क्या इस गलती को सुधारा नहीं जा सकता ?

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राजीव गुप्ता

आज़ाद भारत के गुलाम लोग है हम ! हमारे लिए क्या चुनाव ? हम तो राज्य विधान सभा , स्थानीय निकाय और पंचायत यहाँ तक कि सहकारी संस्थाओं में भी कोई वोट नहीं डाल सकते क्योंकि हमें तो कोई वोटिंग आधिकार ही नहीं है ! आज भी हमारे बच्चों को जिन्होंने कश्मीर की सरजमीं पर जन्म लिया है , वो कश्मीरी नागरिकता से वंचित है ! उद्योग धंधे के लिए राज्य सरकार से कर्ज प्राप्त करने की बात तो छोडो हमारे बच्चे के लिए तो भारत सरकार के पैसो से चलने वाले मेडिकल, कृषि या इंजीनियरिंग कॉलेजों के दरवाजे भी बंद है , पर कश्मीर के दूसरे मजहब के लोगो के लिए पूरा सरकारी महकमा उनके स्वागत के लिए बाहें फैला कर रखता है ! हमें किसी मजहब से कोई शिकायत नहीं है बस शिकायत है ऊपर वाले से कि तूने हमें ऐसा दिन क्यों दिखाया ? क्या है हमारा दोष ? यही कि हम विभाजन के समय पकिस्तान से उजड़ कर कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानकर यहाँ आ कर बस गए ! परन्तु इतने वर्षों के बाद भी आज तक हम गुलामों से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर है ….! वोलवो बस की ऊपर वाली सीट पर लेटा हुआ मै दो व्यक्तियों की इन बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था ! इतने में जम्मू बस अड्डा आ गया और सब अपनी अपनी मंजिल की ओर चले गए ! कटरा जाने के लिए मै दूसरी बस का इंतज़ार करने लग गया परन्तु मै अपनी पूरी यात्रा में उन दोनों व्यक्तियों की वार्तालाप को भुला नहीं पाया ! बार बार एक ही शब्द मेरे मन मस्तिष्क को झझकोरता रहा कि ” आज़ाद भारत के गुलाम लोग है हम “…..! दिल्ली वापस आने पर मैंने उन व्यक्तियों की वार्तालाप की तह तक जाने का प्रयास किया ! दिल्ली के कई पुस्तकालय छान मारे अंत में एक पुस्तक मेरे हाथ लगी जिसमे पूरा कश्मीर का पूरा विवरण और विभाजन का इतिहास था ! इस बात को कई दिन हो गए और मै भी भूल गया था परन्तु वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला जी के द्वारा AFSPA ( सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम 1958 यानी अफस्पा ) हटाने के सन्दर्भ में दिए गए बयान को जब मैंने अखबारों में पढ़ा तो एक बार फिर मेरे मस्तिस्क उन दोनों व्यक्तियों का वार्तालाप एक दम याद आ गया !

 

 

 

एक लेख में मैंने पढ़ा कि अगर हम अफस्पा कानून यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की बात करें तो ये कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वो क्षेत्र वहा की राज्य सरकार द्वारा अशांत घोषित कर दिया जाता है ! अब कोई क्षेत्र अशांत है या नहीं ये भी उस राज्य का प्रशासन तय करता है ! इसके लिए संविधान में प्रावधान किया गया है और अशांत क्षेत्र कानून यानि डिस्टर्बड एरिया एक्ट (डीएए) मौजूद है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है ! जिस क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है वहाँ पर ही अफस्पा कानून लगाया जाता है और इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं ! राज्य पुलिस के अलावा संघ के सशस्त्र बल भी प्रशासन को सहायता प्रदान करते है ! सशस्त्र बलों का मतलब केवल सेना से ही नहीं है, बल्कि इनमें सीमा सुरक्षा बल, सीआरपीएफ, असम राइफल्स और आइटीबीपी जैसे संघ के कुछ अन्य सशस्त्र बल भी शामिल है ! जैसे ही किसी राज्य का समस्त भाग या फिर इसका कुछ हिस्सा अशांत घोषित किया जाता है, राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने को नागरिक प्रशासन और पुलिस की सहायता के लिए सशस्त्र बलों को बुला लिया जाता है ! सशस्त्र बल अपराध की जांच नहीं करते ! उनके जवान सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाने और इसमें बाधा पहुंचाने वालों को चेतावनी देने के बाद ही बल प्रयोग के लिए अधिकृत है ! वे किसी भी परिसर में जाकर तलाशी ले सकते है ! वे किसी भी ऐसे भवन को ध्वस्त कर सकते है जहां से सशस्त्र हमले किया जा रहे हों ! उन्हे किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार है और ये गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को नजदीकी पुलिस स्टेशन भी ले जा सकते है !

