भाजपा ने शिंदे को झुका लिया लेकिन काटजू बयान पर क़ायम!

इक़बाल हिंदुस्तानी

justice-katju राजनीतिक दल भी उदारता त्यागकर तानाशाह होते जा रहे हैं?

गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कांग्रेस के जयपुर शिविर में आतंकवाद को धर्म से जोड़कर जो कुछ कहा था उससे उठा विवाद तभी शांत हुआ जब उन्होंने अपने इस बयान को यह कहकर वापस ले लिया कि उनको इस पर खेद है। शिंदे ने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा और संघ कोई आतंकवादी शिविर नहीं चलाते हैं। उधर प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में जो कुछ कहा था, भाजपा के तमाम चीख़ने चिल्लाने के बावजूद उस पर कायम हैं। काटजू ने ना तो अपने बयान को वापस लिया और ना ही उस पर किसी तरह का खेद जताने की ज़हमत गवारा की। उधर सरकार ने काटजू को उनके पद से हटाने से ना केवल दो टूक मना कर दिया बल्कि कांग्रेस उनके पक्ष में खुलकर सामने आ गयी है।

यूपीए के कई मंत्रियों का दावा है कि काटजू भाजपा ही नहीं कांग्रेस की कई सरकारों के कामकाज को लेकर बेबाक टिप्पणी करते रहे हैं। पहले बात करते हैं शिंदे के हिंदू आतंकवाद और संघ परिवार द्वारा उसको दिये जा रहे प्रशिक्षण के आरोप की, जयपुर चिंतन शिविर में उन्होंने यह बयान इस दावे के साथ दिया था कि उनके पास इसके ठोस सबूत हैं। जब हंगामा मचा तो शिंदे ने ऐसे कोई सबूत पेश नहीं किये जिससे ना केवल कांग्रेस ने उनके इस विवादास्पद बयान से खुद को अलग कर लिया था बल्कि सेकुलर समझे जाने वाले जनता दल यू , समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने भी शिंदे के बयान को राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित और गैर ज़िम्मेदाराना ठहराया था।

शिंदे इस बयान पर अलग थलग पड़ गये थे लेकिन भाजपा द्वारा सड़कों पर उतरकर कड़ा विरोध दर्ज कराने के बावजूद वे तब तक इस पर अड़े रहे जब तक संसद का बजट सत्रा चलाने को भाजपा के सहयोग की ज़रूरत नहीं आ गयी। यह ठीक है कि शिंदे को बिना किसी ठोस सबूत के ऐसा बयान नहीं देना चाहिये था लेकिन जो भाजपा आज हिंदू आतंकवाद का आरोप लगने पर तिलमिला रही है, क्या वह कल तक इस्लामी आतंकवाद, मुस्लिम आतंकवाद, सिख आतंकवाद, और जेहादी आतंकवाद शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती रही है। यह ठीक है कि आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिये लेकिन समझौता एक्सप्रैस, मक्का मस्जिद और मालेगांव बम धमाकों के आरोप में जब साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल श्रीकांत पुरोहित को पकड़ा गया तो भाजपा और संघ परिवार ने दावा किया कि ये आतंकवादी हो ही नहीं सकते क्योंकि ये हिंदू हैं?

इसका मतलब तो यही हुआ कि केवल अल्पसंख्यक ही आतंकवादी होते हैं। इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता एल के आडवाणी यह दावा करते रहे हैं कि यह माना कि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं लेकिन जितने भी आतंकवादी पकड़े जाते हैं वे सब मुसलमान ही होते हैं। जाहिर है पहली बार आतंकवाद के आरोप में कुछ हिंदुओं के पकड़े जाने से भाजपा के इस दावे की पोल खुल रही थी कि हिंदू तो आतंकवादी हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं बम विस्फोट के आरोप में पकड़े गये आतंकवाद के इन हिंदू आरोपियों से भाजपा ने पूरी हमदर्दी जताई और इनकी रिहाई के लिये प्रधनमंत्री से मिलने के साथ जेल में भी इनसे मिलने जा चुके हैं। जब इनका मामला कोर्ट में विचाराधीन है तो भाजपा कैसे यह दावा कर सकती है कि ये लोग बेकसूर हैं और इनको तत्काल रिहा किया जाये, क्या भाजपा को देश की अदालतों पर ही विश्वास नहीं है।

जब यूपी में सपा सरकार ऐसे मुस्लिम नौजवानों को जेल से रिहा करने के प्रयास शुरू करती है जिनको बेकसूर होने के बावजूद पूछताछ के नाम पर सालों से पुलिस ने बंद कर रखा है तो भाजपा उनको बिना फैसला आये ही आतंकवादी बताकर जेल में बंद रखने की मांग करती है जबकि जांच आयोग अपनी रपट में इनको बेकसूर बता चुका है, जस्टिस आर डी नमेश ने 23 सितंबर 2007 को यूपी की विभिन्न अदालतों में हुए धमाकों की जांच रपट पेश कर दी है। इस रपट में बताया गया है कि एटीएस द्वारा गिरफ़तार आज़मगढ़ के हकीम तारिक़ क़ासमी और जौनपुर के खालिद मुजाहिद को पकड़ना सरासर गलत था। जस्टिस नमेश ने इन दोनों को बेकसूर बताया है। उन्होंने साथ ही एटीएस की इस कार्यवाही पर उसके खिलाफ कार्यवाही की मांग भी की है।

और जब प्रज्ञा, स्वामी और कर्नल आतंकवाद के आरोप में पकड़े जाते हैं तो उनको जांच पूरी होने से पहले ही बेकसूर बताकर रिहा करने की मांग करती है, इसका मतलब साफ है कि भाजपा किसी भी हिंदू के आतंकवादी ना होने और हर मुस्लिम के आतंकवादी होने की पूर्वाग्रह, पक्षपातपूर्ण और घृणा वाली साम्प्रदायिक सोच पर चल रही है। जहां तक पीसीआई के प्रेसीडेंट मार्कंडेय काटजू के लेख का सवाल है उन्होंने मोदी के बारे में जो कुछ कहा है वह अकाट्य रहस्य है। गोधरा में रामभक्तों की रेलबोगी का हादसा वास्तव में क्या था और कैसे हुआ यह आज तक साफ नहीं हो सका है। इस हादसे की रेल मंत्रालय और राज्य सरकार की जांच रिपोर्ट विरोधाभासी हैं। ऐसे ही गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका विवादास्पद थी यह बात केवल मुसलमान और सेकुलर हिंदू ही नहीं बल्कि मीडिया और अमेरिका, ब्रिटेन व यूरूप तक भी मानते रहे हैं।

इंग्लैंड ने तो दस साल बाद मोदी का बहिष्कार दंगों को दुर्भाग्यपूर्ण बताने पर ख़त्म कर भी दिया है लेकिन अमेरिका उनको 2002 के दंगों के लिये आज तक माफ करने के लिये तैयार नहीं है। जहां तक काटजू का यह कहना है कि मोदी अहंकारी, तानाशाह और साम्प्रदायिक हैं इसमें दो राय कहां है। गुजरात पहले से ही विकसित राज्य रहा है इसलिये उसके विकास का ढोल पीटना भी अतिश्योक्ति की सीमा तक चला जाता है। मोदी उद्योगपतियों, पूंजीपतियों और विदेशी निवेशकों के चहेते आज इसलिये बन गये हैं क्योंकि वह उनके एजेंट की तरह औने पौने दाम पर बिना शर्त सरकारी ज़मीन और मामूली ब्याज पर कर्ज लुटा रहे हैं। गुजरात के 57 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं यह सरकार का ही अधिकृत आंकड़ा है। इससे गुजरात के विकास की पोल खुल जाती है। काटजू बेबाक और दो टूक बोलते रहे हैं।

यह उनका मिज़ाज है। जब वे सुप्रीम कोर्ट के जज थे वे तब भी ऐसी ही टिप्पणी किया करते थे। तब भी उनको सरकारी वेतन ही मिलता था और आज भी सरकार ही वेतन दे रही है लेकिन तब कभी उनको नाराज़ करने का जोखिम भाजपा ने क्यों नहीं उठाया? वह आज भी कोई सामान्य सरकारी कर्मचारी नहीं हैं जो अनुशासन और नियम कानून के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित कर दिये जायें। यूपी की सरकार, बंगाल की ममता सरकार और महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार के बारे में भी वह समय समय पर सकारत्मक और नकारात्मक टिप्पणी कर चुके हैं। यह ठीक है कि रिटायरमेंट के बाद कुछ जज अनुकम्पा वाली नियुक्ति पाने के लिये सरकार को खुश करने की कोशिश करने लगते हैं लेकिन इसको रोकने के लिये जब एनडीए की भाजपा सरकार बनी थी तब संविधान संशोधन क्यों नहीं किया गया?

खुद अरुण जेटली ने ऐसे दो दर्जन जजों को सेवानिवृत्ति के बाद ऑब्लीगेटरी पद दिये थे। प्रैस कौंसिल एक स्वायत्त और संवैधानिक संस्था है, इसका मुखिया अपने विचार खुलकर व्यक्त करने के लिये आज़ाद है। भाजपा को चाहिये कि वह अपने रूख़ को उदार, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक बनाये वर्ना कैग विनोद राय को अपनी आलोचना के लिये आडे़ हाथ लेने वाली कांग्रेस और भाजपा में क्या अंतर है? दोगलापन, दो पैमान, कथनी करनी में अंतर और हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और अब नहीं चल सकते, यह बात भाजपा कान खोलकर सुन ले तो बेहतर है।

दूसरों पर जब तब्सिरा किया कीजिये,

आईना सामने रख लिया कीजिये।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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  1. कांग्रेस का जस्टिस (से.नि.)काटजू के पक्ष में खड़े होना लाजिमी था क्योंकि आखिर वो कांग्रेस का ही खेल तो खेल रहे हैं.पिछले दो सालों में जितने भारी भारी घोटाले केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली सर्कार ने किये हैं उनमे से किसी में भी काटजू साहब को कुछ गलत दिखाई नहीं दिया न ही आतंकवादियों के विस्फोट दिखाई देते हैं. और न ही कांग्रेसी सरकारों वाले राज्यों में हो रहे बड़े बड़े कांड उन्हें दीखते हैं.पांच साल हो गए हैं प्रज्ञा, कर्नल और स्वामी पर मुक़दमा चलते हुए, अभी तक सजा क्यों नहीं दिलाई गयी?अफजल को तो सुप्रीम कोर्ट से सजा मिलने के बाद भी साढ़े सात साल तक उसकी मेहमान नवाजी की गयी.और प्रज्ञा को जेल में केंसर हो गया है तो भी उसे इलाज के लिए पेरोल नहीं दिया जा रहा. क्यों?इक़बाल जी जरा सोचिये.

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