जल ही जीवन है .जीवन के लिए जरुरी यह अमृत पाताल के पैंदे में जा पहुंचा है .गर्मी के दस्तक ने ही पानी रूपी संकट से दो – चार होने के लिए मजबूर किया .बसंत का अंत क्या हुआ ,कंठ सूखने लगे .लगातार जल स्रोत कम हो रहे है .हमारा पानी के प्रति अति प्रेम ने अर्थात पानी के अति दोहन ने हालात को और भयावह बना दिया है .यह कटु सत्य है कि बिना पानी का पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व न के बराबर है .इस अमूल्य निधि को सहेज कर रखना हमारा कर्तव्य है .वैश्विक महाशक्ति बनने के हम दावे कर रहे है , पर दूसरी तरफ देश के ग्रामीण इलाकों में छोटे – छोटे बच्चे व महिलाएं मीलों सफ़र तय कर पानी लाने के लिए मजबूर हैं .आज इस जल संकट ने सूखाग्रस्त क्षेत्र के बहुसंख्यक बच्चों को स्कूलों से दूर कर दिया है .हालात इतने भयावह है कि जिन नन्हे हाथों में किताब व खिलौनें होने चाहियें ,उन हाथों में आज बाल्टी ,घड़ा व पानी एकत्र करने के बर्तन है .इस तपती दोपहरी में भी ये बच्चे कतारें लगाकर पानी लेने के लिए मजबूर हैं तभी तो योगिता रूपी 10 वर्ष की बालिका हसते खेलते हुए काल के गाल में समां गई.पानी कि समस्या से इस देश के 256 जिलों की 33 करोड़ से भी अधिक आबादी ग्रस्त हैं .केवल सूखा ही एक बड़ी समस्या नही है बल्कि शुद्ध पेयजल रूपी समस्या भी आज समाज नासूर बन कर सामने खड़ी है .बढ़ते निजीकरण ,औद्योगिक व मानवीय अपशिष्टों से शुद्ध पेयजल संकट और बढ़ा है .आज 10 करोड़ घरों में बच्चों को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है .इनमे से हर दूसरा बच्चा कुपोषित है .वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत में 21 फीसदी संक्रामक बीमारियाँ दूषित पानी की वजह से होती है .दूषित पानी में फ्लोराइड ,आर्सेनिक लेड (सीसा) और युरेनियम तक घुला है . इसी से आज बड़ी आबादी पेट के संक्रमण से लेकर कैंसर तक के चपेट में है .मराठवाड़ा से लेकर बुंदेलखंड होते हुए तेलंगाना वाया उड़ीसा तक सूखे ने बहुत ही भयावह स्थिति पैदा की है .इसके कारण जहाँ लातूर में पानी पर धारा 144 लगी है तो वहीं बुंदेलखंड में पुलिस के पहरे वहीं उड़ीसा में लोग पानी के तलाश में हाथों से गड्ढे खोद रहे है .
