ब्लैकबेरी विवाद से ऊपजे सुरक्षा के सवाल

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-सतीश सिंह

सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में आई क्रांति भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने नित दिन नई तरह की चुनौती प्रस्तुत कर रही है। यह चुनौती प्रशिक्षित, जानकार और कुशल मानव संसाधन से लेकर तकनीकी पिछड़ापन जैसे पहूलओं से जुड़ा हुआ है।

जिस तरह से बेधड़क नक्सली झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल इत्यादि राज्यों में अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं, उसमें सूचना व तकनीक का बहुत ही बड़ा योगदान है, खास करके इंटरनेट और मोबाईल का। उल्लेखनीय है कि दंतेवाड़ा में हुए सीआरपीएफ के जवानों के कत्लेआम के पीछे भी सीआरपीएफ की वॉकी-टॉकी का नक्सलियों के हाथों तक पहुँचना था। वॉकी-टॉकी के सहारे ही नक्सलियों ने सीआरपीएफ के काफिले को लोकेट किया था।

मुम्बई में हुए आतंकी हमले में भी आतंकवादी अपने पाकिस्तानी आका से मोबाईल पर निर्देश प्राप्त कर रहे थे। सच कहा जाए तो आज छोटे-मोटे चोरी-डकैती तक में इस्तेमाल किये जा रहे इंटरनेट और मोबाईल के मैसेज और सिग्नल पर निगाह रखने में भी हमारी सुरक्षा एजेंसी नाकाम रही है।

भारत में आतंकवादी व नक्सली गतिविधियों के बढ़ने के पीछे शायद यही सबसे बड़ा कारण है। हद तब हो जाती है जब आतंकवादी व नक्सली संगठन सुरक्षा एजेंसियों की गतिविधियों पर नजर रखकर बड़ी घटना को अंजाम दे देते हैं।

आए दिन होने वाले इसतरह की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में सरकार की चिंता लाजिमी है। सूचना एवं तकनीक की वजह से बढ़ रहे खतरों को कम करने के लिए ही सरकार ने ब्लैकबेरी स्मार्टफोन बनाने वाली कनाडा की रिसर्च इन मोशन (रिम) को अपनी कॉरपोरेट ईमेल और इंस्टेंट मेसेजिंग सर्विस से जुड़ी एनक्रिप्‍शन की जानकारियां सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया करवाने के लिए 31 अगस्त तक का समय दिया है। ताकि सरकार संचार और इंटरनेट सेवाओं से जुड़े खतरों पर नजर रख सके।

भारत सरकार के इस निर्णय के पीछे मूल कारण यह है कि फिलहाल भारतीय एजेंसियों के पास ऐसी तकनीक नहीं है जिससे वह एनक्रिप्षन का स्तर 40 बिट्स से ऊपर होने की स्थिति में इंटरनेट पर होने वाले सूचनाओं के आदान-प्रदान पर नजर रख सके। जबकि ब्लैकबेरी के द्वारा मुहैया करवायी जाने वाली कॉरपोरेट ईमेल में कम से कम 256 बिट्स का एनक्रिप्‍शन रहता है।

कॉरपोरेट ईमेल ब्लैकबेरी हैंडसेट की सबसे बड़ी खूबी है। दरअसल ब्लैकबेरी हैंडसेटों में सुरक्षा के ज्यादा फीचर हैं। ऐसे फीचर भी हैं जिसकी वजह से सुरक्षा एजेंसियां उपभोक्ताओं द्वारा किये जाने वाले सूचनाओं के आदान-प्रदान पर निगाह नहीं रख सकती है। निजता की दृष्टि से भले ही यह एक अच्छा फीचर हो सकता है, लेकिन सुरक्षा के लिहाज से इसे घातक की ही संज्ञा दी जा सकती है।

फिलवक्त ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्विस (बीईएस) और ब्लैकबेरी मेसेंजर सर्विस (बीएमएस) दोनों पर निगाह रखने में सरकार पूरी तरह से असफल रही है। भारत की खुफिया एजेसियों का मानना है कि ब्लैकबेरी के इन खूबियों का नक्सलियों और उनके समर्थकों से लेकर आतंकवादी संगठनों तक ने जमकर फायदा उठाया है।

उल्लेखनीय है कि ब्लैकबेरी मेसेंजर सर्विस (बीएमएस) के माध्यम से ब्लैकबेरी के उपभोक्ता वर्चउल प्राईवेट नेटवर्क की रचना करके अपने समूह के बीच बातचीत कर सकते हैं, जिसको भी मॉनिटर नहीं किया जा सकता है।

