भारतीय जनता पार्टी के स्पीड ब्रेकर-उनके अपने ही

आत्ममंथन की जरूरत

 

डा. राधेश्याम द्विवेदी

1925 ई. में कुछ राष्ट्र वादी महापुरूषो ने माननीय श्री केशव हेडगेवार के नेतृत्व में एक गैर राजनीति एवं  सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  की स्थापना नागपुर में किया था। गुलामी की जिन्दगी से निजात दिलाने के लिए एक राजनीतिक संगठन की आवश्यकता प्रतीत हुई तो श्री श्याप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में भारतीय जनसंघ की स्थापना किया गया था। माननीय अटल विहारी वाजपेयी (जन्म 25 दिसम्बर 1924, ग्वालियर ) इसके संस्थापक सदस्य थे। 1965 में फरह, मथुरा के पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने इस दल को अभिंिसंचित करते हुए उसमें एकात्म मानववाद  के सिद्धान्तों को और जोड़ा था। उन दिनों सत्ता नेहरू परिवार की उत्तराधिकारिणी श्रीमती इन्दिरा गांधी के हाथों में थी। इसी समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में समाजवादी नेता राजनरायण ने एक याचिका  श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरूद्ध दायर कर रखी थी। इस वाद में श्रीमती गांधी 18 मार्च 1975 को पराजित हो गई थीं। अति उत्साह एवं बदले की भावना से 1975 में श्रीमती गांधी ने देश  में आपातकाल लागू करवा दिया तथा सारे विपक्ष के नेताओं को रातोरात जेल में डलवा दिया। बाद में जे.पी आन्दोलन ने देश  में नयी चेतना डाली थी। 1977 में गांधीवादी नेता श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सम्पूर्ण विपक्ष एक पार्टी एक निशान तथा एक कार्यक्रम के तहत ’’जनता पार्टी’’ के बैनर के नीचे देश चुनाव में भाग लिया और भारी मतों से सत्तासीन हुआ था। भारतीय जनसंघ  भी इसी में विलीन हो गया थां। उस समय श्री अटल विहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने थे। उन्होने संयुक्त राष्ट्र  संघ  में हिन्दी में पहला भाषण भी दिया था। चूंकि यह सत्ता एक सिद्धान्त पर आधारित नहीं था इसलिए 1980 में इसमें विखराव आ गया। 06 अप्रैल 1980 को श्री अटल विहारी वाजपेयी के अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। श्री लालकृष्ण अडवानी ने राम मन्दिर के लिए रथ यात्रा करके पार्टी में मजबूती प्रदान की थी। अटल और अडवानी ने इस पार्टी को बहुत आगे तक पहुंचाया था। वे संघर्ष के साथ एक लम्बी संसदीय परम्परा में सारी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे चलकर देश को एक कुशल नेतृत्व प्रदान किया था। इस समय कांगे्रस के बाद भाजपा दूसरी विशाल पार्टी के रूपमें स्थापित हुई थी। प्रारम्भ में इसके केवल 2 सदस्य थे। 1991 में 120  तथा 1996 में 161 सदस्यो की संख्या हो गई थी। माननीय अटल जी को सरकार चलाने का अवसर भी प्राप्त हुआ था। भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री अटल विहारी वाजपेयी ( 16.05.1996 से 01.06.1996. तक ) पहले 13 दिन के लिए सरकार बनाये। उनके पास आवश्यक बहुमत नहीं था और उन्होने जोड़ तोड़ नहीं किया और एक आदर्श परम्परा शुरू करते हुए अपनी सरकार का त्यागपत्र सौंप दिया। अब काग्रेस ने बाहर से समर्थन देते हुए कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री जनता दल के नेता श्री देवगौड़ा तथा श्री इन्द्रकुमार गुजराल को अपनी बैसाखियों के सहारे थोडे-थोड़े समय तक