बोफोर्स मामले में सोनिया के आगे झुके मनमोहन : आडवाणी

advanijiगांधीनगर (गुजरात) में 28 अप्रैल, 2009 को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा जारी वक्तव्य

प्रधानमंत्री बोफोर्स घोटाले की सच्चाई को हमेशा के लिए दफनाने हेतु श्रीमती सोनिया गांधी के दबाव में झुक गए हैं। इस और दूसरे पापों के लिए देश का मतदाता कांग्रेस को उसी तरह सजा देगा जैसी उसने सन् 1989 में दी थी।

मैंने आज के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक मुख्य रिपोर्ट देखी, ”कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के आखिरी दिनों में ओटावियो क्वात्रोचि का नाम सीबीआई की वांछित सूची में से हटा दिया गया है।” इसमें कहा गया है कि महान्यायवादी ने इटली के व्यापारी के विरूध्द जारी किए गए रेड कॉर्नर नोटिस को एक ‘परेशानी’ की संज्ञा दी है, ”जिसे हमेशा के लिए सूची में बनाए नहीं रखा जा सकता।”

यह यूपीए सरकार द्वारा अपने दलीय हितों के लिए सरकारी संस्थानों विशेषकर केन्द्रीय जांच ब्यूरो के दुरूपयोग के शर्मिन्दगीपूर्ण कारनामों की एक लम्बी कड़ी में नवीनतम घटना है। सभी लोग जानते हैं कि बोफोर्स घोटाला स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक सर्वाधिक राजनीतिक विस्फोटक भ्रष्टाचार काडं रहा है। सन् 1989 में इसके चलते राजीव गांधी की सरकार का पतन हुआ था जो 1984 में संसद में भारी बहुमत हासिल करने के बावजूद सत्ता से बाहर निकाल दी थी।

अप्रैल 1987 में बोफोर्स घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी सच्चाई को बाहर आने से रोकने हेतु हर तरह के प्रयास करती रही है। 10 जनपथ के दबाव में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने क्वात्रोचि को भारत से भाग जाने दिया। तथापि, यूपीए सरकार के कार्यकाल में न्याय का गला घोटं ने के और अत्यतं निर्लज्ज कारनामे देखने में आए। सबसे पहले इसने इटली के बिचौलिए क्वात्रोचि जोकि इस घोटाले का प्रमुख अभियुक्त है और जो श्रीमती सोनिया गांधी के परिवार और 10 जनपथ का नजदीकी समझा जाता है, के बैंक खातों को फिर से चालू रखने की अनुमति दे दी। बाद में सरकार ने उसे अर्जेंटीना में गिरफ्तार किए जाने के पश्चात सही-सलामत भाग जाने दिया। न्यायिक कार्यवाही के ताबूत में आखिरी कील तब गाढ़ी गई जब यह समाचार मिला कि यूपीए सरकार क्वात्रोचि का नाम केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ”वांछित” सूची में से हटाना चाहती है।

मैं यूपीए सरकार के इस निर्णय की अत्यंत कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूं। मैं बोफोर्स घोटाले की सच्चाई को दबाने के इस षडयंत्र में सांठ-गांठ करने के लिए सीधे प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह तथा श्रीमती सोनिया गांधी को जिम्मेदार ठहराता हूं। यह स्पष्ट है कि उन्होंने और उनकी सरकार ने यह कार्य 10 जनपथ के इशारों पर किया है। पिछले पांच वर्षों में सीबीआई और विधि मंत्रालय के लगातार दुरूपयोग पर उनकी चुप्पी से उनके दोष की पुष्टि होती है। इससे मेरे मूल्यांकन की भी पुष्टि होती है कि डा0 मनमोहन सिंह एक कमजोर और अयोग्य प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने पद को 10 जनपथ का मातहत बनाकर इसका अवमूल्यन किया है।

इस कांड और अन्य पापों के लिए मतदाता कांग्रेस पार्टी को उसी तरह से सजा देगा
जिस तरह से उसने सन् 1989 में दी थी।

इस सन्दर्भ में, मैं एक और महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूं। भारतीय जनता पार्टी ने स्विस बैंकों के गुप्त खातों और दूसरे टैक्स हेवन्स में भारी मात्रा में अवैध रूप से जमा भारतीय धन को वापस लाने का वादा किया है। यह ध्यान देने की बात है कि बोफोर्स घोटाले में रिश्वत के तौर पर दिए गए धन को भी गुप्त स्विस बैंक खातों में जमा किया गया था। भारतीय जनता पार्टी की पहल को जनता से भारी समर्थन मिलने पर कुछ कांग्रेसी नेता अब दबी जबान में कहने लगे हैं कि वे भी इस काले धन को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी, बोफोर्स मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच पूर्ण विपरीत रूखों में अंतर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। कांग्रेस नेतृत्व जिसने बोफोर्स कांड के मुख्य आरोपी को करोड़ों रूपये की रिश्वत के धन को विदेशी बैंक में जमा करने के साथ-साथ सही सलामत भाग जाने दिया, पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि वह विदेशों के टैक्स हेवन्स में जमा भारतीय धन को वापस ले आएगी?

1 COMMENT

  1. Very wrong decision. Really it is a shameful situation for Indian both inside and outside.
    One fact that a Roti Choor (a better) may definitely get the punishment but the high profile, big criminals always come out or may get only nominal punishment.

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