बिहार-महाराष्ट्र, फिर मुम्बई फिर अँधेरी – अंत में क्या बाँटोगे जी?

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कभी धर्म (Religion), कभी जाति (Castism), कभी क्षेत्र (Regionalism) तो कभी वर्ण (Colour) – आए दिन कहीं न कहीं से समाचार प्राप्त होता ही रहता है। कभी धर्म के आधार पर कहीं बवाल हो जाता है तो कहीं जाति के आधार पर। कहीं क्षेत्रवाद से लोगों में आतंक एवं भय का माहौल पैदा हो जाता है तो कहीं वर्ण के आधार पर।

भारत के राजनेताओं (Indian Politicians) को आखिर हो क्या गया है? आखिर क्यों ये लोग भी अँग्रेजों की नीतियों का अनुसरण करते हुए निरीह एवं भोली-भाली जनता को बहला-फुसलाकर देश में नफरत एवं अलगाव पैदा करने पर तुले हुए हैं। इन शरारती ताकतों में सबसे पहला नाम शामिल है, हमारे देश के जानेमाने शक्तिशाली राजनेता बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackrey) और उनके कमअक्ल भतीजे – राज ठाकरे (Raj Thackrey) का।

आमची मुम्बई की तर्ज पर महाराष्ट्र के हितों की रक्षा करने वाले शिवसैनिक (Shiv Sainik) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS), आखिर क्यों अपने मकसद से भटककर अच्छे-खासे शांत माहौल को बिगाड़ने पर तुले हुए हैं। बाल ठाकरे एवं राज ठाकरे आज कहते हैं कि मुम्बई केवल महाराष्ट्र वालों की है, उत्तर-भारतीयों के लिए यहाँ कोई जगह नहीं। और उनके कुछ गिने-चुने आतंकी कार्यकर्ता उतर पड़ते हैं शहर की सड़कों पर आतंक मचाने के लिए।

बाल ठाकरे साहब, ये सब बचपन में होता था जब दो मौहल्लों के लड़के आपस में अपने- अपने इलाकों को लेकर मारपीट पर उतर पड़ते थे। “ये मेरा इलाका है! तू यहाँ कैसे आया? …चल भाग साले।” या फिर ऐसा अंडरवर्ल्ड में होता है जब बदमाशों के दो गुट किसी खास इलाके में वसूली के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। या फिर ऐसा करते हैं – गली-मौहल्लों के आवारा कुत्ते! जब एक मौहल्ले का कु्त्ता गलती से दूसरे मौहल्ले में घुस जाए तो उस मौहल्ले के कुत्ते मिलजुलकर उस बाहरवाले कुत्ते को या तो मार देते हैं या फिर मार-मार कर भगा डालते हैं।

लेकिन ठाकरे साहब! आप तो समझदार इंसान हैं, प्रतिष्ठावान हैं। फिर आखिर क्यों आप इस तरह की टुच्ची राजनीति करने पर तुले हुए हैं। अगर आप कहते हैं कि मुम्बई केवल महाराष्ट्र वालों की है तो क्या आप बताने की कृपा करेंगे कि महाराष्ट्र किसका है। शायद आपका जवाब होगा महाराष्ट्र वालों का। तो फिर आपकी जानकारी के लिए ये बताना जरूरी है कि आपके यहाँ कईं नदियाँ पड़ोसी राज्यों से आती हैं जैसे कि मध्यप्रदेश से नर्मदा। तो कई नदियाँ आपके यहाँ से पड़ोसी राज्यों में भी जाती हैं जैसे कृष्णा एवं गोदावरी। तो ठाकरे साहब क्या आप बाहर से आने वाली नदियों के पानी को फौरन सकते हैं या अपने यहाँ से बाहर जाने वाली नदियों को ही रोक लें। शायद आपके पड़ोसी राज्य भी किसी दिन इस मुद्दे पर आपके सामने तनकर खड़े हो जाएंगे। आज आप मुम्बई को भारत से अलग करने पर तुले हैं तो कल कोई नवी मुंबई, बाँद्रा या अँधेरी को मुम्बई से अलग करने लग जाएगा। धीरे-धीरे बात मौहल्लों और अंत में घरों के बँटवारे की आ जाएगी।

