द्वि ध्रुवीय विकार (Bipolar disorder)-

2
513

bipolar(इस विकार के लियें पूरे लेख मे BD का प्रयोग किया जायेगा)

इस विकार को उन्माद-अवसाद विकार (manic-depressive illness) भी कहते हैं। यह मस्तिष्क से संबधित ऐसा विकार है जिसमे पीड़ित व्यक्ति की मनोदशा मे (mood) लगातार बदलाव आते रहते हैं।ये जीवन के सामान्य उतार चढ़ाव नहीं होते, इसकी वजह से व्यक्ति की रोज़ के काम काज करने की क्षमता कम होती जाती है।यह  मनोरोग असाध्य नहीं है।

लक्षण-

BD मे मनोदशा बदलाव के प्रकरण   (mood episode) होते रहते हैं, ये बदलाव बहुत  प्रखर होते हैं।अत्यन्त ख़ुश अति उत्साहित स्थिति को उन्मादित स्थिति (manic) कहते हैं। इसके ठीक विपरीत स्थिति मे पीड़ित व्यक्ति बहुत दुखी और निराशावादी हो सकता है, इसे अवसाद की स्थिति(depressive episode) कहते हैं। शक्ति, सक्रियता, व्यवहार और नींद मे दोनो स्थितियों मे बहुत बदलाव आजाता है।

उन्मादित मनोदशा के लक्षण-

1 मनोदशा मे उछाल (high) सा आ जाता है।

2 चिड़चिडापन और बेतुकापन व्यवहार मे आता है।

3 बहुत ज़्यादा, बहुत ज़ोर से या बहुत तेज़ी से बोलना। एक बात से दूसरी बात पर अचानक आजाना।

4 नये नये काम हाथ मे ले लेना फिर छोड़ देना।

5 बेचैनी, नींद कम आना।

6 अपनी क्षमताओं पर अवास्तविक भरोसा।

7 आवेगी व्यवहार (impulsive) ख़तरों से खेलना, आवेगी रतिक्रया । आवेग मे अधिक ख़र्चा करना या व्यवसाय मे लगाना।

अवसाद की मनोदशा के लक्षण-

1 एक लम्बे समय तक पीड़ित व्यक्ति दुखी रहता है।

2 किसी भी काम मे रुचि लेना समाप्त हो जाता है।

3 रति क्रिया से भी अरुचि हो जाती है।

4 थकान और सुस्ती छाई रहती है।

5 एकाग्र होने, स्मरण करने और निर्णय लेने मे दिक्क़त होती है।

6 बेचैनी रहती है।

7 खाने और सोने की आदतों मे बदलाव आजाता है।

8   आत्महत्या के विचार आते हैं। आत्महत्या कर सकते हैं या उसकी कोशिश कर सकते हैं।

BD मे कभी कभी उन्माद (mania) के लक्षण इतने तीव्र नहीं होते व्यक्ति सामान्य से ज़्यादा ख़ुश नज़र आने लगता है। परिवार के लोग कभी कभी इसे पहचान नहीं पाते। इसे हायपोमेनिया (hypomania) कहते हैं। इलाज न होन से यह बढ़ सकता है।

BD मे कभी कभी मनोदशा मे उन्माद और अवसाद लगभग साथ साथ होते है इसे मिश्रित BD   कहते है।कभी कभी BD के लक्षण इतने तीव्र होते हैं कि उन्माद की  स्थिति में मानसिकविकार (psychotic symptoms)  के लक्षण जैसे  भ्रम और भ्रान्तियाँ (hallucinations or delusions) उत्पन्न होने लगती हैं। व्यक्ति को लग सकता है कि वह बहुत अमीर है या ताकतवर या उसके पास सत्ता है जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है।इसके विपरीत अवसाद की स्थिति मे भ्रम हो सकता है कि सब पैसा ख़त्म हो गया है कुछ नहीं बचा या कोई अपराध कर दिया है।,इसलियें तीव्र BD  से पीड़ित व्यक्ति जिनमे ये लक्षण उभरते हैं उन्हे   शिजोफ्रैनियां (schizophrenia)  से ग्रस्त मानकर ग़लत निदान की संभावना होती है क्योंकि ऐसे लक्षण उसमे भी होते हैं। अनुभवी मनोचकित्सक दोनो मे अन्तर कर लेते हैं।