सत्तासीन किया और पुनः समर्थन वापस लेकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस बीच अटल व अडवानी की युगल जोडी को पुनःस्थापित होने में आठ साल का लम्बा समय लग गया। नया चुनाव होने पर 182 सीटें पाकर भाजपा के श्री अटल विहारी बाजपेयी ने 19.03.1998 से एक बार फिर 13 माह के लिए प्रधानमंत्री बने परन्मु एडीएमके के जय ललिता द्वारा समर्थन वापस ले लेने  तथा उड़ीसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री  श्री गिरधर गोमांग जो सांसद भी थे ,के मतदान में विपक्ष को मत देने के कारण उनकी सरकार चली गई। पुनः देश  को 1999 में मध्यावधि चुनाव का सामना करना पडा। इस बार पुनः 182 साटें पाने के साथ उनका गठबंधन 306 सीटें अर्जित कर स्पष्ट बहुमत जुटा लिया था। उन्होंने 22 छोटे बडे़ दलों को साथ लेकर 22.05. 2004 तक पाँच साल के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अधीन कुशल शासन का संचालन किया। कांग्रेस के लिए यह अवधि बहुत कष्टकारी रही परन्तु अटलजी के व्यक्तित्व के आगे किसी की एक ना चली। स्वच्छ छवि लम्बा संसदीय अनुभव तथा सभी पक्ष विपक्ष को संतुष्ट करने की क्षमता ने उन्हें एक युगपुरूष के रूप में स्थापित करने का पूर्ण अवसर प्रदान किया था। उन्हें भारत रत्न के अलावा पद्म विभूषण पुरस्कार भी मिल चुका है। उनकी अपनी पार्टी से ज्यादा विपक्षी उनके विचारों तथा आचरण के मुरीद थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधान मंत्री उन्हें पूर्ण आदर व सम्मान देते थे। 2004 में स्वयं तो वह जीत गये थे परन्तु जनता का विश्वास पार्टी पर से उठ गया था। उन्हें पुनः सेवा का अवसर नहीं प्राप्त हुआ। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था । दिसम्बर 2005 में उन्होने राजनीति सन्यास ले लिया था । पार्टी की अध्यक्षता वैंकटैया नायडू, लाल कृष्ण अडवानी तथा राजनाथ सिंह ने किया था। 2010 से 2013 तक श्री नितिन गडकरी और उसके बाद पुनः राजनाथ सिंह अध्यक्ष कार्यभार संभालते रहे। सत्ता कांग्रेस के हाथों में आ गई थी। 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह को सेवा करने का अवसर प्राप्त हो गया था। यद्यपि वे केवल संवैधानिक प्रधानमंत्री थे और यूपीए अध्यक्षा के मार्ग निर्देशन में सरकार चला रहे थे। गुजरात, मध्यप्रदेश , राजस्थान तथा छत्तीसगढ आदि राज्यों में भाजपा स्वतंत्र तथा बिहार , उड़ीसा तथा पंजाब में सहयोगी के रूप में सत्ता में थी। वरिष्ठ नेताओं का प्रभाव कम पड़ता देख, गुजरात के तीन बार से लगातार जीतने वाले मुख्यमंत्री माननीय नरेन्द्रभाई दामोदरदास मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने का अवसर मिल गया। पूरे देश  में उन्होंने प्रचार सभायें करके कांग्रेस के शासन से निजात दिलाई। उनके प्रमुख सहयोगियों में राजनाथ सिंह, अमित शाह, अरूण जेटली आदि प्रमुख रहे। वर्तमान समय में 545 की संख्या वाले सदन में 280 भाजपा सदस्य हैं। 245 की संख्यावाले राज्यसभा में 47 भाजपाई सदस्य हैं। लोकसभा में कांगे्रस 44 ,एआईडीएमके 37, तृणमूल कांग्रेस 34, बीजू जनता 20, शिवसेना 18, तेलगूदेशम 16, तेलंगाना राष्ट्र  समिति 11, सीपीआई एम 9,  एनसीपी तथा लोक जनशक्ति 6-6 सीटें प्राप्त किये हुए हैं । विपक्ष के लिए कुल सदस्य संख्या 545 का दस प्रतिशत अर्थात 55 सदस्य अनिवार्य है जिसे कांग्रेस नही पा सकी है।