अब गृह मंत्रालय और खुफिया ब्यूरो टेलीकॉम विभाग के साथ ताल-मेल कायम करके एक ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही जिसके माध्यम से 40 बिट्स से ज्यादा एनक्रिप्‍शन के साथ सेवा देने वाली कंपनियों के लिए अपना साफ्टवेयर सीलबंद जगह पर रखना जरुरी होगा और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होने की स्थिति में प्रशासन सील खोल करके साफ्टवेयर की जाँच कर सकेगी।

यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि कोई भी देश की सुरक्षा को दृष्टिगत करते हुए बाजार की ताकतों के आगे नहीं झुक सकता है। ब्लैकबेरी के इन खूबियों या कमियों की वजह से अल्जीरिया में सुरक्षा को भेदने वाली संभावित खतरों की समीक्षा की जा रही है। लेबनान और कुवैत ने भी रिम से सूचना के आदान-प्रदान तक अपनी पहुँच करवाने की मांग की है। सऊदी अरब में रिम ने वहाँ के सरकार की बात को मान करके वहाँ की सुरक्षा एजेंसियों को कॉरपोरेट ईमेल और इंस्टेंट मेसेजिंग सर्विस से जुड़ी एनक्रिप्षन की जानकारियां मुहैया करवा दी है।

सुरक्षा एजेंसियों को कॉरपोरेट ईमेल और इंस्टेंट मेसेजिंग सर्विस से जुड़ी एनक्रिप्‍शन की जानकारियां मुहैया नहीं करवाने की स्थिति में यूएई भी 11 अक्टबूर से ब्लैकबेरी की सेवाओं पर अपने देश में प्रतिबंध लगा देगा। इस मामले में बहरीन की पहल ढीली है। उसने अभी तक ब्लैकबेरी की सेवाओं पर अपने देश में प्रतिबंध लगाने के बारे में सोचा नहीं है।

दो साल से ब्लैकबेरी भारत में अपनी सेवा दे रही है। दुनिया के देशों मसलन, पाकिस्तान, दुबई, अफगानिस्तान, चीन आदि देशों से ब्लैकबेरी के नेटवर्क के जरिए भारत में बात हो रहा है। कौन बात कर रहा है? किससे बात कर रहा है, इसकी जानकारी क्या भारत की खुफिया एजेसियों के पास है? लगता है भारत इस पूरे मामले पर कभी गंभीर नहीं रहा है।

देर से ही सही लेकिन अब भारतीय सरकार अपनी सुरक्षा को लेकर जागरुक हो गया है। वह ब्लैकबेरी की सेवाओं के अलावा गुगल और स्काइपे मैसेज सेवा पर भी रोक लगाने पर विचार कर रही है।

दूरसंचार विभाग के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करवा करके टेलीकॉम सेवाएं उपलब्ध करवाने वाली कंपनियों पर नकेल कसा जा सकता है। ब्लैकबेरी विवाद में वस्तुत: सरकार की ढिलाई से हम इंकार नहीं कर सकते हैं। अगर सरकार चाहे तो कोई भी कंपनी लाइसेंस से जुड़ी शर्तों का पालन करने से मना नहीं कर सकती है।

ब्लैकबेरी जब अमेरिका और यूरोप में वहाँ के कायदे-कानून का पालन आज्ञाकारी बच्चे की तरह कर रही है तो भारत में वह सरकार को क्यों वह कोड उपलब्ध नहीं करा रही है जिससे डेटा तक पहुँच मुमकिन हो सके। अमेरिका में कम्युनिटी असिस्टेंट फॉर लॉ इनफोर्समेंट एजेंसी टेलीकॉम कंपनियों के कार्य-कलापों पर नजर रखती है और उसकी इजाजत के बिना टेलीकॉम कंपनियां चूं तक बोल नहीं पाती है। पर भारत तो जुगाड़ का देश है। यहाँ कुछ भी मुमकिन है। फिर भी सरकार को भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालों को कदापि बख्शना नहीं चाहिए।

1 COMMENT

  1. ब्लैक बेरी जैसे आधुनिकतम संचार माधय्म पर राष्ट्रीय हितों के मद्द्ये नज़र सतीससिंगजी का प्रस्तुत आलेख प्रासंगिक है .जो आशंकाए दूरसंचार विभाग .रक्षा विभाग तथा गृह मंत्रालय ने अपनी समेकित सूझ बूझ से व्यक्त की थी .उससे ब्लैक बेरी पर प्रतिबन्ध का संकट उत्पन्न हो गया था .उनकी अक्ल ठिकाने आ गई और उन्होंने भारत सरकार द्वारा ली जाने वाली खाना तलाशी मंजूर कर ली है .यही ताज़ी खबर है .

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