BD   मनोरोग के कारण स्कूल की पढ़ाई मे, काम काजी लोगों के काम पर और रिश्तों पर बुरा असर पड सकता है। आरंभ मे इसका निदान मुश्किल होता है और यह बडे मनोरोग की तरफ संकेत भी होता है। कुछ रोगी बीमारी के दो प्रकरणो के बीच कुछ सामान्य समय बिताते हैं, पर कुछ को अवसाद उन्माद के बीच मे सामान्य समय नहीं मिलता।

प्रकार

BD1-अवसाद और उन्माद के लक्षण बहुत तीव्र होते हैं कि मरीज़ को अस्पताल मे भर्ती करवाना पड़ सकता है। व्यक्ति के व्यवहार मे बहुत अन्तर आजाता है। उन्माद और अवसाद के लक्षण एक से दो सप्ताह तक बने रहते हैं।

BD2-इस प्रकार के विकार मे अवसाद ज्यादा होता है उन्मादित अवस्था कम तीव्र (hypomanic) होती है।

एक तीसरे प्रकार के मे BD  मे BD1 और BD2 के मुक़ाबले लक्षण बहुत कम होते हैं इसलियें कभी कभी निदान करना मुश्किल होता है कि ये BD है या सामान्य मनोदशा के बदलाव (mood swings)।

सायक्लोथैमिया (Cyclothymia)-मे अवसाद और उन्माद के लक्षण और भी कम होते हैं, पर मनोदशा मे बदलाव महसूस किये जा सकते हैं।

एक अनुभवी और कुशल मनोचकित्सक BD की सही पहचान कर सकता है।

कारण-

काफ़ी अनुसंधानो के बाद यह माना जाता है कि BD का कोई एक कारण नहीं होता कई कारणों के होने से यह मनोरोग होने की संभावना होती है।

अनुवाँशिक-अक्सर किसी परिवार मे BD कई लोगों को हो सकता है। माता पिता या भाई बहन को होने से संभावना अधिक हो जाती है BD  होने की ,पर यह ज़रूरी नहीं है।कुछ जीन्स की बनावट BD होने की संभावना बढ़ा देती  है।

मस्तिष्क संरचना और कामकाज-

मस्तिष्क की संरचना मस्तिष्क की इमेजिंक से अध्ययन करने पर मालूम पड़ा है कि BD से ग्रस्त लोगों और सामान्य व्यक्तियों के मस्तिष्क मे कुछ अंतर होते हैं।शिज़ोफ्रेनिया(schizophrenia) तथा कुछ  अन्य रोगो मे भी अंतर आते हैं पर इस पर अभी और अनुसंधान हो रहे हैं।

उपचार-

BD  एक ऐसा रोग है जिसके पूरी तरह ठीक होने की संभावना नहीं है परन्तु इसका इलाज संभव है जिससे पीडित व्यक्ति की मनोदशा मे आये बदलाव कम होने लगते है, मनोदशा स्थिर रहने लगती है। यह ज़रूरी है कि व्यक्ति और उसके परिवार वाले मनोदशा की सही जानकारी मनोचिकित्सक को दें कुछ भी छुपायें नहीं।

BD के उपचार के लियें अधिकतर मूड स्टेबिलाजर दवाइयां कुछ और दवाइयां दी जाती हैं जो मनोचिकित्सक मरीज़ की जांच के बाद निश्चित करते हैं। दवाइयों की मात्रा मरीज़ के हाल के अनुसार कम ज्यादा करनी पड़ती हैं।मुख्य दवाइयाँ मूड स्टेबिलाइ़ज़र और ऐन्टी डिप्रैसेन्ट होती हैं। इसके अलावा सायकोथैरेपी भी दी जाती है। कभी कभी परिवार के अन्य सदस्यों को भी उसमे शामिल करना पड़ता है। इलाज से मरीज़ की दशा मे बहुत सुधार आता है, यदि दवाइयाँ और सायकोथैरैपी से लाभ नहीं होता तो इलैक्ट्रोकन्वलसिव थिरैपी भी दी जा सकती है(Electroconvulsive Therapy )(ECT)। आजकल यह बहुत सुरक्षित मानी जाती है

2 COMMENTS

  1. बहुत जानकारी पार्क लेख है बीनू जी. हो सके तो कृपया डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर्स के बारे में जानकारी दीजिये.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here