राजनीतिक एजेंडा सही मगर भावी राह अधिक दुष्कर

सिद्धार्थ शंकर गौतम

अरविंद केजरीवाल की नई राजनीतिक पार्टी का एजेंडा मंगलवार को देश के सामने आ गया है| हालांकि इस नए राजनीतिक दल के नाम को लेकर संशय बना हुआ है और संभवतः इसकी घोषणा नवम्बर माह में की जाएगी| केजरीवाल ने व्यवस्था से लड़ने और भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए राजनीति की राह को चुनकर बेशक हिम्मत दिखाई है पर आगे की उनकी संघर्ष यात्रा और कड़ी होने वाली है और काफी हद तक इसकी शुरुआत भी हो चुकी है| केजरीवाल के अहम सहयोगी कुमार विश्वास ने जहां राजनीति में आने से इंकार कर दिया है वहीं उनके अहम सहयोगी संजय सिंह ने कुमार विश्वास पर हमला बोलते हुए उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता पर ही प्रश्नचिंह लगा दिए हैं| राजनीतिक दल के गठन के पूर्व ही टीम अरविंद में वैचारिक संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि राजनीति करना और राजनीति में आना, दोनों में वृहद् अंतर है| इन सबसे इतर अन्ना हजारे ने भी अपने ताज़ा बयान में राजनीति को जमकर कोसा है| जहां तक केजरीवाल की प्रस्तावित राजनीतिक पार्टी के एजेंडे की बात है तो प्रथम दृष्टया इसमें वह सब कुछ है जिसके पक्ष में टीम अन्ना और स्वयं अरविंद अनशनरत हुए थे| एजेंडे के मुताबिक यह पार्टी नहीं क्रांति है। देश की जनता ने तय किया है कि अब राजनीतिक विकल्प देना ही होगा। हम राजनीति में सत्ता हासिल करने नहीं जा रहे हैं, बल्कि सत्ता के केंद्रों को ध्वस्त करके सत्ता सीधे जनता के हाथों में सौंपने जा रहे हैं। सीधे जनता का राज होगा। भ्रष्टाचार दूर करना होगा और इसके लिए नियंत्रण सीधे जनता के हाथों में देना होगा। महंगाई दूर करनी होगी, इसके लिए जनता मुख्य वस्तुओं को दाम तय करेगी। जनता की मर्जी से भूमि अधिग्रहण होगा। सबको अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं। राइट टू रिजेक्ट यानी मतदान करते समय किसी या सभी उम्मीदवारों को नामंजूर करने का अधिकार। राइट टू रिकॉल यानी जनता के पास चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार। किसानों को फसलों के उचित दाम दिलवाना। भ्रष्ट नेताओं को सज़ा देने की चाबी जनता के हाथ में होगी। चुनाव जीतने के बाद १० दिनों के अंदर जन लोकपाल कानून पारित कराया जाएगा। भ्रष्ट नेता चाहे किसी भी पार्टी का हो, जन लोकपाल में शिकायत करेगा तो दोषी पाए जाने पर छह महीने में जेल। प्रस्तावित पार्टी का कोई भी सांसद, विधायक लाल बत्ती या सरकारी बंगला नहीं लेगा।

 

उपरोक्त एजेंडे को देखने से तो प्रतीत होता है कि यदि ऐसा संभव हुआ तो देश में सही मायनों में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना होगी पर यह कार्य जितना सरल लगता है उतना ही अधिक दुष्कर भी है| सबसे पहले तो इसके उचित क्रियान्वयन की बात होगी जिसे यथार्थ के धरातल पर लाना अत्यंत कठिन है| फिर तमाम राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं यह साबित कर चुकी हैं कि देश में होने वाले अधिकाँश चुनावों में काले धन का इस्तेमाल व्यापक रूप से होने लगा है| ऐसे में केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवार धन का प्रबंध कहाँ से करेंगे? और यदि जनभागीदारी से इसकी व्यवस्था हो भी गई तो बिना स्वार्थ के कौन धनाढ्य व्यक्ति इन्हें धन मुहैया करवाएगा? फिर राजनीतिक अदावत के भारी पड़ने का खतरा तो केजरीवाल के समक्ष है ही| उससे भी बड़ी बात, उनकी टीम के बाकी सदस्य इस राजनीतिक एजेंडे को किस प्रकार लेंगे यह भी देखना होगा| केजरीवाल भले ही ईमानदार हों पर बाकी से इसकी उम्मीद करना अभी थोडा जल्दबाजी होगा| केजरीवाल लाख राजनीतिक शुचिता लाने का प्रयास कर रहे हों किन्तु निकट भविष्य में तो यह असंभव सा जान पड़ता है| हाँ, केजरीवाल का प्रयास अच्छा है पर इससे कुछ ख़ास उम्मीद नहीं बांधनी चाहिए| हाल फिलहाल तो जिस तरह अन्य राजनीतिक दल है उसी तरह केजरीवाल का दल भी दलों की संख्या को बढ़ाने का कार्य ही करेगा| वैसे भी इतिहास गवाह है कि आज तक जिसने भी राजनीतिक शुचिता और आदर्शों को लेकर राजनीतिक दल का गठन किया है उसे जनता ने ही नकार दिया है| दरअसल दोष अब हमारी राजनीतिक व्यवस्था का नहीं अपितु उस सोच का है जिसमें यह बात घर कर गई है कि ऐसा तो होना ही है या इसे कौन रोक सकता है| जब तक जनता अपनी सोच का दायरा नहीं बढ़ाएगी, नए राजनीतिक दल के लिए राह मुश्किल ही होगी| अव्वल तो अब देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल अपने इस प्रस्तावित राजनीति एजेंडे को कितनी तन्मयता और ईमानदारी से आगे बढाते हैं क्योंकि उनके लिए आगे की राह तो अब अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी दूसरे केजरीवाल के राजनीतिक विकल्प को लेकर अन्ना हजारे का भावी कदम क्या होगा इस पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा| लिहाजा कथित रामराज की उम्मीद बेमानी ही है

