हे माँ ! मैं तो नन्हा सा मासूम हूँ .
तेरा ही सलोना सा लाल हूँ.
मेरी स्नेहिल अनुभूति को समझा है, तूने,
आँचल को छुड़ाकर,बोतल दिया है,तूने.
यह कैसा है न्याय तेरा,
कहती है तो लाल है मेरा.
आधुनिकता की दोड़ मैं सिद्ध तूने किया है,
स्तनपान के बजाय बोतलपान मेरा आहार है.
इस आहार से तो निराहार भला हूँ.
इस सदी का भावी कर्णधार मैं हूँ.
ना शिवाजी बनूगां,ना बापू बनूगां.
बोतलपान से बोतल को अपनी माँ कहूँगा.
-शालिनी मैथु
आधुनिकता-खानपान,रहन-सहन,ऐशो-आराम,दवा-दारू,तथाकथित कट्स एवं फिगर्स आदि के नाम पर कुदरत के सारे नियमों का सत्यानाश ऊपर से सिजेरियन आपरेसन से शिशु जनम के कारण स्तनपान के बजाय बोतलपान घर घर की कहानी बन गया है ,बहुत आसानी से कल्पना की जा सकती है की हम किस प्रकार की नस्ल पाल रहे हैं क्या ये बोतलछाप बच्चे आगे जाकर स्वस्थ रहेंगे ,क्या उम्मीद करेंगे आप इनसे ,क्या स्तर होगा इनका ,शारीरिक स्वास्थ्य कैसा होगा इनका,अब समय आ गया है की हम सबको जागना होगा अन्यथा एक कहावत अवश्य चरितार्थ होगी की “अब पछताए क्या होय -जब चिड़िया चुग गई खेत” विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग