न्यायिक सुधार की काँटों भरी राह

मनी राम शर्मा

भारत के पूर्व विधि एवं न्याय मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने कहा था कि मार्च 2012 तक न्यायालयों का कम्प्यूटरीकरण कर दिया जायेगा और शीघ्र न्याय मिलने लगेगा| इस पथ की बाधाओं का आकलन करें तो ज्ञात होगा कि निर्धारित लक्ष्य तिथि अब नजदीक ही है और कम्प्यूटरीकरण व शीघ्र न्यायप्रदानगी की दिशा में कितनी प्रगति हुई है यह सब आपके सामने है| वास्तविकता यह है कि न्यायतंत्र से जुड़े लोग न्यायपालिका में किसी भी सुधार का समर्थन नहीं करते| न्यायपालिका की प्रक्रिया में तेजी लाने का अर्थ उनकी आय में कमी का एक आत्मघाती कदम होगा|

 

उक्त तथ्य को विस्तार से समझा जा सकता है| अमेरिका में न्यायालयों में मामलों में अनिवार्य रूप से इफाइलिंग होती है जबकि भारत में 01.10.06 को इफालिंग प्रणाली का सुप्रीम कोर्ट में शुभारम्भ हुआ था| सुप्रीम कोर्ट में वर्ष में फ़ाइल होने वाले प्रकरणों का मात्र 0.10% ही इफालिंग होता है और उसका भी अधिकांश भाग दूर बैठे व्यक्तिगत याचियों द्वारा फ़ाइल किया जाता है| व्यक्तिगत याचियों द्वारा फ़ाइल की गयी अधिसंख्य याचिकाएं तो अनुचित कमियां निकल कर रजिस्ट्री स्तर पर ही निरस्त/निपटान कर दी जाती हैं और शेष में भी अधिकांश, गुणावगुण पर गए बिना न्यायालय स्तर पर, ख़ारिज कर दी जाती हैं| दूसरी ओर देखें तो राजस्व बिभागों में जहां इफाइलिंग प्रणाली अपनाई गयी है जनता को बड़ी राहत मिली|

 

उक्त तथ्यों से यह बड़ा स्पष्ट है कि वकील समुदाय भी सुप्रीम कोर्ट में इफाइलिंग को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है| वकील समुदाय रजिस्ट्रारों से सहयोग से, व्यक्तिगत मिलकर ही काम संपन्न करवाना अधिक पसंद करता है| वकील समुदाय भी उन्नत तकनीक का प्रयोग करने के बजाय कम्प्यूटरों को टाइपराइटर की तरह ही काम में लेना चाहता है| यह समुदाय कानून में अनुसन्धान, इफाइलिंग, ईमेल आदि त्वरित सम्प्रेषण के साधनों का उपयोग नहीं करना चाहता अर्थात वर्तमान हाल में ही अधिक खुश है| यह बात इस तथ्य से पुनः प्रमाणित होती है की सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत लगभग 1700 एडवोकेट ऑन रिकोर्ड में से 10% से कम ने ही अपनी ईमेल आईडी सुप्रीम कोर्ट को दे रखी है|

 

 

 

1 COMMENT

  1. चोर चोर मौसेरे भाई .यह कहावत जितना नौकर शाही और राजनैतिक नेताओं के लिए सही है,उतना ही न्यायाधीशों और वकीलों के लिए भी सही है ऐसे भी यथास्थिति इन लोगों के लिए इतना लुभावना और फलदायक है कि कोई भी इसमे परिवर्तन नहीं चाहता है.गंदगी में जीने वालों के लिए ऐसे भी गंदगी से हटना उनके विनाश का कारण बन सकता है तो वे ऐसा खतरा क्यों मोल लें?

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