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

1 COMMENT

  1. सिद्धार्थ शंकर गौतम जी,आपने केजरीवाल के बनने वाले दल के मसौदे का अच्छा विश्लेषण किया है,पर आप जैसा युवक जब ऐसा सोचता है कि ऐसा तो कभी नहीं हुआ,इसलिए यह कैसे संभव है? तो मेरे जैसे बुजुर्गों को यह सोचना पड़ता है कि हम क्यों भूल जाते हैं कि मानवता के सम्पूर्ण विकास की कहानी उसी दुस्साहस का परिणाम है,जिस पर ये मुट्ठी भर युवक चल पड़े हैं..इन्होने तो कुछ नया भी नहीं कहा है.ये तो वही कह रहे हैं ,जिसकी शिक्षा हमें सदियों से दी जाती रही है .यही तो स्वप्न था उस अधनंगे फकीर का जो देश की आजादी का मतलब केवल सत्ता परिवर्तन नहीं समझता था..वही तो स्वप्न था उस पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जो अन्तोदय का पाठ पढाने आया था..इन लोगों का जो यह मसौदा है,वह कहाँ अलग है,उन स्वप्न दर्शियों से?.अभी गाँव का वह व्यक्ति जिसे आजादी दो वक्त की रोटी भी नहीं दे सका है,उसी मसीहा की बाट जोह रहा है,जो उसके लिए जीने का पथ दिखा सके.अगर ये कुछ सिरफिरे उस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं ,तो हम यह क्यों सोचने लगे हैं कि आज के हालात में यह कैसे संभव है.अन्ना के अगस्त वाले अनशन के समय मैंने लोगों की आँखों में आशा की एक किरण देखी थी.उनकी आँखों में मुझे एक सपने का दर्शन हुआ था.लोगों को लगने लगा था कि अब बदलाव आकर रहेगा.ये चंद लोग जिनको अपने आप पर विश्वास है और जिन्हें विश्वास है ,उस आम जनता पर जिसके नाम की टोपी वे धारण किये हुए हैं कि यह संभव है. तो हम सब क्यों न वैसा ही सोचे कि हाँ यह संभव है और उनको केवल प्रोत्साहित ही नहीं करे, बल्कि उनके साथ कदम से कदम मिला कर चले और दिखा दुनिया को भारत की वह संस्कृति अभी भी जिन्दा है,जिसके बल पर हम विश्व के सिरमौर समझे जाते थे?हम क्यों न दिखा दे दुनिया को कि भारत में भ्रष्टाचार केवल एक दू:स्वप्न था और हम लोग उसको बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. अगर हम सब लोग वही सोचने लगे जो यह युवकों का समूह सोच रहा है तो यह असम्भव भी संभव हो सकता है.सिद्धार्थ जी, वैसे तो इतिहास गवाह है कि हर नई शुरुआत को लोगों ने शक की निगाह से देखा है पर वही नयी शुरुआत आगे के लिए पथ प्रदर्शक बना है.यहाँ तो ऐसे भी कुछ नया नहीं हैये लोग तो सच पूछिए तो केवल हमें जगा रहे हैं .हमें याद दिला रहे हैं की यही तो हमारे संस्कृति का आधार है .हम क्यों इसे भूल गए?
    , याद रखने की बात यह भी है किं आज तक विकास उसी विश्वास के बल पर हुआ है,जिसे कुछ धारा के विरुद्ध तैरने वाले सर फिरों ने अपने सर पर कफ़न बाँध कर पैदा की है.

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