निशात खानम
बिहार के बदलते परिदृश्य का समाज के सभी वर्गों ने स्वागत किया है। आशाओं और आंकाक्षाओं के अनुरूप राज्य सरकार ने जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा ध्यान दिया है उनमें स्वास्थ्य सेवा भी शामिल है। इनके लिए सरकार ने जमीनी स्तर से योजनाओं को अमल में लाना शुरू किया है। प्राथमिक चिकित्सालयों, जिला चिकित्सालयों और राज्य स्तरीय चिकित्सालयों का उन्नयन कर उन्हें आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। चिकित्सकों, नर्सों, दक्ष स्वास्थ्य कर्मियों और अस्पताल प्रबंधकों की नियुक्ति की गई है। पूरे राज्य में एम्बुलेंस सुविधा के साथ ही चलंत चिकित्सा वाहनों की व्यवस्था की गई है। मरीजों को फौरी राहत पहुंचाने के लिए आपातकालीन सेवा के तहत एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई है। इसके लिए राज्य सरकार ने टॉल फ्री नबंर 102 और 108 शुरू किया है, जिससे संपर्क कर मरीजों को वक्त रहते अस्पताल पहुंचाया जा सके। इसके अलावा निजी भागीदारी के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में एक्सरे यूनिट, पैथोलॉजी जांच केन्द्र, अस्पताल रख रखाव सेवाओं, ब्लड स्टोरेज सेन्टर, ब्लड बैंक और चिकित्सा इकाई की व्यवस्था की गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी सरकार की स्वास्थ्य नीति सराहनीय है। राज्य के पिछड़े ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधा का विस्तार और सुदृढ़ीकरण करने के कई सफल कार्यक्रम क्रियान्वित किए गए हैं। इसके लिए राज्य के सभी 534 प्रखंडों में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित की गई है और उनमें से 480 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 24 घंटे सुविधा उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ साथ विद्यालय स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत विद्यालय में नामांकित प्रत्येक बच्चे का नियमित वार्शिक स्वास्थ्य परीक्षण करने के उद्देश्य से एजेंसी का चयन कर विद्यालय में स्वास्थ्य शिविर लगाकर बच्चों की स्वास्थ्य जांच प्रारंभ की गई है। स्वास्थ्य प्रक्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाने के लिए बिहार सरकार ने राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई गैर सरकारी स्वंयसेवी संस्थाओं के साथ समझौता भी किया है। सरकार के इन प्रयासों का ही नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों में उपचार के लिए पहले जहां औसतन सिर्फ 39 रोगी प्रतिमाह उपस्थित होते थे, वहीं अब यह संख्या 5000 प्रतिमाह हो गई है। यह प्रमाण है कि अब सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर सुविधा मिल रही है।
स्वास्थ्य सुधार की दिशा में सरकार की पहल सराहनीय कही जा सकती है। परन्तु अब भी इसमें कई स्तरों पर खामियां हैं। पिछले 7-8 वर्षों के शासन के दौरान स्वास्थ्य मिशन नितीश सरकार की पहली प्राथमिकता जरूर है लेकिन कई जिलों में इसमें सुधार की रफ्तार काफी धीमी है। जिसके लिए सरकार को कमर कसने की जरूरत है। विशेषकर बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में इसकी पारदर्शिता में कुछ खामियां दिखाई देती हैं। दरभंगा से लगभग 11 किलोमीटर दूर बहादुरपुर प्रखंड स्थित कमलपुर गांव इसका उदाहरण है। तीन हजार की आबादी वाला यह गांव डायरिया, मियादी बुखार अर्थात टाईफाइड और हैजा जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं।
यह इलाका कमला, कोसी और गेहूंआ नदियों से प्रभावित है। बाढ़ पीड़ित क्षेत्र होने की वजह से ऐसी बीमारियां यहां के लिए आम बात है। गांव के 35 वर्षीय राधे यादव के अनुसार स्वास्थ्य केन्द्र में इलाज के लिए कोई विशेष सुविधा प्राप्त नहीं है। डॉक्टर की नियुक्ति अभी तक ठीक से नही हुई है। अलबता नर्स है, परंतु यदा-कदा ही उनका दर्शन होता है। सरकार के तय कार्यक्रमों के अनुसार सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं जिलों के मुख्य अस्पतालों में फ्री दवा वितरण की व्यवस्था है लेकिन यहां के स्वास्थ्य केंद्र को ऐसी सुविधा नसीब नहीं है।
यह सच्चाई केवल एक कमलपूर गांव की नहीं है बल्कि बिहार के कई जिले और उसके अंतगर्त प्रखंड ऐसी समस्याओं से ग्रसित है, जहां सरकार द्वारा चलाया जा रहे कार्यक्रम का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य की दिशा में उठाए जा रहे कदम में खामी है बल्कि कमी उस स्तर से षुरू होती है जहां से इन योजनाओं को लागू करना होता है। कभी देश के सबसे पिछड़े और बीमारू राज्य का दर्जा पाने वाला बिहार अब अपने इस छवि से बाहर आता नजर आ रहा है।
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक राज्य के सभी क्षेत्रों में विकास की बयार बहती नजर आ रही है। यही कारण है कि एक तरफ जहां उसे साक्षरता के लिए दशक अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है तो दूसरी तरफ अन्य राज्य उसे अपना आदर्श मानकर विकास का स्वरूप तय करने लगे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर कौन है जो इनकी बदहाली का जिम्मेदार है? क्या कारण है कि राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास के लक्ष्य में चूक हो रही है? यहां सवाल सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं का नहीं है बल्कि उन वास्तविक हकदारों तक पहुंच की है, जो वर्षों से इसका इंतजार कर रहे हैं।(चरखा फीचर्स)