क्रूर तानाशाह का क्रूर अन्त

शादाब जफर ”शादाब

बयालिस साल तक लिबिया पर सख्ती से राज करने वाले तानाशाह कर्नल मुअम्मद गद्दाफी का अंत बृहस्पतिवार 20 अक्तूबर को किस प्रकार हुआ पूरी दुनिया ने देखा और सबक लिया। दुनिया का सब से बडा तानाशाह, अकूत सम्पत्ती का मालिक सोने के सिहासन पर बैठने और नर्म मुलायम गद्दो पर सोने वाला लीबीया में 1969 में रक्तहीन तख्ता पलट का जिम्मेदार ये क्रूर शासक अपने ही देश में अपनी जान बचाने की खातिर एक पार्इप के गÏे में छुपा था। अपनी रंगबिरंगी पोशाको को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले इस शख्स के बदन पर पूरे कपडे भी नही थे। लोगो को कुत्तो बिल्ली की मौत देने वाला ये तानाशाह विद्रोहियो से अपनी जिन्दगी की भीख मांग रहा था। 42 साल के लम्बे अरसे तक देश पर राज करने वाला ये शासक अपने देशवासियो के दिलो में इतनी जगह भी नही बना सका की इस की मौत पर ये लोग आसू बहा सके मातम मना सके। अपने देश के लोगो के साथ ही गद्दाफी के दुनिया के तमाम देशों से संबंध खराब रहें। मुहम्मद गद्दाफी ने 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक बार कूटनीतिक स्तर पर अपने सम्बोधन में भारत के लिये भी गंभीर सिथति ये कहकर पैदा कर दी थी कि ”वो आजाद कश्मीर राज्य का सर्मथन करते है। कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच स्वतंत्र राज्य माना जाना चाहिये। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने एक बार मुहम्मद गद्दाफी को ”पागल कुत्ता तक कह दिया था। मुहम्मद गद्दाफी अपनी सनक मिज़ाज़ी और इष्क मिज़ाज़ी के लिये भी जाने जाते थें। गद्दाफी अपना ख्याल रखने के लिये खास तौर पर गोरे रंग और सुनहरे बालो वाली विदेशी हसीनाओ को अपनी देखभाल करने के लिये बतौर नर्स रखता था। वही गद्दाफी को अपनी सुरक्षा के लिये बंदूकधारी महिला बाडीगार्ड रखने का शौक था। गद्दाफी की सनक या यू कहा जाये कि इस तानाशाह के खौफ और अय्याषी के कारण इन सभी 40 महिला सुरक्षाकर्मियो ने खुद को अजीवन कुंवारी रहने और गद्दाफी की रक्षा की खातिर अपनी जान तक निछावर कर देने की कसमे खार्इ हुर्इ थी।

लीबिया के रेगिस्तानी इलाके सिर्ते में 1942 में जन्मे मुहम्मद गद्दाफी ने महज 27 साल में ही लीबिया की सत्ता हथिया ली थी। शासक सुल्तान इद्रीस प्रथम का तख्ता पलटने के बाद वो देश की सत्ता पर काबिज हो गया था। सत्ता हासिल करने के लिये इस तानाशाह क्रूर शासक ने जहा 1969 में ”फ्री आफिसर्स मूवमेंट द्वारा सुल्तान इद्रीस का तख्ता पलटा वही लीबिया में लीबियन अरब रिपबिलकन की स्थापना की। इस के अलावा सत्ता में काबिज रहने के लिये अपने विद्रोहियो पर इस शासक ने कभी रहम नही किया। गद्दाफी शासन को टेडी नजर से देखने वालो और गद्दाफी द्वारा बनाये गये नियम कानूनो का उल्लंघन करने वाले हजारो लोगो को अपने शासनकाल में गिरफ्तार कर उन्हे मौत की सजा व क्रूर यातनाए देने के आरोप गद्दाफी पर उन के शासनकाल में बडी तादाद में लगे। वही बडी तादाद में गद्दाफी के विरोधी लापता होने के बाद कभी घर लौटे ही नही। गद्दाफी का खुद कहना था कि वो अपने विद्रोहियो को इंच इंच कर, गली गली, मोहल्लो मोहल्लो व घर घर में तलाश कर चुन चुन कर मरवाता है। ये सही है कि आज लोग तानाशाह हिटलर को भी याद करते है पर चार दशकों तक लीबिया जैसे मुल्क में शासन करने वाले इस क्रूर तानाशाह को इतिहास एक ऐसी शखिसयत के रूप में भी याद करेगा जिसने देश का तख्ता पलट तो समतावाद का नारा देकर किया था पर सत्ता के नशे में चूर होकर वो खुद पूंजीवाद और साम्यवाद की राजनीति में उलझ गया।

