पुस्तक समीक्षा: आकाशवाणी समाचार की दुनिया से परिचय

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पुस्तक ‘आकाशवाणी समाचार की दुनिया’ आवाज के आरोह-अवरोह से हमारा बखूबी परिचय कराती है। यों तो आकाशवाणी के प्रादेशिक समाचार एकांश, पटना की स्वर्ण जयंती (28 दिसंबर 2009) के अवसर पर आई है यह पुस्तक। लेकिन इसका दायरा विस्तृत है। यह न सिर्फ आकाशवाणी पटना के समाचार एकांश के विगत पचास वर्षों का इतिहास एक नजर में बता जाती है, बल्कि समाचारों के संकलन, तैयारी, संपादन से लेकर वाचन तक की तकनीकी जानकारी भी दे जाती है।

आकाशवाणी पटना के समाचार संपादक संजय कुमार द्वारा संपादित इस पुस्तक में इतिहास, संस्मरण, तकनीक को समेटते हुए कुल 22 अध्याय हैं। भूमिका जाने माने साहित्यकार डॉ. कुमार विमल ने लिखा है। डॉ. विमल आकाशवाणी के समाचार को निक्ती पर तुला हुआ एक संतुलन बताते हैं, जिसमें टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए चटुल या चाटु-पटु प्रवृति नहीं रहती हैं।

पुस्तक   : आकाशवाणी समाचार की दुनिया

संपादक  : संजय कुमार

प्रकाशक  : प्रभात प्रकाशन, 4/19 आसफ अली रोड,

नई दिल्ली -110002

मूल्य     : रु 175/-

पुस्तक में पहला एवं अंतिम लेखक स्वयं संपादक संजय कुमार का है। पहला आलेख आकाशवाणी पटना के समाचार एकांश का इतिहास बताती है, तो दूसरा रेडियो पत्रकारिता जैसे व्यापक विषय पर केन्द्रित है, जिसमें इस विधा के बारे में गम्भीर व तकनीकी जानकारियां है। मणिकांत वाजपेयी और एम जेड अहमद के लेख संस्मरण है, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मृत्यु के समय की गई रिपोर्टिंग पर केंंद्रित हैं। जो आकाशवाणी समाचार की रिर्पोटिंग के विभिन्न पहलूओं से रू-ब-रू काती है। वहीं रविरंजन सिन्हा का संस्मरण ‘कथा-एक नींव के पत्थर की’ प्रादेशिक समाचार एकांश पटना के खुलने और खुद के उससे जुड़ने की दास्तां है। वीरेन्द्र कुमार यादव अपने बचपन की उस याद को ताजा करते हैं जब गांव में शाम का समाचार सुनने के लिए डाकघर में लाउडस्पीकर लगा था। नीतीशचन्द्र का आलेख फेकनी बनाम स्वीटी के तहत और इसी के उदाहरण स्वरूप आज दृश्य चैनलों द्वारा सिर्फ आर्कषक चेहरों, टीप टाप लोगों व ग्लैमर के प्रति रूझान दिखाने पर व्यग्य करता गंभीर, पर दिलचस्प आलेख है। जो आज के मीडिया के दोहरे चेहरे को सामने लाता है।

तारिक फातमी और रजनीकांत चौधरी क्रमश: उर्दू व मैथिली में प्रसारित होने वाले समाचारों की जानकारी देते है। तो अशोक प्रियदर्शी, कमल किशोर, सुदन सहाय, देवाशीष बोस का लेख सबसे लोकप्रिय शाम साढ़े सात बजे के समाचार की चर्चा करते हैं। कैसे दशकों से लोग, खासकर गांवों में, इस बुलेटिन को सुनने को बेताब रहते हैं और क्यों। क्याेंकि रेडियो से प्रसारित होने वाले समाचार पुख्ता होते हैं। उसकी खबरें सूचनात्मक होने के साथ साथ लोक कल्याणकारी, हितकारी तो है ही, उसकी विश्वसनीयता भी संदेह से परे है। सुदन सहाय अपने लेख के माध्यम से रेडियो के भरोसे का सवाल उठाते है। यही नहीं रेडियो सदा से खुशी व गम या फिर आपदा काल तक में भी अपनी जोरदार भूमिका निभाती आ रही है। इसे देवाशीष बोस ने अनुभव के आधार पर रेखांकित किया है।

डॉ. ध्रुव कुमार बताते है कैसे रेडियो पर खबरों की तस्वीर बन जाते हैं समाचार वाचक और उसकी आवाज। समाचार पढ़ने की कला के तकनीक के बारे में उनका आलेख विस्तृत जानकारी देता है। सुकुमार झा, आईएच.खान, चन्द्रभूषण पाण्डेय का आलेख रेडियो पर प्रसारित समाचारों के विविध पहलुओं पर तकनीकी जानकारी देता है। कैसे जिला स्तर पर खबरें जुटाई/भेजी जाती हैं या न्यूजरूम में तैयार की जाती है। वहीं संगीता सिंह व सुनीता त्रिपाठी का लेख ग्रामीणों एवं सामुदायिक रेडियो पर प्रकाश डालती है।

पुस्तक के आलेख संकलन में रमेश नैयर का लेख ”आवाज की जादू का अरोह अवरोह” चार चांद लगाता है, जिसमें भारत में 20वीं सदी के दूसरे दशक में रेडियो की विकास यात्रा से लेकर आज अन्य मीडिया की मौजूदगी में रेडियो की चुनौतियों व सकारात्मक भूमिका तक की चर्चा है। लम्बे समय से रेडियो पत्रकारिता से जुडे पुस्तक के संपादक संजय कुमार ने लेखों के संपादन में प्रयास किया है कि इसमें अधिकतर लेखक रेडियो से किसी न किसी रूप से जुडे रहे हैं। पुस्तक में हालांकि कुछेक लेख स्तरीय भी हैं पर कुल मिला कर विविध जानकारियों से लैस आकाशवाणी समाचार की दुनिया वस्तुत: इस दुनिया से पाठकों का विस्तृत परिचय कराती है।

-लीना/ संपादक-ई-पत्रिका मीडियामोरचा

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लीना
पटना, बिहार में जन्‍म। राजनीतिशास्‍त्र से स्‍नातकोत्तर एवं पत्रकारिता से पीजी डिप्‍लोमा। 2000-02 तक दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, पटना में कार्य करते हुए रिपोर्टिंग, संपादन व पेज बनाने का अनुभव, 1997 से हिन्‍दुस्‍तान, राष्‍ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी, आउटलुक हिंदी इत्‍यादि राष्‍ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट, खबरें व फीचर प्रकाशित। आकाशवाणी: पटना व कोहिमा से वार्ता, कविता प्र‍सारित। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका ’मीडियामोरचा’ और बढ़ते कदम। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका 'मीडियामोरचा' और ग्रामीण परिवेश पर आधारित पटना से प्रकाशित पत्रिका 'गांव समाज' में समाचार संपादक।

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