भ्रष्टमंडल खेल बना राष्ट्र की प्रतिष्ठा का सवाल

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-अवनीश सिंह

जैसे-जैसे राष्ट्रमंडल खेलों की घडियां नजदीक आती जा रही हैं, वैसे-वैसे खेल से जुडी परियोजनाओं के आयोजकों की परेशानी बढती जा रही हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि यह देश के लिए इज्जत का सवाल है। ऐसे में हम सब को एकजुट होकर इन खेलों को सफल बनाना चाहिए और इसे सफलतापूर्वक संचालित करने का प्रयास होना चाहिए। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में गुरुवार को सोनिया गांधी ने साफ तौर पर कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन से राष्ट्र की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है इससे किसी व्यक्ति या पार्टी का नहीं बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ेगा।

किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी भी आयोजन का मेजबान बनना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण और बहुत हद तक आर्थिक रूप से फायदेमंद भी साबित होता है। किंतु इसके साथ ही इस मुद्दे के कुछ अन्य बहुत से महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना भी जरूरी हो जाता है। जिस देश में अब भी सरकार बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो, अपराध, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी जाने कितनी ही मुसीबतें सामने मुंह बाए खड़ी हों, जिस देश को अभी अपने विकास के लिए जाने कितने ही मोर्चों पर संघर्ष करना बाकी हो, जिस देश को आज अपना धन और संसाधन खेल, मनोरंजन जैसे कार्यों से अधिक ज्यादा जरूरी कार्यों पर खर्च करने की जरूरत हो, वह विश्व में सिर्फ अपनी साख बढ़ाने के लिए ऐसे आयोजनों की जिम्मेदारी उठाने को तत्पर हो तो आप इसे किस नजरिये से देखेगे।

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी 64वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन को देश की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए सभी देशवासियों से अपील की थी कि वे इसे राष्ट्रीय त्योहार की तरह समझें, और इसे कामयाब बनाने में सहयोग करें। तथा उम्मीद जताई कि आयोजन की सफलता से विश्व में यह संदेश जाएगा कि भारत आत्म विश्वास के साथ तेजी से प्रगति कर रहा है। प्रधानमंत्री ने अपनी इस टिप्पणी में न ही राष्ट्रमंडल खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार का जिक्र कही नहीं किया न ही उन विस्थापितों के बारे में।

ऐसे सवाल से केवल देश की प्रतिष्ठा का नहीं है, बल्कि इसके साथ देश के लोगों की बढ़ती परेशानियों का प्रश्न भी जुड़ा है। एक ओर बढ़ती महंगाई के चलते आम लोगों का जीना मुहाल है तो दूसरी ओर सरकार राष्ट्रमंडल खेल के बढ़ते बजट को पूरा करने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है, लेकिन आयोजन स्थलों के निर्माण के नाम पर विस्थापित किए गए हज़ारों लोगों को पुनर्वासित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

साल 2003 में भारत को इन खेलों के आयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में शायद ही कोई पहलू हो जिसकी समय सीमा को लेकर विवाद न उठा हो और अब खेलों के थीम सॉन्ग को जारी करने को लेकर भी यह दुविधा दिखी है। बड़े उत्साह के साथ मीडियाकर्मी खेलों से जुड़ी एक सकारात्मक ख़बर की उम्मीद में आयोजन स्थल पहुँचे मगर शुरुआत के साथ ही कार्यक्रम की जैसे हवा निकल गई। आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी ने घोषणा की कि थीम सॉन्ग दस दिन बाद जारी होगा।

वर्तमान स्थिती यहाँ तक आ पहुची है कि सार्वजनिक क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी कंपनियाँ अपने वायदे से पीछे हटती नज़र आ रही हैं। चाहे वो भारतीय रेल, सेंट्रल बैंक, एयर इंडिया, एनटीपीसी या निजी क्षेत्र की कंपनियाँ गोदरेज या हीरो होंडा ही क्यों न हो। सभी ने अब आयोजन समिति के सामने प्रायोजन से जुडी शर्तें लगानी शुरू कर दी हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने तो पहले से वादा किया हुआ 100 करोड़ रुपया भी देने से मना कर दिया।

अब आयोजन समिति सरकार से मिले करोड़ों रूपए कैसे लौटाएगी, इस सवाल का जवाब फ़िलहाल आयोजन समिति के पास भी नहीं है। लगता है जैसे राष्ट्रमंडल खेलों पर से लोगों का विश्वास ही उठता जा रहा है। क्या सरकार का आश्वासन सही साबित होगा? क्या भ्रष्टाचार और विलंब की आशंकाओं से घिरे राष्ट्रमंडल खेलों का कार्य सही समय पर समाप्त हो पाएगा? इन सवालों का जवाब तो आने वाला समय ही बता पाएगा।

इनके लिए तो अब ऋषिकेश जोशी की ये पंक्तियां सटीक बैठती है –

‘अरे मनहूसों तुमने क्या कर डाला

राष्ट्रमंडल खेलों में भी किया घोटाला

हमें तो कहते ही थे वे देश फ़टेहाल

देश की इज्जत का कुछ करते ख्याल

वह रखते यह आयोजन अपने पास

हमारी क्षमता में नहीं उनका विश्वास

बड़ी कोशिश से देश को मिली सौगात

पर तुम हो कि दिखा ही दी औकात’

2 COMMENTS

  1. यह तो सत्य है कि राष्ट्रमंडल खेल २०१० के सफल आयोजन से हमारे देश कि प्रतिष्ठा बढ़ेगी तथा इस खेल के सफल आयोजन से विश्व भर में हमारी प्रगति का सन्देश जायेगा. परन्तु अपनी प्रतिष्ठा को बनाने के चक्कर में हम अपनी नीव तो खोखली नहीं कर सकते न…!
    राष्टमंडल खेल ख़त्म होने के बाद आम आदमी को इस खेल के बाद बढ़ने वाली महंगाई का खामियाजा भुगतना पड़ेगा,श्री मनमोहन सिंह, श्रीमती सोनिया गाँधी, श्री कलमाड़ी जैसे लोगों का क्या जायेगा? ये लोग तो अपने घरों में चैन कि जिंदगी जियेंगे. इस राष्ट्रमंडल खेल में हम ऐसे ऐसे महानुभावों से मिलने वाले है जो करोडो रुपयें निगल जायेंगे लेकिन एक बार डकार तक नहीं लेंगे.
    बहुत अच्छा लेख है धन्यवाद

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