आप पाकिस्तानी इरादों को भी खूब अच्छी तरह से समझते हैं और पड़ोसी से लड़ने के लिए नित नया बहाना ढूँढते हैं। कभी पाकिस्तानी क्रिकेटर तो कभी पाकिस्तानी कलाकार। जरा कल्पना कीजिए कि वही पाकिस्तान जो आपके इलाके से महज कुछ किलोमीटर ही दूर है, अगर आप के महाराष्ट्र तथा आपकी मुम्बई पर हमला कर दे तो क्या आप अन्य राज्यों के निवासी भारतीय सैनिकों को भी अपने राज्य में आकर दुश्मन का सामना करने से रोक देंगे। कहाँ छुप गए थे आपके शिव सैनिक उस दिन जब भारतीय सुरक्षा गार्डों (National Security Guards) को दिल्ली से मुम्बई पहुँचने में घंटों का समय लग गया था? आतंकियों ने धाँय-धाँय करके कई निर्दोष आदमियों को मौत के घाट उतार रहे थे तब आप और आपकी सेना तो महज 15 मिनट की दूरी पर ही थे। आपके शिवसैनिक तो किसी को भी मारमार कर भगा सकते हैं तो उन 10 आतंकवादियों में आखिर ऐसा क्या खास था कि आप सब लोग अपने-अपने घरों में दुबककर टेलीविजन पर ही सारा कार्यक्रम होते हुए देखते रहे।

क्यों नहीं आपने उस समय उन सुरक्षा गार्डों को महाराष्ट्र में आने से रोक दिया जो कि उत्तर भारतीय थे? ठाकरे साहब! आपकी नाक के नीचे, समुन्दर के रास्ते वो आतंकवादी आपके इलाके में घुसे थे। आपके लोगों को मारा। और उनमें से एक तो अभी भी जीवित है। उस समय आप उन आतंकियों को अपने घर में घुसने से क्यों नहीं रोक पाए? आपके शिव सैनिक तो बहुत बहादुर हैं, नहीं? तो फिर उन 10 आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए आपकी लाखों की शिवसेना और मनसे आगे क्यों नहीं आई? दक्षिणी भारत से आपके राज्य में आने वाले मानसून के बादलों पर भी पाबंदी लगा दें ताकि वे आपके यहाँ आकर न बरसें क्योंकि पानी बरसाना ही तो बादलों का काम है। ऐसे ही उन पुरबाइयों को भी रोक लें जो बिहार से होकर आपके यहाँ आकर आपको हवा देती हैं। अरे आप बात करते हैं – मुम्बई हमारी है, हम बाहर वालों को नहीं घुसने देंगे अथवा यहाँ काम नहीं करने देंगे। क्या आपके पास उतने लोग या साधन हैं जो डेढ़ करोड़ की आबादी वाले मुम्बई शहर के सभी कार्य पूरे कर सकें, जैसे ऑटो-टैक्सी चलाना, सफाई करना, गंदगी साफ करना, कचरा उठाना, घरों के काम करना, मेहनत-मजदूरी करना आदि।

चलो चाचा जी तो पुरानी पीढ़ी के हैं और बदलते समय के अनुसार खुद को नहीं बदल सकते क्योंकि – अरे भाई! चिकने घड़े पर भी कभी नयी मिट्टी चढ़ती है? लेकिन राज ठाकरे साहब (Raj Thackrey), आप उत्तर-भारतीयों से क्यों इतने खफा-खफा रहते हैं। आखिर आप तो नई पीढ़ी के समझदार युवा नेता हैं, क्या आपको एहसास नहीं कि क्षेत्रवाद की इस ओछी राजनीति से किसका कितना फायदा होगा और किसका कितना नुकसान? आपके टुच्चे बयानों से फायदा तो केवल आपका ही होगा – अगले चुनावों में चार की जगह पाँच सीटें मिल जाएंगी। लेकिन नुकसान – नुकसान उस गरीब आदमी का होगा जो कि अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर परदेस आया है और जिसका सारा परिवार उसके द्वारा कमाए गए पैसे से अपना पेट भरता है।

