पाक से बात हो और जमकर हो

Lahore: Prime Minister Narendra Modi is greeted by his Pakistani counterpart Nawaz Sharif on his arrival in Lahore on Friday. PTI Photo/ Twitter MEA(PTI12_25_2015_000195B)

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

नरेंद्र मोदी जैसे ही 25 दिसंबर को अचानक लाहौर पहुंचे, मैंने भारतीय और पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर उनकी इस पहल का हार्दिक स्वागत किया था लेकिन साथ ही कहा था कि उन्होंने जबर्दस्त जुआ खेला है। जब-जब भी दोनों देशों के बीच शांति की बात चलती है, कोई न कोई हादसा हो जाता है। वह हादसा आतंकी हो या कूटनीतिक हो या राजनीतिक हो। जब नवाज़ शरीफ मोदी के शपथ समारोह में दिल्ली आए थे तो आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में हमारे दूतावास पर हमला बोल दिया था। अब भी जबकि दोनों देशों के अफसर मिलनेवाले हैं आतंकवादियों ने सिर्फ पठानकोट में हमारे वायुसेना के अड्डे को उड़ाने की कोशिश ही नहीं की बल्कि मज़ारे-शरीफ और जलालाबाद के हमारे दूतावासों पर हमला बोलने की चेष्टा की। मुझे इसकी शंका पहले से ही थी। इसीलिए मैंने 25 दिसंबर को ही कहा था कि यदि ऐसी कोई घटना हो गई तो मोदी क्या मुंह दिखाने लायक रहेंगे? पठानकोट में जैसे ही हमला हुआ, मैंने दोनों देशों के चैनलों पर कहा कि मोदी और नवाज़, दोनों को मिलकर संयुक्त बयान जारी करना चाहिए और नवाज़ को अपने आतंकियों के संरक्षकों के विरुद्ध तत्काल सख्त कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन दोनों प्रधानमंत्री सोते रह गए। इस बीच देश की जनता और विरोधी नेताओं के बीच मोदी की दाल पतली हो गई। 56 इंच की सीना सिकुड़कर छह इंच का रह गया। अब देरी से हुआ संवाद सिर्फ बातचीत बनकर न रह जाए, बल्कि ठोस कार्रवाई में बदल जाए तो अभी भी मोदी की लाहौर पहल की सार्थकता बनी रह सकती है।

अब भारत के विपक्षी नेता ही नहीं, भाजपा और संघ के भी कई लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ होनेवाली वार्ता को भंग कर दिया जाए। वे सुषमा स्वराज को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। मैं पूछता हूं कि क्या बातचीत बंद कर देने से आतंक बंद हो जाएगा? आप युद्ध नहीं छेड़ना चाहते हैं। आप में इतनी हिम्मत भी नहीं है कि आप आतंकियों का ठेठ तक पीछा कर सकें याने ‘हाॅट परस्यूट’ कर सकें तो जो हथियार आप चला सकते हैं, वह भी क्यों नहीं चलाना चाहते? आखिर युद्ध के बाद भी बात ही करनी पड़ती है। महाभारत के युद्ध के समय तो रोज़ शाम को कौरवों और पांडवों में बात होती थी या नहीं? अब तो बात होनी ही चाहिए, और जमकर होनी चाहिए। भारत को मियां नवाज़ से पूछना चाहिए कि इन आतंकियों को आप भारत और पाक दोनों का साझा दुश्मन मानते हैं या नहीं? यदि मानते हैं तो उनसे निपटने के लिए तुरंत कोई साझी रणनीति क्यों नहीं बनाते? दोनों देशों का भला इसी में है।

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