर दिया है| राम विलास पासवान ने टीम अन्ना और केंद्र सरकार की मंशा पर जो सवाल उठाये है कि दोनों पक्ष लोकपाल के पैनल में दलितों,पिछडो,महिलाओ सहित सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के प्रति गंभीर नहीं है , पूर्णतया सत्य ही है | सरकार और अन्ना टीम दोनों लोकपाल मसले पर तानाशाओ सा आचरण करती दिखाई देती है | अपनी बात के अलावा किसी की बात स्वीकार ना करने की अन्ना टीम की जिद्द ने उसका गैर लोकतान्त्रिक चेहरा सबके सामने ला ही दिया है | देश की दलित राजनीति में दलितों के हित में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान ने सदैव सार्थक लडाई लड़ी है ,पहल की है | लोकपाल के लिए चल रहे आन्दोलन ,उसके गठन की कवायत,के बीच लोकपालो की नियुक्ति में सभी वर्गों के लिए आरक्षण की मांग उठा कर राम विलास पासवान एक बार पुनः दलित राजनीति ही नहीं सामाजिक न्याय की लडाई के सबसे बड़े पैरोकार,सेनानी के रूप में सामने आये है | १६३ सांसदों की संख्या मामूली नहीं होती है और यह सिर्फ इन सांसदों की नहीं देश के सभी वंचितों,दलितों,महिलाओ तथा सामाजिक न्याय में विश्वास रखने वाले लोगो की मांग व आवाज है कि निर्णयों और अधिकारों में भागीदारी मिलनी ही चाहिए | डॉ राम मनोहर लोहिया के अनुययियो में से एक राम विलास पासवान ने बगैर राजनीतिक नफा-नुकसान की परवाह किये हक़ की जो आवाज़ बुलंद की है ,उस हक़ की लडाई में सभी समाजवादियो और डॉ लोहिया के लोगो को जुटना ही पड़ेगा|

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

1 COMMENT

  1. श्री विद्रोही जी,
    आपने कुछ लोगों के बिदकने का जो सवाल उठाया है, ये बहुत बड़ा सवाल है और इस पर सच्चाई लिखते ही प्रवक्ता के अनेक तथाकथित मानवतावादी और धर्म के ठेकेदारों को असहनीय परेशानी होने लगेगी और उनकी टिप्पणियों में सारी संस्कृति न जाने कहॉं गायब हो जायेगी| सामाजिक न्याय और इंसाफ की बात करना कुछ ऐसे लोगों को नागवार गुजरता है, जिन्हें ये गलतफहमी है कि उनके अलावा शेष सब लोग मूर्ख हैं| उन्हें मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी का और मनुमहाराज का वह कथन हमेशा याद रहता है, जिसमें कहा गया है कि हर एक व्यक्ति जाति की ही भांति अपने कर्म को भी साथ में लेकर जन्म लेता है| इसलिये ऐसे लोगों को ये कतई भी मुंजूर नहीं है कि उनके अलावा अन्य किसी को शासन, प्रशासन या निर्णय या न्याय प्रक्रिया में भागीदारी का कोई संवैधानिक या कानूनी हक मिलना चाहिये| गॉंधी की इसी गंदी सोच का दुष्परिणाम आज पूरा भारतवर्ष आरक्षण के रूप में दुष्परिणाम भुगतने को विवश है| यदि डॉ. अम्बेड़कर की सैपरेट इलेक्ट्रोल की मांग को मंजूरी देकर के भी गॉंधी ने धोखेबाजी नहीं की होती तो आज भारत में आरक्षण के नाम पर समाज में वैमनस्यता पैदा नहीं होती| अब गॉंधी एवं मनु के वैचारिक वंशजों को उसी प्रकार से सामाजिक न्याय के नाम से असहनीय पेरशानी होने लगती है| अभी भी समय है कि महिलाओं सहित सभी दबे-कुचले और वंचित वर्गों को सैपरेट इलेक्ट्रोल और हर एक क्षेत्र में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रदान कर दिया जावे, ताकि आने वाली पीढियॉं आरक्षण रूपी आवश्यक बना दी गयी समाजिक बुराई से मुक्त हो सकें|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक-प्रेसपालिका (पाक्षिक), जयपुर
    ०१४१-२२२२२२५, ९८२८५-०२६६६

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