बिहार:प्रशंसा के पात्र बनें बदनामी के नहीं

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निर्मल रानी
बिहार देश के प्रतिभा संपन्न राज्यों में सबसे समृद्ध राज्य गिना जाता है। विश्व को अंकगणित में संपूर्णता प्रदान करने वाले गुप्तकाल के महान गणितज्ञ आर्यभट से लेकर महान तर्कशास्त्री वात्स्यायन तक तथा दसवें सिख गुरु गोविंद सिंह से लेकर मुगल शहंशाह शेरशाह सूरी जैसे शासक की जन्मभूमि बिहार ही रही है। साहित्य से लेकर राजनीति तक के क्षेत्र में बिहार ने रामधारी सिंह दिनकर व नागार्जुन से लेकर डा० राजेंद्र प्रसाद,जयप्रकाश नारायण तथा जगजीवन राम जैसी कई महान विभूतियां दी हैं। इसी राज्य में जन्मे चार महान लोग विधानचंद राय,राजेंद्र प्रसाद,जयप्रकाश नारायण तथा बिस्मिल्लाह खां को भारत रत्न हासिल हो चुका है। बिहार में प्रतिभाओं के जन्म लेने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। देश के प्रत्येक आठवें प्रशासनिक अधिकारी के बाद एक बिहारी प्रशासनिक अधिकारी देखा जा सकता है। बिहार ने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में सबसे अग्रणी रहने का जो कीर्तिमान स्थापित किया था वह आज भी कायम है। परंतु इन सब विशेषताओं के बावजूद गत् चार दशकों में बिहार ने राजनीति का एक ऐसा काला अध्याय देखा जिसने बिहार को बदनामी के सिवा और कुछ नहीं दिया। इस दौर में न केवल राजनीति भ्रष्ट से भ्रष्टतम होती गई बल्कि इसके दुष्परिणाम सामाजिक रूप से भी बहुत ज़्यादा दिखाई दिए। अपराध,गरीबी,जातिवाद, गंदगी,अशिक्षा, अज्ञानता,अंधविश्वास, अराजकता जैसी अनेक विसंगतियों को इस दौरान फलने-फूलने का खूब मौका मिला।
परंतु जबसे भारत रत्न एवं पूर्व राष्ट्रपति डा० एपीजे अब्दुल कलाम ने दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत बिहार राज्य से किए जाने का आह्वान किया तथा इस बात की ज़रूरत महसूस की कि देश की तरककी के लिए बिहार का विकास होना बेहद ज़रूरी है,उस समय से बिहार ने अपनी प्राचीन समृद्ध विरासत की ओर वापसी के कदम उठाने पुन: शुरु कर दिए हैं। सुखद यह है कि राष्ट्रपति कलाम की मंशा को पूरा करने का जि़म्मा बिहार में वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने पूरी ईमानदारी तथा समर्पण के साथ उठाया हुआ है। बिहार के विकास की राह में पहला मील का पत्थर उस समय लगाया गया था जबकि पटना में पहला अप्रवासी सम्मेलन नितीश कुमार द्वारा बुलाया गया और राष्ट्रपति कलाम ने अप्रवासी भारतीयों के समक्ष बिहार की तरक्की का प्रस्ताव रखा तथा इसके सूत्र बताए। इस सम्मेलन में निवेशकों ने जहां अपनी कई समस्याएं रखीं वहीं मुख्यमंत्री ने इन मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने व विभिन्न समस्याओं से मुक्ति दिलाने का भी बीड़ा उठाया। परिणामस्वरूप मात्र एक दशक के दौरान ही राज्य में चारों ओर चमचमाती सडक़ों का जाल बिछ चुका है, लगभग निर्बाध रूप से विद्युत की आपूर्ति हो रही है,बड़े-बड़े लंबे बांध बनाकर बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को बाढ़मुक्त करने के प्रयास किए जा चुके हैं। प्रदेश में जहां कई नए विद्युत संयंत्र बनाए जा चुके हैं वहीं अनेक नए शिक्षण संस्थान व अस्पताल आदि भी खोले जा चुके हैं।
तुलनात्मक दृष्टि से राज्य में काम करने की गति पहले से काफी तेज़ हो गई है। कानून व्यवस्था में भी सुधार होता दिखाई दे रहा है। और सरकारी कर्मचारियों में भी जवाबदेही की प्रवृति पैदा होने लगी है। परंतु इन सब विशेषताओं के बावजूद अब भी इसी राज्य से कई खबरें समय-समय पर ऐसी आती रहती हैं जिन्हें सुनकर बिहारवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है। उदाहरण के तौर पर परीक्षा के दौरान नकल करने व नकल कराने की प्रवृति भले ही देश के दूसरे राज्यों में भी क्यों न हो परंतु मीडिया द्वारा नकल संबंधी बिहार की खबरों को खासतौर पर प्रचारित किया जाता है। निश्चित