उपचुनाव परिणामों से भाजपा को मिला नया बल

मृत्युंजय दीक्षित
5 प्रांतों के विधानसभा चुनावों के बाद देश के 8 राज्यों की दस विधानसभा सीटों में से 5 पर भाजपा को मिली सफलता व कई अन्य सीटों पर बढ़े हुए मत -प्रतिशत के कारण दूसरे नंबर तक पहुंचने के बाद भाजपा में उत्साह व उमंग का वापस आना लाजिमी है। एकओर जहां भाजपा उत्साह मे है वहीं विपक्ष बेदम हो गया है तथा उसे आगामी विधानसभा चुनावों तथा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के परिणामों से अभी से ही भय लगने लग गया है। अभी संसद सत्र के आखिरी दिन देश के सभी 13 विपक्षी दलांे का समूह राष्टपति के पास गया था और वहां पर उसने अपना आत्मचिंतन करने की बजाय यह आरोप लगा दिया कि देश में डर व असहनशीलता ,असहिष्णुता आदि का माहौल हैं चुनावों में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की जा रही है। जबकि वास्तविकात कुछ और है।
उपचुनाव परिणामों से यह साफ संकेत जा रहाहै कि अब दिल्ली में आम आदमी पाटी और अरविंद केजरीवाल का किला बहुत मजबूत नहीं रह गया है। वहीं अब भाजपा बंगाल में भी अपने पैर पसार रही हैं जिसके कारण तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी में भाजपा के प्रति भय व चिंता पैदा होना स्वाभविक हो गया है। उपचुनावों में बंगारल के पुर्व मेदिनीपुर के दक्षिण कांघी सीट पर वामदलों व कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया है और 30 प्रतिशत
से अधिक वोटों के साथ दुसरे भाजपाके लिए बड़ी सफलता मानी जा रही है। अगले साल बंगाल में निकाय और पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं । आज बंगाल में जिस प्रकार के हालात पैदा हो रहे हैं तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्ती ने जिस प्रकार से बहुसंख्यक हिंदू समाज के प्रति रवैया अपना लिया है उससे वहां पर सांप्रदायिक धु्रवीकरण की प्रक्रिया स्वतः बनती हुई दिखलायी पड़ रही है। भाजपा के लिए अब बंगाल एक अतिमहत्वपूर्ण पड़ाव बनने जा रहा है।
आगामी विधानसभ चुनावों के हिसाब से हिमांचल प्रदेश सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए एक बेहद कठिन राज्य बनने जा रहा है। हिमांचल प्रदेश की भोरंज सीट पर भाजपा के डा.अनिल धीमान ने अपनी विजय पताका फहरा दी है। राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि इस बार अब हिमांचल में सत्ता परिवर्तन अवश्य हो सकता है तथा कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य निकल जायेगा। इस बात की प्रबलतम संभावना बन रही हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामलों में जांच तेजी से चल रही है। हिमांचल में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुददा बनने जा रहा है।
कर्नांटक के चुनाव परिणाम फिलहाल कांग्रेस के लिए कुछ राहत के पल लेकर आये हैं । वहां पर कांग्रेस नांजनगुड और गुंडलपेट विधानसभा सीटें अपने पाास रखने में कामयाब रही है। कर्नाटक में भाजपा अपने लिए सेफ रास्ता मानकर चल रही थी लेकिन अब उसे यहां पर नये सिरे से अपनी रणनीति को बनाना पड़ेगा। कर्नाटक में येदुरप्पा के आगे भाजपा को सोचना होगा। हालांकि कर्नाटक मेे भाजपा का वोट प्रतिशत 45 प्रतिशत तक बढ़ गया है । इससे यह यह भी संकेत है कि अब कर्नाटक में केसरिया लहराने के लिए भाजपा को अतिरिक्त प्रयास करने पड़ेंगे बिलकुल उप्र व असोम की तरह, यहां पर उत्तराखंड व दिल्ली की तरह दूसरे दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल करने की होड़ नुकसान पहुंचा सकती है।
भाजपा शासित एक और राज्य हैं झारखंड यहां पर लिटटीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ण्क बार फिर अपनी विजय पताका फहराने में सफल रहा हैं। नक्सल प्रभवित राज्य में भाजपा सरकार को बेहद सावधानी पूर्वक काम करना है। वहां पर कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पर इन दलों का जातीय गणित के आधार पर अच्छा खासा प्रभाव है।
भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य मध्य प्रदेश भी है। जहां विगत तीन बार से लगातार शिवराज सिंह चैहान भाजपा को विजयी बनाने में कामयाब हो रहे हैं। विधानसभा चुनावों के बाद बांधवगढ़ व अटेर विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर पूरे देश की ही नहीं अपितु स्वयं भाजपा व कांग्रेस की भी नजर लगी हुयी थी। जिसमें बांधवगढ़ सीट भाजप बचाने में सफल रही वही अटेर सीट पर काफी जोरदार मुकाबल हुआ और अंतिम चरण में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी। मप्र में भाजपा काफी लम्बे समय से शासन कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने हाल के दिनों मेें नर्मदा यात्रा निकाली है। तमिलनाडु की तर्ज पर गरीबों के लिए पांच रूपये में भरपेट भोजन कराने की योजना का शुभारम्भ किया है। साथ ही राज्यभर में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी लागू करने का फैसला लिया है। इतना ही नहीं गायों को बचाने के लिए पूरे राज्यभर में पालीथिन प्रतिबंधिति कर दिया हैं। उप्र की तर्ज पर एंटी रोमियो दलों का गठन करने पर विचार चल रहा हैं।
भाजपा के लिए सबसे उत्साहजनक परिणाम दिल्ली की राजौरी गार्डैन विधानसभा सीट से आया हैं । यहां पर भाजपाको शनदार सफलता हासिल हुई है और कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही हैं जबकि आप की तो जमानत तक जब्त हो गयी है। दिल्ली विधानसभ उपचुनाव को एमसीडी चुनावों के पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा था। जिसको जीतने में भाजपा कामयाब रही है जबकि कांग्रेस दूसरे नंबरपर आने में सफल हो गयी। टी वी चैनलों व सोशल मीडिया मे दिल्ली में आप की हार पर खुब चर्चा हो रही है तथा चुटकुले बनये जा रहे हैं। टिवटर पर तो कहा जा रहा है कि लो अब तो ईवीएम वाकई में हैंक हो ही गयी है। दिल्ल्ी की पराजय से यह साफ संकेत जा रहा है कि अब केजरीवाल का कठिन समय शुरू हो गया है। अभी लाभ के पद 21 विधायकों की सदस्यता रदद होनंे का खतरा बरकरार है। यह फैसला सुरक्षित है तथा किसी भी समय आ सकता है। अगर 21 विधायको की सदस्यता जाती है तो वह सब सीटंेे जीतना केजरीवाल के लिए आसान नहीं होगा। वहीं शुगलू कमेटी सहित कई मामलों में केजरीवाल सरकार घिरी हुई है तथा उपराज्यपाल कभी भी कड़े कदम उठा सकते हैं। कई मानहानि के मामलोे में भी केजरीवाल व उनके मंत्रीगण आदि फंसे पड़े है। केजरीवाल की नीतियों को दिल्ली की जनता अब नकारने के मूड में आती दिखलायी पड़ रही हैं । केजरीवाल मूख्यमंत्री तो दिल्ली के बने लेकिन उनका एकमात्र लक्ष्य दिल्ली के सहारे पंजाब, गोवा ,गुजरात में भाजपा व मोदी को हराना बन गया । नतीजा सबके सामने हैं ं। आज दिल्ली की जनता केजरीवाल से पीछा छुडाना चाह रही हैं।
वहीं राजस्थान व असोम के एकमात्र विधानसभा उपचुनाव जीतकर भाजपा को संतोष की प्राप्ति अवश्य हुई है। सोशल मीडिया व मीडिया में कहा जा रहा है कि देशभर में पीएम मोदी की लहर कायम है। लेकिन भाजपा के लिए बेहदआसान समय भी नही है। भाजपा को आगामी चुनाव फतह करने के लिए अभी से सजग, सतर्क होना पडे़गा। राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों के बाद पीएम मोदी व केंद्र सरकार को देशहित में कई निर्णायक निर्णय करने ही होंगे। पाकिस्तान के प्रति निर्णायक कदमों की पूरा देश प्रतीक्षा कर रहा है। बलुचिस्तानी जनता भी प्रतीक्षा कर रही है। साथ ही अन्य कई क्षेत्रों जनमानस निर्णायक सुधारों व कदमों की प्रतीक्षा कर रहा हैं। अगले वर्षं राज्यसभा में भी बहुमत आ जायेगा । तब सरकार के पास राम मंदिर, बड़े आर्थिक सुधारों व श्रम सुधारों तथा सवैधानिक सुधारों को लागू करने के लिए कोई बहाना नहीं बचेगा।

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