अटल का अटल चरित्र

मृत्युंजय दीक्षित

भाजपा के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जिनके शासन काल में भारत एक सशक्त परमाणु शक्ति सपन्न राष्ट्र बना और भारत में स्वच्छ सुशासन की राजनीति का उद्धोष हुआ। अटलजी एक महान राजनेता ही नहीं अपितु साहित्यकार, पत्रकार, संपादक व कुशल कवि तथा वक्ता भी हैं। उनका अंदाज निराला व मनमोहक है। अपनी प्रतिभा व वक्तृता के बल पर विदेशमंत्री के रूप में भी सर्वाधिक लोकप्रिय हुए तथा विदेशों में व अर्न्तराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को निखारने में अद्भुत योगदान दिया। यह अटल जी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था की कि अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान जैसी भारत विरोधी शक्तियां भारत के प्रति विद्वेष की भावना का ज्वार भरने में कामयाब नहीं हो सकी। अटल जी भारत के ऐसे प्रथम महान राजनेता व बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे जिनके प्रशंसक व समर्थक हर राजनैतिक विचारधारा के व्यक्ति थे। राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय व संवैधानिक विषयों के गूढ़ ज्ञाता हैं अटल जी। एक प्रकार से देखा जाए तो अटल जी सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन का प्रारम्भ एक पत्रकार के रूप में किया। साहित्य तो अटल जी को विरासत में मिला था। बाल्यकाल से ही वे कविताएं लिखने लग गए थे। विद्यार्थी जीवन में ही ओजस्वी वक्ता बन गए थे। सन 1947 में प.दीनदयाल उपाध्याय जी के सानिध्य ने तो उनके अंदर छिपे पत्रकारिता के विराट स्वरूप को उजागर कर दिया। उनके सानिध्य में आते ही अटल जी पत्रकारिकता रंग लाई और वह पत्रकारिता के क्षेत्र के आदर्श बन गये। 14 जनवरी 1948 को ‘पांचजन्य’ साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ और अटल जी उसके प्रथम सम्पादक बन गये। उन्होंने ‘राष्ट्रधर्म’ मासिक पत्रिका का भी संपादन किया। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद नेहरू सरकार द्वारा संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ‘राष्ट्रधर्म’ कार्यालय सील कर दिया गया। परन्तु अटल जी भूमिगत कर दिया। वह पुलिस द्वारा पकड़े नहीं जा सके। राष्ट्रधर्म का ताला न्यायालय के आदेश से खुलने के बाद अटल जी वहां पुनः पहुंचे और उन्होंने नवंबर में ‘स्वदेश’ दैनिक में भी कार्य प्रारम्भ कर दिया। किन्तु अपरिहार्य कारणों से यह पत्र बंद हो गया। अटल जी ने काशी से प्रकाशित ‘चेतना’ साप्ताहिक का भी संपादन किया और उसे बुलंदियों तक पहुंचाया। अटल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर पारिवारिक वातावरण का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अटल जी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज और कानपुर के डी.ए.वी कालेज में संपन्न हुई। विक्टोरिया कालेज से उन्होंने उच्च श्रेणी में बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने कानपुर डी. ए. वी. कालेज से राजनीति शास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अटल जी में प्रखर स्वदेश प्रेम, मानवता, सुहृदयता एवं साहित्य प्रेम कूट-कूट कर भरा था। अटल जी जब पहली कक्षा के छात्र थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी जो उनके प्रखर हिंदुत्व के विचारों से ओत-प्रोत थी। वह कविता बहुत ही चर्चित व प्रशंसित हुई थी। अटल जी के संघ जीवन का प्रारम्भ 1946 में हुआ जब उन्होंने वकालत की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपने आप को संघ के प्रति समर्पित कर दिया। उनके लिए भारत का प्रत्येक कण सूर्य से भी अधिक पवित्र है। भारत उनके लिए महान तीर्थ है। वह कहते हैं भारत जमीन का टुकड़ा नहीं जीता-जागता राष्ट्र पुरूष है। हिमालय इसका मस्तक है। पूरा भारत ही देवताओं की पुण्यभूमि है। यह कर्मभूमि है इसका कण-कण शंकर है, इसकी बूंद-बूंद गंगाजल है। अटल जी का कहना है कि हमारे राष्ट्रीय जीवन का मूलस्रोत हमारा धर्म है। जिसके शाश्वत आधार के फलस्वरूप ही हमारा देश शताब्दियों तक शत-शत विदेशी आक्रमणों के आघात को झेलने के बासद भी आज पूरी दृढ़ता के साथ खड़ा हुआ है। अटल जी के अनुसार, यह भारत देश एक अद्भुत देश है। हिंदुस्तान में रहने वाला हर प्रत्येक भारतीय हिंदू हैं, हिंदू कोई जाति, धर्म, वर्ग की संकीर्ण बेड़ियों में बंधनें वाली चीज या वस्तु नहीं है- वरन यह जीवन का आदर्श है, अस्तु यह एक जीवन पध्दति। यही वह प्राचीन भूमि है, जहां से ज्ञान की रश्मियां सम्पूर्ण विश्व में फैली हैं। यही वह देश है जिसने सम्पूर्ण विश्व को आध्यात्म का संदेश दिया है और विश्वगुरू कहलाया है। यह देश सदैव से धर्म, दर्शन, अध्यात्म के उच्चतम सिध्दान्तों का देश रहा है और जिसके वातावरण में मानवता तथा विश्व के बंधुत्व का राग ध्वनित होता रहता है। ऐसी हमारी विरासत है, हमारी संस्कृति है । भारत वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है, अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है । इसका बिन्दु-बिन्दु गंगा जल है। हम जियेंगे तो इसके लिए, हम मरेंगे तो इसके लिए।