सत्ता में बने रहने के लिये के तानाशाह गद्दाफी ने अपने चालीस साल के राजनीतिक सफर में खूब जोड़तोड़ किया। इस ने लीबीया के जहा कर्इ मजबूत कबाइली संगठनो को अपनी तरफ मिलाया वही आर्थिक विशेषाधिकार से लेकर वैवाहिक गठबंधनो तक का सहारा लिया इस लिये ताकि आजादी और ताकत के साथ 60 लाख की आबादी वाले देश पर अपने दुष्मनो को मिटाकर आसानी से देश पर राज कर सके। गद्दाफी ने सत्ता में बने रहने के लिये लोगो को पुचकारने के साथ ही घमकाने और मौत के घाट उतारने तक से गुरेज नही किया। वही अरब देशों को जागृत करने का श्र्रेय अगर किसी को दिये जाये तो इस पंकित में सब से पहला नाम गद्दाफी का ही लिया जायेगा। मिस्र के शेख नासिर को अपना सियासी गुरू मानने वाले गद्दाफी ने ही अरबो को राष्ट्रवाद का नारा दिया। आज जो अरब मुल्क अपने तेल के कुओं के कारण मालामाल और ऐश कर रहे है दरअसल ये सारी की सारी अरब मुल्को को गद्दाफी की देन है। पिछले साल तक मानव विकास सूचकांग के मोरचे पर लीबीया अफ्रीकी देशों की सूची में शीर्ष पर था। लेकिन इन सब बातो से न तो गद्दाफी द्वारा किये गये अपराध कम हो सकते है और न ही गद्दाफी को उस के द्वारा देश की जनता और अपने विद्रोहियो पर की गर्इ क्रूरता को कम या मांफ किया जा सकता है और न ही उस के द्वारा देश में मानवधिकार हनन के किये गये कुकृत्यो की अन्देखी की जा सकती है। लीबीया का इतिहास गवाह है कि सद्दाम हुसैन के अमेरिका के शिकंजे में फंसने के बाद गद्दाफी ने पश्चिम के सामने हथियार डाले और अमेरिका का दोस्त बन गया। लेकिन अरब क्रान्ति के शुरू होने के साथ ही इस तानाशाह के अन्दर का शैतान जाग गया जिस के बाद अपने खिलाफ लोकतांत्रिक आंदोलन को दबाने के लिये इस क्रूर शासक ने अपनी फौज द्वारा महिलाओ के साथ सामूहिक बलात्कार जैसे घिनौने अमानुशिक हथियार तक का सहारा लिया।

फलस्तीन के बारे में गद्दाफी ने हमेशा झूठ बोला। वो फलस्तीन के लड़ाको को हथियार जरूर सप्लार्इ करता था पर इस के बदले वो एक मोटी रकम फलस्तीन से वसूलता था। इस के अलावा फलस्तीनियो के साथ उस के रिश्ते बहुत सावधानी भरे और ठंडे थें। वही गद्दाफी की दोस्ती अबू नदाल ग्रुप से थी जो कि निषिक्रय था। गद्दाफी जैसे क्रूर शासक की लीबीया में विद्रोहियो के हाथो मौत होने पर दुनिया मे कोर्इ जबरदस्त हलचल नही हुर्इ। पर इतना जरूर है कि जिस तानाशाह ने अपने बयालिस साल के शासन में कभी मानवधिकारो की परवाह नही की आज संयुक्त राष्ट्र मानवधिकार संघ उस कर्नल मुहम्मद गद्दाफी की मौत की परिसिथतियो की जाच कराने को कह रहा है। पर गद्दाफी की इस प्रकार हुर्इ क्रूर मौत पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि जिस व्यकित की सारी सफलता सिर्फ और सिर्फ ढोंग, पाखंड, घात प्रतिधात, धोखे से सत्ता हथियार्इ गर्इ हो और बयालिस सालो तक जिस देश की जनता और बच्चो ने अपने मा बाप भार्इ बहनो को अपनी आखो के सामने क्रूर तरीको से मरते देखा होगा उन लोगो ने गद्दाफी की मौत की कल्पना शायद कुछ ऐसी ही की होगी।

 

 

 

 

 

 

 

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