नकारात्मक सोच के साथ बसपा का मिशन-2017

बसपा
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मृत्युंजय दीक्षित
वर्ष 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए बहुजन समाज पार्टी ने भी अब अपनी तैयारियां नकारात्मक सोच के आधार पर धीरे- धीरे तेज कर दी हैं। वर्तमान समय में प्रदेश में जो राजनैतिक हालात बन रहे हैं उससे बसपा नेत्री मायावती को अपनी राह कुछ आसान लग रही है लेकिन वह इतनी असान है भी नहीं । यही कारण है कि बसपानेत्री मायावती अपनी राह को आसान बनाने के लिए संसद के अंदर और बाहर दलितों और अलपसंख्यकों से जुड़े हर मुददे को पूरी ताकत के साथ उठा रही हैं। जिस प्रकार से आरक्षण के मुददे को बिहार के चुनावों में बसपानेत्री मायावती ने उछाला भले ही वह व्यक्तिगत रूप से उसका लाभ न ले पायी होे लेकिन कम से कम आरक्षण के मुददे पर वह भारतीय जनता पार्टी को हराने में कामयाब रहीं। उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हालात कुछ अलग है।
यहां पर बसपा को समाजवादी पार्टी से मुकाबला तो करना ही है साथ ही साथ अब कांग्रेस भी दमखम के साथ मैदान में उतरती नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने भी तैयारियां प्रारम्भ कर दी हैं हालांकि अभी तक भाजपा 71 सांसद होने के बावजूद अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं दे पायी है। जिसका कुछ नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है। बसपा के लिए दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह आ जायेगी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सपा मुखिया मुलायम सिंह को बिहार में दगाबाजी करने के लिए सबक सिखाना चाहते हैं इसके लिए वह छोटे छोटे दलां के साथ गठजोड़ कर रहे हैं।कई छुटभैये व वोटकटवा दल भी चुनाव मैदान में अपनी जोर आजमाइशकरने करने की तैयारी कर रहे हैं। हैदराबाद के औवेशी भी अपनी पार्टी को पूरे दमखम के साथ मैदान में उतारने जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर इस बार के चुनावों में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। आम आदमी पार्टी के कारण भाजपा को कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है। बसपा भाजपा की कुछ कमजोरियों का लाभ उठाकर सत्ता प्राप्त करने की कोशिश कर रही है।
यही कारण है कि बसपा नेत्री मायावती अब पीएम मोदी और समाजवादी सरकार के खिलाफ बेहद आक्रामाक अंदाज में बोल रही हैं। दूसरी ओर प्रदेश की जनता सपा सरकार में लगातार बिगड़ रही कानून और व्यस्था से काफी नाराज है। समाजवादी सरकार की ओर से चलाये जा रहे विकास कार्यक्रमों भी अभी तक धरातल पर नहीं उतर पा रहे है। सरकारी तंत्र पर सरकार की पकड़ ढीली और अफसरशाही हावी है। जिसके कारण जनता को मायावती सरकार में चुस्त -दुरूस्त कानून व्यवस्था की एक बार फिर याद आने लग गयी है। जिसका लाभ बसपा नेत्री मायावती उठाने की फिराक में है। बसपानेत्री मायावती अपने संगठन को मजबूती देने में लगी है।
विगत दिनों राज्यसभा में रोहित प्रकरण पर उन्होनें कंेद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर तीखा हमला बोला और बाद में रोहित वेमुला की मां हैदराबाद से आयीं और बसपा नेत्री मायावती से मिलकर उनको धन्यवाद दिया। इसी प्रकार जब यह प्रकरण शांत हुआ तो आगरा में भाजपा सांसद व मंत्री रामशंकर कठोरिया के बयान पर हल्लाबोल दिया। हालांकि उनकी बयानबाजी के कारण जनता उनके प्रति आकर्षित नहीं हो पा रही है। बसपा नेत्री मायावती मांग कर ही हैं कि आगरा में मंत्री ने जो भाषण दिया है उसके चलते रामशंकर कठोरियों को बर्खास्त किया जाये और उनको जेल भेजा जाये। उधर बसपा नेत्री मायावती के बयान से नाराज मंत्री कठोरिया ने बयान दिया कि आगरा में 25 फरवीर को एक गौभक्त दलित की हत्या हुई और 12 फरवरी को सत्येंद्र जाटव की हत्या हुई लेकिन वह चुप रहीं । दरअसल वह दलितों की ठेकेदार बनकर दलित वांेटों का सौदा करती हैं।