घपले-घोटालों के चक्रव्यूह में फंसी केंद्र सरकार अपनी सियासी सेहत सुधारने की अचूक औषधि ढूंढ ली है। वह है नकद सब्सिडी योजना। यानी इस योजना के मुताबिक यूपीए सरकार नकद सब्सिडी सीधे जरुरतमंदों के खाते में डालेगी और बदले में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करेगी। सरकार की यह योजना सफल रही तो जरुरतमंदों को लाभ मिलने के साथ सरकार को अपनी छवि सुधारने में भी मदद मिलेगी। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार विशिष्ट पहचान पत्र यानी आधार कार्ड को आधार बनाने जा रही है। यानी आधार कार्ड के जरिए ही वह सब्सिडी की रकम लाभार्थियों के खाते में भेंजेगी।
चंद रोज पहले उदयपुर के एक समारोह में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने 21 करोड़वां आधार कार्ड जारी करते हुए उम्मीद जतायी कि इस कार्ड के जरिए सब्सिडी के नकद भुगतान से जरुरतमंदों को सीधे फायदा मिलेगा और बिचैलियों की भूमिका खत्म होगी। अच्छी बात यह है कि इस योजना को शक्ल देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति का गठन भी कर दिया गया है। योजना के मुताबिक जिन योजनाओं को आधार से जोड़ने की बात चल रही है उनमें मनरेगा, मुख्यमंत्री बीपीएल ग्रामीण आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा के तहत दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन योजना, आशा सहयोगिनी भुगतान और मुख्यमंत्री छात्रवृत्ति योजना शामिल है। इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और एलपीजी सिलेंडरों पर दी जा रही सब्सिडी को भी इस परिधि में लाने पर विचार हो रहा है। गौरतलब है कि 51 जिलों में बैंक खातों में मनरेगा की मजदूरी और वृद्धावस्था पेंशन भेजने की शुरुआत कर दी गयी है। सुखद पहलू यह है कि सरकार इस महत्वाकांक्षी योजना को विस्तार रुप देने से पहले कुछ विशेष क्षेत्रों में उसे आजमा भी चुकी है। यानी आधार कार्ड के जरिए वह जरुरतमंदों तक रसोई गैस, मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दी जाने वाली सब्सिडी को पहुंचाने में सफल रही है। इस प्रयोग से उत्साहित सरकार अब आधार कार्ड के बुनियाद पर करोड़ों जरुरतमंद लोगों के खाते में सब्सिडी की रकम पहुंचाने के लिए तैयार है। फिलहाल सरकार द्वारा तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक की सब्सिडी जरुरतमंद लोगों को दी जा रही है। एक आंकडें के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा डेढ़ करोड़ विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, दो करोड़ से ज्यादा बुजुर्गों को वृद्धापेंशन, तीन करोड़ परिवारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा और पांच करोड़ लोगों को मनरेगा की मजदूरी दी जा रही है। इसके अलावा सरकार एलपीजी सिलेंडरों पर भी भारी रियायत दे रही है। लेकिन विडंबना यह है कि इन योजनाओं में भ्रश्टाचार चरम पर है और जरुरतमंद लोगों को उसका समुचित लाभ नहीं मिल रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक 58 फीसदी सब्सिडी का दुरुपयोग हो रहा है। यानी जरुरतमंद लोगों तक उसका लाभ नहीं पहुंच रहा है। मनरेगा केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना है। योजना पर केंद्र सरकार कई हजार करोड़ खर्च कर रहा है। लेकिन योजना का अपेक्षित लाभ जरुरतमंद लोगों को नहीं मिल रहा है। कारण योजना पूरी तरह भ्रश्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान समेत देश के सभी राज्यों से मनरेगा योजना में व्याप्त भ्रश्टाचार की खबरें आए दिन सुर्खियां बन रही हैं। लेकिन त्रासदी यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें उस पर काबू पाने के बजाए एकदूसरे पर आरोप जड़ रही हैं। यह उचित नहीं है। मनरेगा कार्यक्रम का सही क्रियान्वयन हो इसके लिए राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाना चाहिए। लेकिन वे मनरेगा को केंद्र की योजना मान उदासीन बैठी हैं। उन्हें लगता है कि मनरेगा कि सफलता का सियासी लाभ केंद्र को मिलेगा इसलिए वे इसमें अनावष्यक अभिरुचि क्यों दिखाएं? इसी कुप्रवृत्ति का परिणाम है कि केंद्र की कई योजनाएं पानी मांग रही हैं। लेकिन अब जब केंद्र की कैष सब्सिडी योजना के तहत सब्सिडी का सीधा लाभ मनरेगा के लाभाथिर्यों के खाते में जाएगा तो वे शत-प्रतिशत लाभान्वित होंगे ही। साथ ही भ्रष्टाचार पर भी अंकुष लगेगा। मनरेगा योजना की तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की भी कम दुर्दषा नहीं है। यह योजना भी भ्रष्टाचार की शिकार बन चुकी है। 