सूखे की सबसे ज्यादा मार मराठवाड़ा ने झेला है .पिछले साल अगस्त – सितम्बर में पड़े भयंकर सूखे से लोग अभी बाहर ही नही निकले थे कि फिर मार्च के पहले सप्ताह में ही फिर से सूखे ने दस्तक दे दी .मराठवाड़ा का सबसे ज्यादा प्रभावित जिला लातूर ,उस्मानावाद और बीड है .इस इलाके में इतना भयानक सूखा पहले कभी भी देखने को नही मिला था .हालाँकि लातूर इन सब में सबसे ज्यादा प्रभावित है .देश में अनाज के सबसे बड़े बजारों में से एक लातूर तालुका के 12 लाख निवासियों को नेताओं और स्थानीय प्रशासन के घोर लापरवाही तथा कुप्रबंधन की कीमत चुकानी पड़ रही है .प्रशासन को अच्छी तरह से पता था कि ख़राब मानसून की वजह से इलाके में जल संकट पैदा हो सकता है , लेकिन उसने पानी के रिसाव व चोरी को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नही किया गया .इतना ही नही पास के नागजिरी और साईं बैराजो में पानी संरक्षित करने की कोई कोशिश भी नही की गई .अगर पहले से इस तरह की कोशिश हुईं होती तो धानेगांव के लिए विकल्प हो सकते थे .इतना ही नही, प्रशासन गन्ना किसानो को बोरवेल से पानी का इस्तेमाल करने से भी नहीं रोक पाया .अगर प्रशासन ने आम लोगों के लिए बोरवेल का अधिग्रहण किया होता तो पानी कि इतनी जबरदस्त कमी नही हुई होती .यह स्थिति इसलिए और भयावह हो गई है क्योंकि धानेगांव बांध मार्च के तीसरे हफ्ते में ही पूरी तरह सूख गया .जिस क्षेत्र ने महराष्ट्र को दो – दो मुख्यमंत्रियों कि सौगात दी हो,उसकी ये दशा होगी किसी ने सोचा भी नही था. इसी बीच वैकल्पिक व्यवस्था के तहत धार्मिक शहर पंढरपुर से ट्रेन के जरिए पानी पहुचाने कि व्यवस्था की गई .ऐसे वैल्पिक प्रयोग को बुंदेलखंड के महोबा आदि क्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए सरकार ने हरी झंडी दे दी है.
अगर हम स्वस्छ पेयजल की आम जनता तक पहुँच पर नजर डाले तो हमें चौकाने वाले आकड़े देखने को मिलेगें.एक सर्वे के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के 18 फीसदी लोगों के पास शुद्ध पानी उपलब्ध है जबकि 41 फीसदी लोग मोबाईल फोन का प्रयोग करते है .लाख दावों के बाद भी अभी 20 फीसदी ऐसी गर्मीं आबादी है जो असुरक्षित जलस्रोतो पर निर्भर है .नेशनल सैम्पल सर्वे डाटा के निष्कर्षों के अनुसार 16 फीसदी ग्रामीण घरों तक ही पेयजल कनेक्शन है जबकि शहरो में यह आकड़ा बढ़कर 54 फीसदी है .केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रिय पेयजल मिशन के अनुसार 2017 तक 55 फीसदी ग्रामीण घरों तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है .
पानी की कमी को केवल आप प्यास तक ही सीमित नहीं रख सकते . यह आप के जेब को भी प्रभावित करेगा .पानी के कमी का असर कृषि उत्पादन पर तो पड़ता ही है, साथ ही यह रोजगार पर भी प्रभाव डालता है .आर्थिक विकास पर भी पानी कि अनुपलब्धता प्रभाव डालती है .इस साल विश्व जल दिवस पर यूनेस्को के द्वारा जरी कि गई जल – रोजगार गठजोड़ नामक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के तिन – चौथाई रोजगार पानी से सीधे तौर पर जुड़े हुए है.कार्बन डिस्क्लोजर प्रोजक्ट की रिपोर्ट के अनुसार अगले तीन साल में पानी की कमी से कई तरह के व्यवसाय प्रभावित होगे .वहीं 2015 में वर्ल्ड इकोनामिक फोरम ने पानी की कमी को अगले दशक का सबसे बड़ा खतरा बताया था .अंतर्राष्ट्रीय खाद्ध्य नीति शोध के अनुसार पानी की कमी से दुनिया भर की 45 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद पर खतरा हो जायेगा .विश्व में पानी पर लगभग 2.8 अरब रोजगार निर्भर है .इनमे से लगभग 1.7 अरब यानी लगभग 42 फीसदी रोजगारों की जीवन रेखा ही पानी है .यूनेष्को की रिपोर्ट के अनुसार इन रोजगारों में कृषि , मत्स्य और उर्जा उत्पादन शामिल हैं .