 

केंद्रीय सशस्त्र बलों को इस कानून के जरिए एकमात्र सुरक्षा यह प्रदान की गई है कि इसके तहत कार्य करने वाले किसी भी सुरक्षाकर्मी के खिलाफ केंद्रीय सरकार की अनुमति के बगैर कोई भी कानूनी या प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की जा सकती ! वर्तमान राज्यसभा के प्रतिपक्ष नेता श्री अरुण जेटली ने अपने एक लेख में लिखा है कि ” पिछले साल जब सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ मैं जम्मू-कश्मीर के दौरे पर पहुंचा था तो मुझे बताया गया था कि केंद्र सरकार के पास सशस्त्र बलों के खिलाफ ढाई हजार से अधिक शिकायतें लंबित पड़ी है ! ” इस प्रकार यह कहने में संकोच नहीं कि यह अधिनियम सुरक्षा बलों के जवानों को यह कवच प्रदान करता है कि केंद्रीय सरकार की अनुमति के बगैर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती, लेकिन केवल इस आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि इसका दुरुपयोग हो रहा है ! अगर यह सुरक्षा हटा ली जाती है तो राजनीतिक निहित स्वार्थो के कारण अर्द्ध सैनिक बलों और सशस्त्र बलों के जवानों के खिलाफ अनेक मामले दर्ज कर लिए जाएंगे ! जाहिर है, इससे इन सुरक्षा बलों के जवानों का अलगाववादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने का मनोबल टूट जाएगा !

 

अफस्पा हटाना सही है या नहीं, अफस्पा हटेगा या नहीं ये इतना महत्वपूर्ण नहीं है ! महत्वपूर्ण यह है कि मौजूदा सरकार यह घोषित करे कि यह क्षेत्र अब अन्य राज्यों की तरह एक शांत राज्य है यहाँ किसी प्रकार की कोई अशांति नहीं है , सरकार के इस घोषणा के साथ ही इस क्षेत्र में अफस्पा अपना दम तोड़ देगा और सेना बार्डर पर चली जायेगी ! परन्तु कश्मीर का इतिहास यही है कि सब राजनेता राजनीति में अपने कद को चमकाने के लिए देश को ऐसे विश्वासघाती बयान देते आये है ! इतिहास साक्षी है कि किस प्रकार स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा मुख्यतः चार विश्वासघात (१. बेवजह जनमत संग्रह की बात करना , २.बेवजह संयुक्त राष्ट्र संघ में फ़रियाद लेकर जाना , ३.एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा , ४. धारा ३७० लागू करना ) देश के साथ किये गए ! अगर हम यूं कहे कि ” घर को आग लग गयी घर के ही चिराग से ” तो कोई अतिश्योक्ति न होगी ! यह कहावत पंडित नेहरू पर बिलकुल ठीक – ठीक बैठती है ! श्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार इसलिए ठहराया जाता है क्योंकि वो तत्कालीन देश के मुखिया अर्थात प्रधानमंत्री थे ! परिणामतः उनके द्वारा लिया गया हर निर्णय देश को प्रभावित करता था इसलिए जम्मू – कश्मीर के विषय में उनके द्वारा लिए गए गलत निर्णय के कारण भारत को ऐसा दर्द मिला जिसे आज प्रत्येक भारतीय भुगत रहा है , और पकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं को आज भी दर – दर भटकना पड़ रहा है ! लेकिन अब तक गंगा-यमुना में बहुत पानी बह गया ! आज का हर युवा अतीत के कुंठाओं से निकलकर सिर्फ यही जानना चाहता है कि क्या उन अदूरदर्शी प्रधानमंत्री के इस भयंकर गलती को सुधारा नहीं जा सकता ? जिस समस्या को राजनेताओ द्वारा सुलझाना चाहिए वो अफ्स्पा हटाने की बात कर देश को बरगलाने की कोशिश तो करते है परन्तु राज्य को शांत राज्य नहीं घोषित करते ! सिर्फ बयानबाजी कर अपनी मात्र राजनैतिक रोटियां ही सेकते है ! ऐसे में अब समय आ गया है पूरे देश को मिलकर इस नासूर रूपी बीमारी से जात पाने के लिए हल ढूँढा जाय !

 

 

 

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