मुम्बई के राजाओं! अगर आप वास्तव में अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहते तो उनके लिए रोजगार पैदा करते, जनता की समृद्धि एवं सुरक्षा के के लिए प्रयास करते। क्या केवल टैक्सी-रिक्शा चलाने से आपके लोग (आपके ही अनुसार) अधिक अमीर हो जाएँगे। आदरणीय चाचा-भतीजा अब तो जागो! समय वास्तव में ही बदल चुका है। आज का भारतीय जन ये जान चुका है कि ये सब हिन्दु-मुसलमान, ठाकुर-दलित, पंजाबी-बिहारी से कुछ फर्क नहीं पड़ता। आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है – पैसा।

अगर भारत के विभिन्न प्रदेशों से फिल्मी कलाकार आपके यहाँ आकर काम नहीं करते तो क्या कोई आज मुम्बई को सपनों का शहर कहता? या फिर क्या आपका शहर इतना समृद्ध और विकसित हो पाता जितना कि आज है?

जी हाँ, राज और बाल ठाकरे साहेब, यही हकीकत है। आज का आम भारतवासी केवल तरक्की, समृद्धि और शांति चाहता है न कि धर्म-जात-पात या इलाका। आज पूरा विश्व एक परिवार बन चुका है। हर कोई एक दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के साथ मिलकर ही प्रगति कर रहा है। और इसीलिए एक दूसरे के घर पर भी जाता है ताकि रिश्ते मधुर बनें और विकास हो। ऐसे में एक दूसरे के बीच प्यार पैदा करने की बजाए आप लोग नफरत पैदा कर रहे हैं।

अगर आपका एक हाथ कुछ कमजोर है तो क्या आप उसे अपने शरीर से अलग कर देंगे? ठीक इसी प्रकार हमारा बिहार भी पिछड़ा हुआ है, गरीब है तो फिर क्या उसे भारत से अलग कर दिया जाए? धिक्कार है आपके भारतीय होने पर! यह सब कितना सही है? आखिर इसका नतीजा क्या होगा? क्या आप ये सब नहीं जानते? यदि नहीं जानते तो मेरे अगले लेखों को अवश्य पढ़ना जी।

ठाकरे साहेबान! आज एक बात जान लीजिए, भारत वैसे ही चारों ओर से जाने-अनजाने खतरों से घिरा हुआ है। इस नाजुक समय पर यदि हम अन्दर वाले ही देश को तोड़ने और अलग करने की बात करेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब चीन, पाकिस्तान, तालीबान या कोई और आपकी मुम्बई पर ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान पर राज कर रहा होगा। ऐसे समय में देश को एक सूत्र में बाँधकर एवं मिलजुलकर तरक्की करने की आवश्यकता है न कि बेकार के ऊल-जुलूल मुद्दों में उलझकर फूट और आपसी रंजिश पैदा करने की। इससे न तो भारतवर्ष रहेगा और न महाराष्ट्र और न ही आमची मुम्बई। अलग करना है तो नफरत को करो, बाँटना है तो प्यार बाँटो और अगर भगाना है तो लालच को भगाओ जी। क्या आपने एक लकड़ी और लकड़ियों के गट्ठे को तोड़ कर नहीं देखा। साहब आप अकेले को तोड़ दिया सकते हैं लेकिन झुण्ड को नहीं। शायद बचपन में पढ़ा होगा कहीं।

Bihar-Maharashtra, then Mumbai then Andheri – What will you divide finally?

-आपका अपना,
मन

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