इतनी बड़ी जीत के बावजूद पार्टी वह सब कुछ नही कर पा रही है जिसकी उम्मीद थी अथवा जो वादा करके वह सत्ता की सीढ़ी तक पहुंच पायी है। एक तरफ कांगेस तो इसे देखना पसन्द नहीं करती है क्योकि यह पार्टी उनकी सारी कलई खोलती जा रही है। कुछ क्षेत्रीय क्षत्रप भी अपनी साख तथा अस्मिता बचाने के लिए कांग्रेस का आंख मुदकर समर्थन तथा भाजपा का निरन्तर विरोध करते देखे जा रहे हैं। दिल्ली में सख्त कानून तथा बिहार  में कुछ क्षेत्रीयता व जाति वादी व्यवस्था के होते हुए भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके कुछ उच्चस्थ नेता निरन्तर पर्टी व सरकार की छवि सुधारने में लगे हैं। प्रधान मंत्री विदेशों में जा जाकर भारत की गिरी हुई साख को ठीक करने में तथा विकास के नये आयाम खोजने में संलग्न हैं। स्थानीय नेता देश  के अन्दर की कृत्रिम विगाड़ी जा रही हालात को सामान्य कर पाने में स्वयं को असफल साबित हो रहे हैं।

इतना ही नहीं इस  तथाकथित अनुशासित पार्टी के कुछ सदस्य विना चिन्तन व विचार के समय समय पर अनर्गल प्रलाप तथा संवेदनपूर्ण मुद्दों पर टिप्पणी करते रहते है। विपक्ष तथा विपक्ष की सहमति से इस विशाल देश  में एकाध छोटी मोटी घटनायें यदि हो जाती हैं तो उसपर पानी व धूल डालने के बजाय भाजपा के कुछ सम्मानित तथा कुछ अधिकार ना पा सकनेवाले नेता असंयमित टिप्पड़ी कर बैठते है। लव जेहाद,आरक्षण , राम मन्दिर, गोमांस या वीफ असहिष्णुता आदि बहुत ही संवेदनशील मुद्दों को हर कोई अपने अपने हिसाब से बोलता जाता है जो डैमेज कन्ट्रोल कम डैमेज ज्यादा करता है। वाहर के दुश्मनों से निपटना आसान है परन्तु अन्दर के हितौशियों के भीतरघात से संभलना मुश्किल है। मैं किसी सम्मानित नेता का नामोल्लेख करना उचित नहीं समझता हॅू , परन्तु निवेदन करना अपना धर्म समझता हूं। केवल उन प्रवक्ताओं को बयान व टिप्पणी करने की छूट होनी चाहिए जो देश  की समरसता को बिगड़ने से बचा सकें। विरोधी ऊल जलूल बयान देकर भाजपा को काम करने से रोकना ही चाहेंगे। वे तो सब कुछ खेा ही चुके हैं उन्हें कुछ खास खोना नहीं हैं। जनता ने तो एनडीए या भाजपाको इतना बड़ा बहुमत दिया है। वह तो आप से हिसाब मांगेगी। अभी तो विपक्षी मांग रहे हैं लेकिन पांच साल बाद आपको फिर इन्हीं के समक्ष जाना है। इस हालत में काजल की कोठरी की भांति आपको बहुत संभल कर रहना भी है और अपने लक्ष्यों को पूरा भी करना है।

माननीय अटल जी के जन्म दिन के अवसर पर उनके व्यक्त्वि व कृतित्व को प्रणाम करते हुए अपेक्षा करता हूॅ कि  इस बुद्धिजीवी पार्टी जिसमें हर कोई अति समझदार व कुशल है ,भाजपा के विकास रथ को आगे बढ़ाने तथा देश  को विश्व की एक विशाल शक्ति बनाने में सहयोग करें।

1 COMMENT

  1. वैचारिक मत में भिन्नता होना पार्टी के ऊर्जावान एवं सही दिशा में चलायमान होने के लिए आवश्यक है। लेकिन आवश्यक है की मत भिन्नता गुटबाजी में रूपांतरित न हो। अंगरेजी परस्त मीडिया भाजपा में छोटी सी मत भिन्नता को भी बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करती है। इसलिए मत भिन्नता भले हो लेकिन वह सार्वजनिक न हो इसका ख्याल रखा जाना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here