मुलायम के पैंतरों में उलझती भाजपा

mulayamअमिताभ त्रिपाठी

पिछले दो दशक से भी अधिक समय से मुलायम सिंह यादव देश की राजनीति के एक प्रमुख कलाकार रहे हैं । बीते दो दशकों में उन्होंने अनेक रंग दिखाये हैं पर पिछले कुछ दिनों से संसद के अंदर से लेकर बाहर तक जो नया रंग वे दिखा रहे हैं वह एक बार उनकी राजनीतिक कुशलता को दर्शाता है।

1989 में उत्तर प्रदेश में सरकार के मुखिया रहते हुए जिस भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चले राममंदिर में कारसेवा करने अयोध्या आये निर्दोष कारसेवकों पर अंधाधुंध फायरिंग करवाकर देश के एक समुदाय विशेष के मध्य मसीहा की छवि प्राप्त करने वाले मुलायम सिंह यादव के लिये वही आडवाणी अब कलियुग के राजा हरिश्चन्द्र हो गये हैं। अब आडवाणी के लिये मुलायम सिंह अपने पुत्र की सरकार को झाड लगा रहे हैं।

अभी कुछ दिनों पूर्व संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान चर्चा में भाग लेते हुए सपा अध्यक्ष ने भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह की प्रशंसा की और नये राजनीतिक कयास को जन्म दे दिया। राजनाथ सिंह ने भी मुलायम सिंह यादव की ओर गर्मजोशी दिखाई। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा और लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने भी बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा मुलायम सिंह यादव पर की गयी टिप्पणी को लेकर आक्रामक तेवर दिखाये और मुलायम सिंह को सदन का सम्मानित सदस्य बताया।

इन सभी घटनाक्रमों के बाद नये राजनीतिक समीकरणों को लेकर उत्सुकता बढ गयी है। तो क्या माना जाये कि मुलायम सिंह यादव राजग के साथ आ सकते हैं जैसा कि राजनाथ सिंह ने सम्भावना व्यक्त की थी?

वास्तव में इस पूरे घटनाक्रम का भाजपा की आन्तरिक राजनीति से अधिक सम्बंध है और मुलायम सिंह यादव उसी का लाभ उठाकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को कमजोर करना चाहते हैं। भाजपा के कुछ अति महत्वाकाँक्षी परंतु जनाधार से कमजोर नेता गठबंधन की ग़ोट के सहारे देश की सर्वोच्च गद्दी तक पहुँचने का स्वप्न देख रहे हैं ।

देश की पिछले एक दशक की राजनीति का अनुभव यही बताता है कि नेता , मीडिया और आम मतदाता के मध्य कोई तालमेल नहीं है। 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए विधानसभा चुनावों के बाद से अभी तक सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों की समीक्षा कर ली जाये तो यही परिणाम आयेगा कि तथाकथित राजनीतिक विश्लेषक, मीडिया आकलनकर्ता और राजनेता अपनी भविष्यवाणी को लेकर कभी भी सही नहीं सिद्ध हुए। पिछले एक दशक में प्रत्येक विधानसभा चुनावों के पश्चात यही कहा जाता रहा है कि त्रिशंकु विधानसभा आयेगी और फलाँ के हाथ में सत्ता की चाबी होगी परंतु चुनाव परिणाम आते हैं तो किसी न किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त होता है। कर्नाटक, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश , तमिलनाडु , पंजाब सहित 2009 के लोकसभा चुनावों का विश्लेषण किया जाये तो ध्यान में आता है कि धीरे धीरे जनता के पैमाने बदल रहे हैं और खण्डित जनादेश की परम्परा पर लगाम लग रही है।

परंतु जिस प्रकार राजनीतिक विश्लेषक, मीडिया और राजनेता जनता को समझ पाने में असफल हैं वह आश्चर्यजनक है और आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर जो भी आकलन आ रहे हैं उनके प्रति मेरी पूरी असहमति है। वास्तव में देश में पीढी का बदलाव हो रहा है जिसके चलते आकाँक्षाओं और सोच में भी बदलाव हो रहा है । आज तक भारत में राजनीति से लेकर हर स्तर पर वही लोग निर्णायक भूमिका में रहे हैं जिनका जन्म देश की स्वतंत्रता से पूर्व हुआ है और इसी कारण अनेक मुद्दों पर उनकी सोच और प्राथमिकतायें पूरी तरह भिन्न रही हैं परंतु अब नयी पीढी के लोगों के चलते मुद्दे भी बदल गये हैं और प्राथमिकतायें भी बदल गयी हैं।

