राजनाथ सिंह बने भाजपा अध्यक्ष – डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

download (1)नितिन गडकरी की कम्पनियों पर आयकर विभाग के छापों के लिये जो दिन निश्चित किया गया , वह अपने आप में ही सिद्ध करता है कि केन्द्रीय सरकार सरकारी ऐजंसियों का प्रयोग अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिये कर रही है । गड़करी पर ये आरोप तो काफ़ी अरसे से लग रहे हैं । आयकर विभाग ये छापे काफ़ी अरसा पहले भी मार सकता था । लेकिन उस ने इस के लिये भाजपा अध्यक्ष पद के लिये होने वाले चुनाव से ठीक एक दिन पहले का दिन चुना , इससे उसकी मंशा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है । इस टिपण्णी के बाद अब आगे बात बढातें हैं । भारत के राजनैतिक दलों में मात्र आरोप लगने पर त्यागपत्र देने की परम्परा नहीं है । यदि यह होती तो शायद किसी पार्टी का कोई नेता ज़्यादा दिन अपने पद पर टिक न पाता । भारतीय राजनीति में यह शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के लाल कृष्ण आडवाणी ने की थी , जब उनका नाम जैन हवाला कांड की डायरी में पाया गया था । उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था और संकल्प किया था कि वे तभी वापिस लौटेंगे जब उन पर लगे आरोप धुल जायेंगे । और सचमुच जब जाँच में वे निर्दोष पाये गये , तभी उन्होंने राजनीति में अपने दायित्व पुनः: संभाले । यह भारतीय राजनीति में एक नया आदर्श स्थापित किया गया था । उसी परम्परा का पालन भाजपा के निवर्तमान अध्यक्ष नितिन गड़करी ने किया है । भीतर और बाहर के पंडित जानते हैं कि उनके ख़िलाफ़ चलाई गई लहर शासक दल के स्वार्थों से निकली है । लेकिन तब भी उन्होंने आडवाणी द्वारा स्थापित परम्परा का पालन करते हुये अपने पद से त्याग पत्र दे दिया । भाजपा के नये अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ठीक ही कहा कि इस मामले में सारी पार्टी एकजुट है और नितिन गड़करी के साथ खड़ी है ।

किसी भी पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा संकट काल में ही परखा जाता है और कहना न होगा कि भाजपा इसमें खरी उतरी है ।

ऐसे संक्रमण काल में राजनाथ सिंह से अच्छा चुनाव शायद हो ही नहीं सकता था । उनका आज तक का राजनैतिक सफ़र निष्कलंक रहा है । जिस प्रकार आज तक नरेन्द्र मोदी पर उनके जानी दुश्मन भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाने का साहस नहीं जुटा पाये , उसी प्रकार राजनाथ सिंह की छवि भी बेदाग़ नेता की रही है । यही कारण है कि मीडिया उद्योग के वे लोग भी , जो भाजपा को गाली देना अपना धर्म मानते है , राजनाथ सिंह के निष्कलंक चरित्र की प्रशंसा कर रहे हैं । इसे भी राजनाथ सिंह के लिये वरदान ही मानना होगा कि इस पूरे घटनाक्रम से कुछ दिन पहले ही कल्याण सिंह वापिस परिवार में आ गये हैं । राजनैतिक दृष्टि से इसका कितना लाभ होता है , यह गौण है , लेकिन आपस में पुनः एकजुट होने की प्रक्रिया शुरु हुई है , यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है । राजनाथ सिंह को इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा और भाजपा की इसी खोई पूँजी को वापिस लाना होगा । भाजपा केवल सत्ता प्राप्ति के लिये गठित किया गया कोई यांत्रिक राजनैतिक दल नहीं है और न ही इस के कार्यकर्ताओं का आपसी सम्बध बीमा कम्पनी के उन ऐजंटों जैसा है, जो आपस में लाभ बाँटने के उद्देश्य से दिन रात मेहनत करते हैं । भाजपा एक सांस्कृतिक आन्दोलन है ,जिसके कार्यकर्ता आपस में सजीव भावनात्मक स्तर पर जुड़े रहते है , समाज में एक व्यापक परिवर्तन के लिये । जब लाल कृष्ण आडवाणी , भाजपा को दूसरों से अलग कहते हैं तो उसका यही अभिप्राय होता है ।

