पश्चिम बंगाल में कम होती भाजपा की ताकत 

अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली “

पिछले दिनों हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव  और विधान सभा उपचुनावों के नतीजें ने यह साबित कर दिया है कि आज भी भाजपा अपने घटक दलों के साथ शानदार प्रदर्शन करने में सक्षम है, चाहे वो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रचंड जीत हो, बिहार के उपचुनाव के नतीजे हों, राजस्थान उपचुनाव का नतीजा हो या फिर आसाम के ही विधान सभा उपचुनाव के नतीजे क्यों ना हो. भाजपा ने दिखा दिया है कि आज भी देश का जनमत उसके साथ है और मोदी मैजिक आज भी बरकरार है, लेकिन झारखंड और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं, जहाँ भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है.

 झारखंड विधानसभा चुनावों में हार के कई कारण हैं, जिसमें मुख्य रूप से हेमंत सोरेन के जेल जाने और फिर बाहर आ जाने से मिली सहानुभूति को मुख्य कारण माना जा रहा है लेकिन अगर पश्चिम बंगाल विधानसभा उपचुनाव की बात करें तो दिन ब दिन भाजपा का जनाधार पश्चिम बंगाल में खिसकता जा रहा है.  भाजपा की संगठनात्मक शक्ति क्षीण होती जा रही है जिसका एक प्रज्वलंत उदाहरण है, पश्चिम बंगाल में हुए 6 विधान सभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे जिसमें भाजपा को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली है जबकि तृणमूल कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपनी जीत का परचम लहरा दिया है. अगर जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, उनका विश्लेषण करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि तृणमूल कांग्रेस के सामने भाजपा नतमस्तक होने की स्थिति की तरफ बढ़ती जा रही है l

   पश्चिम बंगाल में 17 नवंबर को विधानसभा की 6 सीटों पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें नैहाटी, हरोआ, मेदिनीपुर, तालडांगरा, सीताई (एससी) और मदारीहाट (एसटी) विधानसभा सीट शामिल थे. इनमें से पांच सीटें दक्षिण बंगाल में टीएमसी के गढ़ में हैं, जबकि मदारीहाट राज्य के उत्तरी हिस्से में भाजपा का गढ़ बना हुआ था. 2021 में यह सीट भाजपा ने जीती थी . 2024 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद विधायकों द्वारा अपनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण ये सभी सीटें रिक्त हुई थीं, उपचुनाव में टीएमसी ने न सिर्फ अपनी पांच सीटें बरकरार रखीं हैं बल्कि मदारीहाट सीट भाजपा से छीन ली है. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने भी 2021 के बाद पहली बार वाम दलों के साथ गठबंधन के बिना चुनाव लड़ा था लेकिन उसे भी सभी छह निर्वाचन क्षेत्रों में जमानत गंवानी पड़ी है l

सीताई (एससी) में, टीएमसी की संगीता रॉय ने भाजपा के दीपक कुमार रे पर 1,30,636 के अंतर से जीत हासिल की जिन्हें केवल 35,348 वोट मिले. टीएमसी का वोट शेयर 2021 के राज्य चुनावों में 49 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया जबकि भाजपा का वोट शेयर 45 प्रतिशत से गिरकर सिर्फ 16 प्रतिशत रह गया।

   मदारीहाट में टीएमसी का वोट शेयर 2021 की तुलना में 34.13 फीसदी से बढ़कर 54.05 फीसदी हो गया जबकि बीजेपी का वोट शेयर गिरकर 34 फीसदी हो गया।

 नैहाटी में टीएमसी के सनत डे ने 78,772 वोट प्राप्त किए , उन्होंने बीजेपी के रूपक मित्रा को 49,277 वोटों से हराया. टीएमसी का वोट शेयर 2021 में 50 फीसदी से बढ़कर 62.97 फीसदी हो गया जबकि बीजेपी का वोट शेयर 2021 में 38 फीसदी से गिरकर 23.58 फीसदी हो गया ।

 हरोआ में, टीएमसी के एसके रबीउल इस्लाम ने 1,57,072 वोट प्राप्त किए. उन्होंने आईएसएफ के पियारुल इस्लाम पर 1,31,388 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की. पियारुल इस्लाम को सिर्फ 25,684 वोट मिले ।

मेदिनीपुर में टीएमसी को मिले 53.43 फीसदी वोट

टीएमसी का वोट शेयर बढ़कर 76.63 फीसदी हो गया. जबकि आईएसएफ सिर्फ 12.53 फीसदी ही हासिल कर पाई जबकि 2021 में टीएमसी का वोट शेयर 57.34 फीसदी था. मेदिनीपुर में, टीएमसी के सुजॉय हाजरा ने 115,104 वोट हासिल किए और बीजेपी के सुभाजीत रॉय को 33,996 वोटों के अंतर से हराया. बीजेपी प्रत्याशी को 81,108 वोट मिले. बीजेपी के 37.67 फीसदी की तुलना में टीएमसी का वोट शेयर मेदिनीपुर में 53.43 फीसदी तक पहुंच गया. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में इस आदिवासी बहुल सीट पर टीएमसी का वोट शेयर 50.72 फीसदी और बीजेपी का 40.51 फीसदी था l

तलडांगरा में, टीएमसी की फाल्गुनी सिंहबाबू ने 98,926 वोट प्राप्त किए और बीजेपी की अनन्या रॉय चक्रवर्ती को 34,082 वोटों के अंतर से हराया. टीएमसी ने अपना वोट शेयर 2021 में 46 फीसदी से बढ़ाकर 52 फीसदी कर लिया, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 39.9 फीसदी से गिरकर 34 फीसदी हो गया ।

294 सदस्यीय राज्य विधानसभा में टीएमसी की संख्या बढ़कर 216 हो गई है, जिससे उसकी स्थिति और मजबूत हो गई है. वहीं भाजपा की संख्या 77 से घटकर 69 हो गई है ।

    ऐसे में इस हार को गंभीरता से लेते हुए, भाजपा के राज्य इकाई को इस पर गहन विचार मंथन करना चाहिए चाहिए क्योंकि आर जी कर मामले में आमजन के व्यापक विरोध के बाद टीएमसी की सरकार बैकफुट पर थी, फिर भी उपचुनाव में टीएमसी ने शानदार प्रदर्शन किया है. यह भाजपा के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति है. लेकिन भाजपा की प्रदेश इकाई इस हार को हल्के में ले रही है. इस शर्मनाक हार के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने उपचुनाव के नतीजों को महत्व नहीं दिया है. उन्होंने कहा कि ‘उपचुनाव के नतीजे एक विश्वसनीय संकेतक के रूप में काम नहीं कर सकते. लोग टीएमसी के साथ हैं या उनके खिलाफ, यह आगामी विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा।

   ऐसे में यह स्पष्ट है कि भाजपा की ताकत धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल में कमती जा रही है और तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करती नजर आ रही है. अगर भाजपा ने गंभीरता से अपनी संगठन शक्ति को पुनः मजबूत करने का काम नहीं किया तो पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए दिवा स्वप्न बन कर ही रह जाएगा l

अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली “

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