उदाहरण के लिये स्वतन्त्रता से पूर्व जन्म लिये राजनेता या मीडिया के लोग पाकिस्तान के निर्माण की त्रासदी, पाकिस्तान के साथ सामान्य सम्बंधों को पहली प्राथमिकता मानते हैं । इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में या विचारधारा के स्तर पर शीत युद्धकालीन मानसिकता काम करती है। ठीक इसी प्रकार सेक्युलर बनाम गैर सेक्युलर की बहस में भी 1940 के दशक की सोच हावी रहती है।

परंतु पिछले अनेक दशकों में जो कुछ बदल गया है उसके प्रति ध्यान नहीं दिया गया। बीते दो दशकों में आर्थिक उदारीकरण के पश्चात एक नव मध्य वर्ग सृजित हुआ है जिसने कि धीरे धीरे देश के स्थापित कुलीन वर्ग को स्थानांतरित करने का प्रयास किया है। खेलों में हमें इसकी झलक मिलती है। परंतु यह वर्ग अब भी मीडिया, राजनीति सहित अनेक स्थानों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये संघर्ष कर रहा है। परंतु अनेक वैकल्पिक माध्यमों से यह परिवर्तन की दिशा में कार्यरत है। वास्तव में संक्रमण की स्थिति को इसी संदर्भ में समझना चाहिये।

उदाहरण के लिये यदि महेंद्र सिंह धोनी यदि सबसे सफल कप्तान बन जाते हैं तो समस्त बिहार और झारखंड के लोग स्वयं को उस भावना के साथ जोड पाते हैं। इसी प्रकार जब किसी छोटे शहर से आया कोई व्यक्ति किसी कुलीन वर्ग में अपना स्थान बना लेता है तो वह अपने शहर या राज्य में एक गौरव का प्रतीक बन जाता है और वह एजेंडा सेट करने की स्थिति में आ जाता है ।

राजनेताओं को और मीडिया को देश में हो रहे इस परिवर्तन को समझने का प्रयास करना चाहिये और यदि यह बात एक बार समझ में आ गयी तो यह भी पता चल जायेगा कि लोगों की आकाँक्षा क्या है?

देश की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए आगामी लोकसभा चुनावों के प्रति मेरा आकलन है कि जो भी राजनीतिक दल किसी सशक्त नेता को लेकर अपने दम पर सरकार बनाने के लिये जनता से जनादेश की माँग के साथ जनता के मध्य जायेगा उसे सफलता मिलेगी।

यह बात पढकर कुछ लोगों को हँसी आ सकती है पर यही वह बात है जिसकी ओर मैं इशारा करना चाहता हूँ कि देश पर अपनी सोच थोपने का प्रयास किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व का प्रयोग कर लिया है और जो परिणाम उसे वहाँ मिला था वही पुनरावृत्ति आम चुनावों में भी होगी यदि किसी एक नेता को आगे कर चुनाव नहीं लडा गया। ऐसी स्थिति में यदि राहुल गाँधी कांग्रेस की ओर से सर्वमान्य चेहरा बनकर आते हैं तो जनता एक बार फिर कांग्रेस की ओर जा सकती है।

 

जिस प्रकार मुलायम सिंह यादव भाजपा के नेताओं के प्रति निकटता दिखा रहे हैं वह भाजपा के लिये घातक है। जिस उत्तर प्रदेश में लोग इस बात को नहीं भुला पाये हैं कि भाजपा राम मंदिर निर्माण के अपने वायदे पर खरी नहीं उतर पायी उसी प्रदेश में मुलायम सिंह और भाजपा की निकटता की छोटी सी भनक भी जले पर नमक छिड्कने का काम करती है भाजपा को सिद्धांतवादी से अवसरवादी पार्टी में बदल देती है और मुलायम सिंह यादव इस बात को बखूबी जानते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा के साथ निकटता का प्रदर्शन कर वे न केवल उत्तर प्रदेश में भाजपा समर्थकों को चिढा रहे हैं वरन एक समुदाय विशेष को आनन्दित कर रहे हैं कि मैं न केवल कांग्रेस वरन भाजपा का भी एजेंडा सेट करता हूँ और मेरे रहते आपकी अरुचि का निर्णय यहाँ भी नहीं हो सकता ।

राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता के वायदे पर खरी न उतरने वाली भाजपा को जनता के समक्ष स्वयं को नये सिरे से सिद्ध करने का अवसर मिला है जब वह नये चेहरे और नये नारे से जनता को फिर से विश्वास दिला सकती है परंतु यदि व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षा को देश के हितों से ऊपर रखा जायेगा तो परिणाम भी अपेक्षित ही आयेगा , क्योंकि ये जनता है सब जानती है।

 

1 COMMENT

  1. mulayam to kabhi vishvashniya rahe hi nahin,is bat ko BJP bhi achhi tarah janti hae,fir bhi yadi wah unke jhanse men aati hae to yah mulayam ki nahin BJP ki galti hae.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here