शहरी इलाको में 1990 के बाद पेयजल के मामले में पाइपलाइन के पानी की निर्भरता पर कमी आई हैं .ऐसे में परिशुद्ध (ट्रीटेड) पानी का चलन बढ़ा. शहरी कशेत्रों में बोतलबंद पानी को बेहतर स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाने लगा .इससे पानी के कारोबार के निजीकरण का रास्ता खुल गया.इन्ही कारणों से पानी के कार्पोरेटीकरण का तेजी से बढ़ रहा है .वर्ष 2013 में देश में बोतलबंद पानी का बाजार 60 अरब रूपये का रहा . अनुमान है कि 2018 तक यह 160 अरब रूपये का हो जाएगा.इस कारोबार की सालाना वृद्धि दर लगभग 22फीसदी है .पानी का कारोबार लागत व मुनाफे के हिसाब से बेहद आकर्षक है .लागत मामूली होने से कम्पनियों को जबरदस्त मुनाफा होता है लेकिन इसका खमियाजा आम लोगों को उठाना पड़ता है .कम्पनी पर्यावरण नियमो को तक पर रखकर अंधाधुंध तरीके से भूमिगत जल का दोहन करती है .अस्पष्ट सरकारी नीतियों के कारण कंपनिया पानी के रूप में एक ऐसे संसाधन को बेतहाशा निचोड़ रही है जिस पर पहला हक़ देश के नागरिको का है .
भारत में भूजल स्तर के नीचे जाने के दो प्रमुख कारण है .पहला,भूजल पर बहुत ज्यादा निर्भरता बढ़ना . दूसरा ,बारिश के पैटर्न में तेजी से बदलाव आना .अब मानसून कि अवधि कम होती जा रही है और बारिश होती भी है तो बहुत तीब्र .इसके कारण अधिकांश पानी बेकार बह जाता है .पहले बारिश की गति माडरेट रहती थी जिससे पानी रुकता था और जमीन में ज्यादा रिचार्ज होता था .भूजल का अत्यधिक दोहन भी घटते जलस्तर का एक कारण है .एक सर्वे के अनुसार पंजाब में सब्मसिर्बल के बढ़ाते प्रयोग के कारण 20 सेमी प्रति वर्ष जलस्तर घटता जा रहा है .1930 में देश का पहला ट्यूबवेल उत्तर प्रदेश में खोदा गया था ,1951 तक हमारे यहाँ मात्र 2500 ही ट्यूबवेल थे लेकिन सरकार के लोंन व सब्सिडी योजना के कारण 1996 में इनकी संख्या बढ़कर 40 लाख से ज्यादा हो गई .जो अपने आप में भयावह स्थिति पैदा करने के लिए काफी है .आज रेनवाटर हार्वेस्टिंग की सख्त जरूरत है .खासतौर पर शहरों में तो पानी रोकने का यही सबसे बड़ा जरिया है ,पर उस पर बहुत कम काम हो रहा है .बाहरी इलाकों गाँवो में तलाब ,झीलों और जोहड़ का फिर निर्माण करना होगा , क्योकि इनके जरिये ही अधिक गति से होने वाली बारिश को रोका जा सकता है ,जिससे भूजल रिचार्ज होगा .साथ ही जितना हो सके वेटलैंड की व्यवस्था होनी चाहिए .मध्यप्रदेश के झाबुआ (हाथीपावा पहाड़ी) में हलमा नामक एक अभियान आदिवासियों के द्वारा जल संग्रहण के लिए चलाया जा रहा है .इस अभियान के तहत लगभग 15 हजार जल संरचानाये बनाई जा चुकी है जिससे 40 करोड़ लिटर पानी जमीन की रगो तक पहुचने की संभावना है .इससे एकत्रित पानी से लगभग 50 लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है .
आज प्यासे आदमी और प्यासी धरती के पास पानी नही है .इस समय पानी रूपी समस्या से केवल मनुष्य ही नही अपितु पशु ,पक्षी और पेड़ –पौधें भी जूझ रहे है . बढ़ते जनसंख्या दबाव व सीमित होते पानी संसाधन के बीच आज हमारे पास बमुश्किल गुजारे लायक जल है ,लेकिन कल क्या होगा ………
नीतेश राय