2008 में जारी योजना आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रणाली के माध्यम से सिर्फ 42 फीसदी अनाज ही लक्षित वर्ग तक पहुंच रहा है। यानी 58 फीसदी अनाज भ्रश्टाचारी डकार रहे हैं। देश में लगभग 5 लाख से अधिक राषन की दुकानें हैं। उनका काम अनाज को जरुरतमंदों तक पहुचाना है। लेकिन वे ऐसा न कर विचैलियों को लाभ पहुंचा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त सतर्कता आयोग ने भी खुलासा किया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भयंकर भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक आंकड़े के मुताबिक सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 28000 करोड़ रुपए खर्च करती है। लेकिन उसका आधा लाभ भी जरुरतमंदों को नहीं मिल रहा है। अगर सरकार इस योजना को भी कैष सब्सिडी नीति के दायरे में लाती है तो बुनियादी परिवर्तन की गुंजाइष बन सकती है। लेकिन संपूर्ण देश में इस योजना को क्रियान्वित करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। कारण लाभार्थियों को कैश सब्सिडी देने के लिए आधार कार्ड जरुरी है। जबकि अभी तक केवल 21 करोड़ लोगों को ही कार्ड दिया गया है। दूसरी ओर कुछ राज्य आधार कार्ड को लेकर अभी भी उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं। वे यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए आधार कार्ड को बुनियाद बनाए या राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीए को। उन्हें इस दुविधा से बाहर आना चाहिए। आधार कार्ड को गति दे रहे नंदन नीलेकणि ने दावा किया है कि अगले दो वर्शों में 60 करोड़ लोगों को आधार कार्ड वितरित कर दिया जाएगा। लेकिन राज्यों की निष्क्रियता को देखते हुए इस लक्ष्य को साधना आसान नहीं होगा। कैश सब्सिडी देने के लिए बैंकों को लाभार्थियों का पूरा ब्यौरा तैयार करना एक पेचीदा काम है। बैंकों के पास मानवीय संसाधन की कमी है। बोझ बढ़ने पर उन्हें मानवीय संसाधन बढ़ाने होंगे और शाखाओं का विस्तार करना होगा। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त धन की जरुरत पड़ेगी। वे धन कहां से लाएंगे? क्या सरकार उन्हें मदद देगी? दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार के लाख कोशिशों के बाद भी अभी तक मनरेगा के सभी मजदूरों को बैंकों से जोड़ा नहीं जा सका है। इस कारण उन्हें वाजिब मजदूरी भी नहीं मिल रही है। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि फिर सरकार किस तरह करोड़ों लाभार्थियों को सीधे कैश सब्सिडी देगी? दूसरी ओर कैश सब्सिडी की सफलता पर आशंका जताने के साथ उससे होने वाले नुकसान की भी बात उठ रही है। सवाल किया जा रहा है कि अगर इस योजना के जरिए खाद्य सब्सिडी दी गयी तो फिर राषन प्रणाली का क्या होगा। क्या एफसीआइ यानी फुड कारपोरेशन ऑफ इंडिया की भूमिका अप्रासंगिक नहीं हो जाएगी? आखिर वह किसके लिए अनाज खरीदेगा? मौंजू सवाल यह भी कि किसानों की उपज का एक बड़ा हिस्सा जो सरकार द्वारा क्रय किया जाता है उसका क्या होगा? जब सरकार जरुरतमंद लोगों को सब्सिडी देगी तो उसकी एजेंसिया कृषि उत्पादों को क्यों खरीदेंगी? फिर कृशि उत्पादों का क्या होगा? स्वाभाविक है जब किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलेगा तो वे अनाज का उत्पादन कम कर देंगे। ऐसी स्थिति में क्या देश में अनाज का संकट उत्पन नहीं होगा? क्या खाद्यान्न वस्तुओं की कीमतें नहीं बढ़ेगी? अगर देश में सूखा, बाढ और अकाल की स्थिति बनी तो सरकार उसका सामना कैसे करेगी? ऐसे ढेरों सवाल हैं जो कैश सब्सिडी दिए जाने को लेकर उठ रहे हैं। उचित यही होगा कि सरकार जरुरतमंदों को नगद सब्सिडी देने के साथ ही उससे उत्पन होने वाली समस्याओं पर भी गंभीरता से विचार करे।