इस समय भाजपा के लिये अपनी इस पूँजी को संभाले रखना ही नहीं बल्कि उसमें वृद्धि करते रहना भी ज़रुरी है । राजनाथ सिंह पर सभी को आशा है कि वे ऐसा करने में सक्षम हैं । जिन दिनों वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे , उन दिनों उन के प्रशासन ने आशा बंधाई थी कि प्रदेश जड़ता के दौर से निकलेगा । वही आशा राजनाथ सिंह के प्रति फिर जगती है कि वे देश को , यू पी ए द्वारा सृजनात्मक दिशाहीनता से बाहर निकालेंगे । राजनाथ सिंह को जो लोग नज़दीक़ से जानते हैं , उनको पता है कि वे राजनैतिक मतभेदों को कभी व्यक्तिगत सम्बंधों के रास्ते में नहीं आने देते । उनका यह गुण भाजपा को भीतर से लाभ तो पहुँचायेंगा ही , बाहर एन डी ए के आधार को बढ़ाने में भी सहायता करेगा । २०१४ के चुनावों में यदि सोनिया कांग्रेस को सफलतापूर्वक चुनौती देनी है तो सबसे पहले भाजपा को अपना आधार और प्रभाव , दोनों का ही विस्तार करना होगा । भाजपा के इस विस्तार को अनुभव करने के बाद ही अन्य राजनैतिक दल एन डी ए में आने को तैयार होंगे । राजनाथ सिंह के आगे सबसे बड़ी चुनौती यही है । इस में कोई शक ही नहीं कि देश की जनता मौजूदा सरकार से छुटकारा पाना चाहती है । लेकिन यह तभी संभव होगा , यदि भाजपा के प्रति लोगों में विश्वास जगे । राजनाथ सिंह में यह योग्यता है , ऐसा उनके विरोधी भी मानते हैं ।

सोनिया कांग्रेस खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश से शुरु होकर अन्त में अपनी उसी सांस्कृतिक एजंेडे पर आ गई है , जो उसकी व्यापक रणनीति का हिस्सा है । देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सीधे सीधे कह दिया की इस देश में हिन्दू आतंकवाद है । जम्मू सीमा पर दो भारतीय सैनिकों के सिर क़लम करने के बाद पाकिस्तान , जिस प्रकार पूरे विश्व में घिर गया था , उससे बाहर निकलने के लिये , उसे भारत सरकार की इस स्वीकारोक्ति की सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी । सुशील कुमार शिन्दे ने उसे बाहर निकलने का वही रास्ता मुहैया करवाया है । शिंदे इतने भोले तो हो नहीं सकते कि अपने इस बयान का अर्थ न समझते हों ।ज़ाहिर है कि पाकिस्तान से भारत को चुनौती अब इसी िहन्दु आतंकवाद के मुद्दे पर मिलनेवाली है , और इसमें प्रचार के लिये सामग्री भारत सरकार ही मुहैया करवायेगी , जिसका संकेत शिंदे के बयान से मिल ही जाता है । भाजपा को सोनिया कांग्रेस द्वारा देश के चरित्र पर किये जा रहे इस आक्रमण का ही प्राथमिकता के आधार पर सामना करना होगा । राजनाथ सिंह ने इस चुनौती को स्वीकारने का ही नहीं बल्कि इससे लड़ने का जो संकल्प दिखाया है , वह निश्चय ही शुभ संकेत है । भाजपा को अपनी पहचान के आधारभूत प्रश्नों के आधार पर ही आगे की रणनीति बनानी होगी , आशा की जानी चाहिये कि राजनाथ इसमें सफल होंगे ।

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