पंहुचे हम कुमाऊँ खण्ड,
उत्तराखण्ड का सुन्दर अंग,
चढ़ाई हुई अब आरंभ।
नैनीताल के रस्ते मे,
जब देखा विशाल भीमताल,
भीमताल है इतना सुन्दर तो,
कैसा होगा नैनीताल!
नैनी झील के चारों ओर,
बसा है नैनीताल।
पर्यटकों का सर्वाधिक रुचिकर है,
कुमाऊँ का ये स्थान।
प्रत्यूषकाल मे,
सूरज की किणों का विस्तार,
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
होता है नौका विहार।
पहाड़ों की रौशनी ,
की छाया का हुआ
झील मे विस्तार,
जैसे किसी चित्रकार की कल्पना,
हो गई साकर।
जल पर तरंगें रौशनी और अंधेरे के बीच,
झिलमिलाती है ,
रात्रि का दृष्य,
अति मोहक और मनोहर,
मन को ही बाँधता है।
नैनैताल की मोमबत्तियाँ हैं प्रसिद्ध,
विभिन्न आकृतियो को मोम मे ढाल,
पल, फूल, मूर्तियों के अनेक रूप,
ख़शबूदार मोम बत्तियों की है बहार।
रानीखेत भी ,
अति सुन्दर है स्थान,
छावनी के दृष्य सुहाने,
देश का है मान।
हरी घास से भरे,
देखे पहाड़ी चरागाह,
यहाँ विचरते पशु भी करते,
प्रकृति का सम्मान।
कौसानी भी है एक,
अति विशिष्ठ स्थान,
हिमाच्छादित शिखरों के दर्शन,
होते हैं घाटी से।
दूर दूर तक हिम श्रंखलाओं का,
यहाँ पर विस्तार,
दृष्य है ये दिव्य और अद्भुत,
प्रकृति का वरदान।
कभी कभी बावले बादल,
डालने लगते हैं,
दृष्टि मे व्यवधान।
प्रथम आरुषि सूर्य की,
जब पड़ी त्रिशूलपर्वत पर,
भ्रम हुआ किसी ज्वालामुखी का शिखर,
फट गया हो मानो भड़कर।
सूर्य किरण ने जैसे,
आग लगा दी हो हिम शिखर पर।
धीरे धीरे आग बुझी ,
फिर चाँदी से चमके,
हिम शिखरों के विस्तार।
कौसानी मै हैं कुछ चाय के बाग़ान,
कौसानी के शौलों का भी है बहुत मान।
कौसानी से वापसी मे,
देखा कोसी धाटी का विस्तार,
अठखेलियाँ करती उतरती नदी,
पहाड़ों के पार।
पहाड़ी ढ़लान पर ,
अल्मोड़ा शहर का फैलाव,
नीचे घाटी मे उतरती सीढ़ियाँ,
सीढ़ियों पर धान के खेतोंका फैलाव,
नीचे घाटी मे स्वच्छ मृदु,
कोसी नदी का प्रवाह।
कोसी नदी मानो हो,
अल्मोड़ा का प्राण।
धीरे धीरे उतरते उतरते,
हल्द्वानी से हुआ निकास।
पर यादों बसे रहेंगे कुमाऊँ के पहाड।