ऑटिज्म से हार बर्दाश्त नहीं

आपने अपने इर्द-गिर्द ऐसे बच्चे या व्यक्ति को देखा होगा, जो स्वयं में लीन रहते है। यदि नहीं तो आपने ‘तारे जमीं पर’, ‘कोई मिल गया’, माई नेम इज खान जैसे फिल्मों में इसके दृश्य अवश्य देखे होंगे। ऐसे बच्चों के आस-पास क्या हो रहा होता है, उससे उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। इसका मतलब समझ जाएं कि ऐसा बच्चा ‘ऑटिज्म’ से ग्रसित है। ऑटज्म का अर्थ होता है स्वलीनता, स्वपरायणता या आत्मविमोह। यह विकास संबंधी एक मानिसक रोग है जिसका लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (प्रथम तीन वर्षों) में नजर आने लगता है। इससे प्रभावित व्यक्ति एक ही काम को बार-बार दोहराता है। ऑटिज्म के बारे में जागरूकता को बढ़ाने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल के दिन को विश्व स्वपरायणता जागरूकता दिवस घोषित किया था। इस दिवस के माध्यम से ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्ति के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं। इसके जरिए उन्हें सार्थक जीवन जीने के लिए सहायता प्रदान की जाती है।

ऑटिज्म जीवनपर्यंत बना रहने वाला एक ऐसा विकार है जिससे सबसे अधिक लड़का ही प्रभावित होता है। पुरुषों में ऑटिज्म अधिक होने का ठोस कारण अब तक सामने नहीं आ पाया है, जिस पर शोध जारी है। आंकड़े यह बयां करता है कि यह विकार विकास संबंधी विकारों में तीसरा स्थान रखता है। सन् 2010 तक दुनिया की लगभग 7 करोड़ आबादी इस विकार से प्रभावित थी। भारत में ही लगभग एक करोड़ से अधिक व्यक्ति ऑटिज्म से प्रभावित है जिनमें 80 प्रतिशत लड़के हैं। यह किसी भी सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, जाति अथवा धर्म आधारित समूह के बच्चे को हो सकता है।

ऑटिज्म दिमाग की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है और लोगों को वे क्या देख, सुन एवं अनुभव कर रहे हैं, उन्हें अच्छी तरह समझने से रोकता है, परिणामस्वरूप सामाजिक संबंधों, परस्पर बातचीत, संचार और व्यवहार में कठिनाईयां उत्पन्न होती है। इस विकार का मुख्य लक्षण जैसे- सामाजिक कुशलता व संप्रेषण का अभाव, किसी कार्य को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति तथा सीमित रूझान आदि है। इसक अलावा मन्द सामाजिक एवं सीखने की अक्षमता से लेकर गंभीर क्षीणता तक इसके लक्षण हो सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इससे पीड़ित व्यक्ति की शारीरिक संरचना में प्रत्यक्ष तौर पर कोई कमी नहीं होती और अन्य सामान्य व्यक्तियों जैसी ही होती है। ऑटिज्म एक जटिल व्यवस्था है। यदि किसी अभिभावक को अपने बच्चे पर इस बीमारी को लेकर थोड़ा सा भी शक हो तो उन्हंे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। बच्चे के बड़े होने या उसके निदान होने तक प्रतीक्षा न करें।

चूंकि ऑटिज्म किस कारण से होता है, अभी ज्ञात नहीं है और शोध जारी है। लेकिन अभी तक शोधों के जरिए इतना ज्ञात हो सका है कि ऑटिज्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि मस्तिष्क की गतिविधियों व मस्तिष्क के रसायनों में असमान्यता होना और जन्म से पहले बच्चे का विकास सामान्य रूप से न हो पाना। यह याद रखने वाली बात है कि इस बीमारी की जल्द से जल्द की गई पहचान व मनोचिकित्सक से तुरंत सलाह-परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। यह एक आजीवन रहने वाली विकार है इसलिए इसके पूर्ण इलाज के लिए यहां-वहां भटक कर समय बरबाद नहीं करना चाहिए और यथाशीघ्र मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। वहीं इससे पीड़ित व्यक्ति व परिवार को हिम्मत हारना नहीं चाहिए। उन्हें समझना होगा कि ऑटिज्म से प्रभावित बच्चा सीख सकता है व उन्नति कर सकता है। इसके लिए इससे संबंध विद्यालयों व संस्थाओं से संपर्क कर अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के प्रति सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है, तभी जाकर ऑटिज्म की हार होगी और हमारी विजय।

–निर्भय कर्ण

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