बसपा नेत्री मायावती आजकल पी एम मोदी व भाजपा के दलितों व पिछड़ों के प्रति प्रेम दर्शाने के कारण भी आशंकित हो रही हैं कि कहीं भाजपा उनके वोटबैंक में सेंध न लागा दे। विगत दिनों पीएम मेादी ने संत रविदास जयंती के अवसर पर वाराणसी मंें संत रविदास के मंदिर गये और वहां का प्रसाद चखा। लेकिन बसपा नेत्री मायावती ने इस बात पर भी तंज कस दिया ओर कहा कि संत रविदास के मंदिर जाने से कोई लाभ नहीं अपितु उनका अनुसरण करने से लाभ होगा। वहीं बसना नेत्री मायावती मान्यवर काशीराम की जयंती को एक बार फिर से भुनाने की तैयारी कर रही है। मान्यवर कांशीराम की जयंती के अवसर पर लखनऊ में एक बड़ा जमावड़ा करने जा रही है। इसके पीछे उनका यह तर्क हैे कि कहीं पिछडों का वोट पाने के लिये भाजपा मान्यवर कांशीराम को भारतरत्न न दे दे , इसका वे दलितों व पिछड़ों के बीच प्रचार भी कर ही हैं और अपने वोट बैंक से वादा कर रही हैं कि वह भाजपा के किसी भी प्रकार के भुलावे में न आये।वैसे भी भाजपा के तरकश में कई तीर छिपे हुये हैं जिसके कारण बसपा नेत्री मायावती में अपने वोटबैंक को बचाकर रखने की छटपटाहट साफ दिखलायी पड़ रही है।
इस बार के आम बजट मंे वित्तमंत्री अरूण जेटली ने कई बार अंबेडकर का नाम लिया वहीं दलितों व किसानोे के लिए कई ऐतिहासिक योजनाओं का ऐलान किया है। जिसके कारण बसपा नेत्री मायावती और अधिक हमलावार बजट को गांव, गरीब और किसान विरोधी बताकर बजट प्रस्तावों को बेहद निराशावादी बता रही है। बसपा नेत्री मायावती के पास विकास का कोई बुनियादी एजेंडा नहीं दिखलायी पड़ रहा है बस वह येनकोन प्रकारेण दलितों, पिछड़ों, अतिपिछडों व अल्पसंख्यकों को भड़काकर अपना सत्ता में वापसी का सुखद सपना देख रही हैं। बसपा नेत्री हर हाल में अपने वोटबैंक को सुरक्षित करना चाह रही हैं। वह ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ रही हैं जिसमें पीएम मोदी को दलित, पिछड़ा व अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप न लगाती हों। आगामी विधानसभा चुनावों में अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिये उन्होनें एक बहुत गहरी नयी चाल चली हैं जिसमें वह एक पुस्तिका छपवाने जा रही हैं जिसमें अल्पसंख्यकों को बताया जायेगा कि अयोध्या का विवादित स्थल रामजन्मभूमि हे ही नहीं वह तो बाबरी मस्जिद है। वहीं विवादित स्थल को गिराने के लिए कांग्रेस व भाजपा दोनांे ही जिम्मेदार हैं। बसपा यह भी वादा करने जा रही है कि अयोध्या में विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद केवल बसपा ही बनवा सकती है। इस योजना के सामने आने के बाद भाजपा व संघ के भी कान खड़ें हो गये हैं। बसपानेत्री मायावती इस बार एक बार फिर दलित ब्राहमण और मुस्लिम गठजोड़ को बनाकर उन्हीं लोगों को टिकट देना चाहती हैे।विगत चुनावों में राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि प्रदेश में मायावती सरकार का गठन ब्राहमणों के वोटबैंक के कारण संभव हो सका है। लेकिन इस बार यह इतना आसान नहीं होगा। एक बात और बसपा नेत्री मायावती आरक्षण समर्थकों का वोट पाने के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन का जो बिल लंबित उसको भी एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करने जा रही हंै। बसपा नेत्री मायावती अपनी राजनीति के तरकश के हर तीर को इस बार अपनाने जा रही हैं यह भी हो सकता है कि वह आगामी विधानसभा चुनावों में औवेशी की पार्टी एमवाईएम के साथ समझौता कर लें या फिर किसी महागठबंधन की उम्मीद जगी तो उसमें भीं शामिल हो सकती हैं । लेकिन अभी फिलहाल वह अकले जाने की तैयारी कर ही हं उन्हहें इस बार सत्त में वापसी का भरोसा है।

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  1. अभी तो कई करवटे बदली जाएँगी , इसलिए अभी कयास मात्र ही लगाये जा सकते हैं ,अभी तलवारें तन् ने में समय है , मुलायम भी अभी बाकि बचे तीर काम में लेंगे , कांग्रेस भी प्रशांत किशोरी का ला कर बड़े सपने देख रही है , पर मायावती के साथ दिक्क्त यह भी है कि गत पांच सैलून में वह निर्लिप्त सी ही रही हैं सिवाय किसी दलित मुद्दे पर सक्रीय होने के , इसलिए आम नागरिक के मन में फिर उन लोगों से कुछ नया देखने की इच्छा बलवती हो सकती है ,जिन को हटाये अरसा हो चुका है , इस प्रयास में कांग्रेस को अपनी भूमि बनाने में समय लगेगा , क्योंकि यह एक भुलंठित के खड़े हो कर लड़ने के समान होगा

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