 

अटल जी की कुछ कविताएं श्री अटल जी की ’61 कविताएं’ पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं। जिनको पढ़कर अटल जी की गणना यदि राष्ट्रकवि के रूप में की जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। उनकी कविताओं में देश प्रेम, अखण्ड भारत, भारतीयों के मन की वेदना जैसे कूट-कूट कर भरी है। वे वीर रस के सिध्द कवि हैं। उनकी कविताओं ने देश में क्रान्ति पैदा कर दी । उनकी कविता में भारतीय मनीषियों, ऋषियों की वाणी झंकृत हो रही है। उनकी कविताओं में शाश्वत प्रेम की ध्वनि, देशप्रेम की गाथा उद्धोषित हो रही है। देश में व्याप्त निराशा एवं अन्धकार को मिटाने के लिए देशवासियों को अटल जी ने ‘आओ हम सब मिलकर दिया जलाएं’ का अभिनव संदेश दिया। अटल जी भारत के ऐसे प्रथम राजनेता थे जिन्होंने संसद व संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा की वार्षिक बैठकों सहित कई महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी में भाषण देकर देश ही नहीं अपितु राष्ट्रभाषा हिंदी को भी गौरवान्वित किया। देश की अंदरूनी राजनीति में धुर सत्ता विरोधी होते हुए भी उन्होनें संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठकों में हिंदी में भाषण दिया और भारत का पक्ष बहुत जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया करते थे। उनका यह रणनीतिक कौशल देखकर राजनैतिक समीक्षक भी दंग रह जाते थे। अटल जी ने संसद में अपना प्रथम भाषण हिंदी में दिया। जिससे उनका राष्ट्रभाषा प्रेम स्वतः ही उजागर हो जाता है। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष अनन्त शयनम आयंगर ने कहा था कि, अटल जी हिंदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ता हैं। वे बहुत कम बोलते हैं परन्तु जो बोलते हैं वह ह्नदयस्पर्शी होता है। अन्तर को छूने वाला होता है। अटल जी, ऐसे वक्ता बन चुके थे जिनका भाषण सुनने के लिए देशवासी इंतजार किया करते थे। संसद में विदेश नीति पर दिए गए भाषण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी सहित लगभग सभी सांसद सम्मोहित हो गए थे।

यह राजधानी लखनऊ के लिए बेहद गौरव की बात है कि अपने राजनैतिक व संसदीय जीवन में दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं लोकसभा में लखनऊ का प्रतिनिधित्व किया। ऐसे महान नेता को सांसद के रूप में पाकर कौन नगर, प्रान्त व देश अपने को गौरवान्वित नहीं महसूस करेगा। जो अपने क्षेत्र की महान जनता को देवता की तरह पूजता हो। उन्होंने एक सांसद ही नहीं प्रधानमंत्री के रूप में भी लखनऊ शहर की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में रत रहे। वे लखनऊ के जनमानस में बेहद लोकप्रिय हो गए थे तथा अभी भी हैं। आज लखनऊवासी अपने आप को बेहद गौरवान्वित अनुभव करते हें कि इतना योग्य सांसद, राजनीतिज्ञ व कवि ह्नदय प्रधानमंत्री ने उसकी जन समस्याओं के समाधान के प्रति अपनी जिम्मेदारियां अदा की। आदि गंगा गोमती के प्रदूषण को दूर करने के लिए और उसका वास्तविक स्वरूप प्रदान करने के लिए अटल जी की वेदना को लखनऊवासी भली-भांति जानते हैं।

राजधानी लखनऊ के समग्र विकास की ओर अटल जी सतत् प्रयत्नशील रहते थे। लेकिन वर्तमान समय का राजनैतिक वातावरण इतना दूषित और कलुषित हो गया है कि वर्तमान राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते उनकी योजनाओं के लोकार्पण व शिलान्यास के लिए लगाए गए पत्थरों को भी नहीं बक्शा। अटल जी ने लखनऊ के विकास के लिए बहुत सी योजनाएं विकसित की जिनका अब लखनऊवासी आनंद भी प्राप्त कर रहे हैं। अटल जी लखनऊ के ऐसे सांसद बने जिन्होंने केंद्रीय सरकार से मांग भी की थी कि लखनऊ के लिए विशेष निधि स्थापित की जाये। जिससे उसका समुचित विकास किया जा सके। यह बहुत ही दुर्भग्य व दुःख की बात है कि आज अटल जी के उत्तराधिकारी सांसद भी उनके सपने को राजनैतिक संकीर्णता के चलते पूर्ण करने में असमर्थ दिखाई देते हैं। आज लखनऊ में विकास की जो धारा बही हैं उसकी पृष्ठभूमि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के द्वारा ही तैयार की गयी है। अटल जी ने लखनऊ शहर ही नहीं अपितु भारत के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वर्तमान में चल रही बहूत सी कार्य योजनाएं उन्हीं के कार्यकाल में तैयार की गई थीं ,लेकिन उसका श्रेय वर्तमान राजनीतिज्ञ ले रहे हैं। अटल जी का एक सपना था, एक परिश्रमी, पराक्रमी भारत बनाने का विजयी भारत बनाने का । आइए, हम सब मिलकर उनके इस सपने को साकार करने के लिए नकारात्मक सोच के दलदल से निकलें। आइए, मातृभूमि भारत के सभी प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का प्रयोग करें। आने वाली सदी को भारत की सदी बनाने का संकल्प करें। आइए, हम सब आशा करते हैं कि ऐसे महान सांसद, प्रधानमंत्री, साहित्यकार, पत्रकार, संपादक व कवि को एक न एक दिन भारत रत्न अवश्य मिलेगा।

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। 

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