रूप से यह स्थिति बिहार के लिए बदनामी का एक बड़ा कारण बनती है। अभी पिछले दिनों बिहार स्टेट स्टाफ सलेक्शन कमीशन अर्थात बीएसएससी द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में सम्मिलित होने वाले कई परीक्षार्थियों को ब्लू टुथ तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाईस के माध्यम से नकल कराते पकड़ा गया। गिरफ्तार किए गए 28 लोगों के पास 20 सिम कार्ड,एक लेपटॉप, दो प्रिंटर तथा 35 मोबाईल ज़ब्त किए गए। नकल में इतनी अत्याधुनिक तकनीक के प्रयोग की दूसरी मिसाल िफलहाल और किसी राज्य से नहीं सुनी गई।
गत् वर्ष इसी नकल के चलते बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड ने मैट्रिक की परीक्षा में परीक्षा के दौरान नकल रोकने से लेकर उत्तर पुस्तिका की जांच-पड़ताल तक में काफी सख्ती दिखाई। परिणामस्वरूप 2016 की मैट्रिक की बोर्ड परीक्षा में सम्मिलित लगभग साढ़े पंद्रह लाख परीक्षार्थियों में केवल 46.66 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो सके। अर्थात् 2016 का सफलता प्रतिशत 2015 की तुलना में 28 प्रतिशत कम रहा। गौरतलब है कि 2015 में मैट्रिक परीक्षा के दौरान ही बिहार के एक स्कूल की बहुमंजि़ला इमारत की परीक्षा के दौरान ली गई एक ऐसी फोटो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई थी जिसमें दीवारों पर चढ़े दर्जनों लोग खुलेआम अपने संबंधी परीक्षार्थियों को नकल कराने में लगे हुए थे। लगभग प्रत्येक वर्ष बिहार बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान नकल से संबंधित खबरें आती ही रहती हैं। इनमें राज्य के जहानाबाद,छपरा,मोतिहारी,भागलपुर,वैशाली,दरभंगा,शेखपुरा,गया तथा मुज़फ्फरपुर जि़लों की खबरें प्रमुखता से होती हैं। जून 2016 में बिहार इंटरमीडिएट के दो कथित टॉपर्स ने राज्य की उस समय बहुत बदनामी कराई जबकि टॉपर होने के बावजूद यह दोनों ही छात्र एक साधारण से साक्षात्कार का सामना नहीं कर सके। परिणामस्वरूप इनकी कथित योग्यता पर संदेह के चलते इनकी पुन: परीक्षा ली गई जिसमें यह दोनों ही नकली टॉपर्स फेल हो गए। इस पूरे प्रकरण में बिहार उच्च न्यायालय के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की समिति का गठन किया गया था।
सवाल यह है कि जिस राज्य में शिक्षा,साहित्य,गणित, विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों की एक से बढक़र एक प्रतिभाओं ने जन्म लिया हो उस राज्य से संबंध रखने वाले कुछ लोग यदि राज्य की बदनामी का कारण बनें तो यह कतई उचित नहीं है। बिहार ने पिछले दिनों शराब बंदी के समर्थन में लगभग 12 हज़ार किलोमीटर की विशाल मानव श्रृखंला बनाकर पूरे विश्व को शराब के विरुद्ध एक मज़बूत व सकारात्मक संदेश देने की सफल कोशिश की। ऐसे प्रयास जहां राज्य का नाम रौशन करते हैं तथा इस प्रकार के आयोजनों से जहां बिहार से संबध रखने वाले समस्त बिहारवासियों का सिर ऊंचा होता है वहीं नकल करना व कराना,खुले में बैठकर शौच करना,जगह-जगह पान व खैनी खाकर थूकते रहना, ग्रामीण क्षेत्रों में कई-कई दिनों तक स्नान न कर बीमारियों को न्यौता देना,चलती ट्रेन की अपनी मनचाही जगह चेन खींचकर उसे रोकना जैसी कई और बातें ऐसी हैं जो अभी भी राज्य को बदनामी के कलंक से मुक्त नहीं कर पा रही हैं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी पिछले दिनों यह स्वीकार किया कि हालांकि बिहार का इतिहास बेजोड़ है परंतु कुछ शक्तियां बिहार को लेकर दुष्प्रचार कर रही हैं। बेशक जो शक्तियां बिहार का विकास नहीं चाहतीं वे ऐसे अवसरों की तलाश में रहती हैं जिससे उन्हें दुष्प्रचार का मौका मिले। ऐसे में यह बिहारवासियों का दायित्व है कि वे अपनी कारगुज़ारियों से बिहार को प्रगति एवं विकास के मार्ग पर ले जाने में अपना योगदान देते हुए प्रशंसा के पात्र बनें बदनामी के नहीं।
निर्मल रानी

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