तेजाब के हमले में घायल एक लड़की के दिल से निकली कुछ पंक्तियाँ
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चलो, फेक दिया सो फेक दिया
अब कसूर भी बता दो मेरा
तुम्हारा इजहार था
मेरा इंकार था
बस इतनी सी बात पर
फुख दिया तुमने चेहरा मेरा ।
गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था की
उसको मै समझ न सकी ।
अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम अपनाओगे मुझको ?
क्या अब अपना बनाओगे मुझको ?
क्या अब सहलाओगे मेरे चेहरे को ?
जिन पर अब फ़फ़ोले हैं
मेरी आँखों में आँखे डाल कर देखोगे ?
जो अब अंदर धस चुकी हैं ।
जिनकी पलके सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी ऊँगली मेरे गालो पर ?
जिन पर पड़े छले से अब पानी निकलता हैं,
हा शायद तुम कर लोगे….
तुम्हारा प्यार तो सुच्चा हैं न ?
अच्छा !
एक बात तो बताओ
ये ख्याल “तेजाब” का कहा से आया ?
क्या किसी ने तिम्हे बताया ?
या ज़ेहन में तुम्हारे खुद ही आया ।
अब कैसे महसूस करते हो तुम
मुझे जलाकर ?
गौराववित ??
या पहले से जायदा और भी मर्दाना,
तुम्हे पता हैं
सिर्फ मेरा चेहरा जाला हैं
जिस्म अभी पूरा बाकी हैं,
एक सलाह दू !
एक तेजाब का तालाब बनवाओ,
फिर उसमे मुझसे छलांग लगवाओ,
जब पूरी जल जाऊगी मै
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझ मैं….!
और गहरा और सच्चा होगा ।
एक दुआ हैं…….
अगले जन्म में
मै तुम्हरी बेटी बनू
और मुझे तुम जैसा आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे ।
तुम्हरी इस हरकत से मुझे और मेरे परिवार को कितना दर्द सहना पडा हैं ।
तब तुम समझा पाओगे ।
तुमने मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया हैं ।।
किसी को चोट पहुचना जितना आसन हैं
उतना ही मुस्किल हैं किसी की चोट पर मलहाम लगाना ।।
ऐसी हरकत करने वाले लोगो को मुह छिपाना चाहिए न की उन पीडिताओ को ।।
वैदिका गुप्ता
दोषी को आईना दिखाती इस भावोत्तेजक कविता को पढ़ कोई भी तेज़ाब फेंकने से पहले अपनी अंतरात्मा से जूझने को बाध्य हो कर ऐसे भयावह कृत्य को कभी नहीं कर पाएगा| समाज में ऐसे अपराधिक दुर्व्यवहार को हतोत्साहित करती कविता के लिए वैदिका गुप्ता को मेरा साधुवाद|
आपने इस पीड़ा को शब्दों में बयान करने का प्रयत्न किय है,पर क्या यह पीड़ा शब्दों में बयान किया जा सकता है? ऐसे आशिकों या किसी भी ऐसे जघन्य कृत्य करने वालों के लिए फांसी का प्रावधान क्यों नहीं है? क्या यह दुष्कृत्य किसी की हत्या से कम है ?