कहां गई सुब्रत सहारा की ‘सेलीब्रिटी ब्रिगेड’…!

-तारकेश कुमार ओझा- sahara subrata-roy

 आसाराम बापू और सुब्रत राय सहारा के मामले में एक गजब की समानता देखी गई। वह यह कि अपने – अपने क्षेत्र के इन दोनों दिग्गजों पर जब कानून का शिकंजा कसना शुरू हुआ, तो दोनों ने पहले इसे काफी हल्के में लिया। उनके हाव – भाव से यही लगता रहा कि इनकी नजर में एेसी बातों का कोई महत्व नहीं है। उनके प्रताप से कानून की सारी कड़ाई धरी रह जाएगी। लेकिन कमाल देखिए कि एक बार ये कानून के शिकंजे में फंसे तो फिर इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता फिलहाल इन्हें या इनके कुनबे को नहीं सूझ रहा। कुछ एेसा ही हाल 1990 के दशक में फिल्म अभिनेता संजय दत्ता का रहा था। मुंबई दंगों के दौरान घर में अवैध असलहा रखने के मामले में कानून ने जब संजय को गिरफ्त में लेना शुरू किया, तब  शुरू में संजय बिल्कुल बेपरवाह नजर आते रहे। पुलिस, अदालत औऱ जेल आदि उन्हें किसी  फिल्म की शूटिंग जैसा लगता रहा। आज भी चैनलों पर कभी – कभी उस दौर के फुटेज दिखाई देते हैं, तो साफ नजर आता है कि तब के अपेक्षाकृत दुबले – पतले संजय दत्त किस तरह लापरवाही से इधर – उधर आ – जा रहे हैं। लेकिन सच्चाई सामने आते ही संजय का जो हाल हुआ उसने उनके बूढ़े पिता को काफी रुलाया। अब सहारा प्रकरण में सुब्रत राय सहारा का हश्र सचमुच हैरान करने वाला है। ताजा प्रकरण के जरिए ही कई चैनलों पर सुब्रत राय की शानदार पार्टियों के फुटेज चले, जिसमें फिल्म से लेकर राजनीति औऱ खेल से लेकर विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रतिष्टित हस्तियां उनकी पार्टी में शामिल होकर काफी गौरवान्वित नजर आई। इससे पहले दाऊद इब्राहिम की पार्टियों में भी एेसा नजारा देखा जा चुका है। बेशक सेलीब्रिटीज किसी के साथ एेसा रिश्ता खास तौर पर उपकृत होने के बाद ही बनाते हैं। अन्यथा देखा गया है कि जनजीवन में बेहद आत्मीयता व सम्मान के साथ सभा – समारोह में बुलाए जाने पर भी एेसे लोग किस तरह बात – बेबात नाक – भौं सिकोड़ते रहते हैं, औऱ पूरी उपस्थिति के दौरान एेसा साबित करते हैं कि उनके कार्यक्रम में उपस्थित होकर उन लोगों ने संबंधितों को अपना जीवन सुधारने का मौका दिया है। लेकिन निवेशकों का पैसा लौटाने के मामले में सुब्रत राय की गिरफ्तारी के बाद से यही  ब्रिगेड जिसमें से शत – प्रतिशत एेसी ही पृवत्ति के लोग शामिल हैं, बिल्कुल खामोश है। आज जब राय लगातार हिरासत में है, और उनके इस दुष्चक्र से बाहर निकलने की कोेई संभावना नजर नहीं आ रही है। लगता है सुब्रत राय की सेलीब्रिटी  ब्रिगेड ने उनसे दूरी बना कर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है। ताजा घटना भी चकाचौंध पसंद करने वालों के लिए एक सबक के समान है कि सेलीब्रिटीज किसी की नहीं होती। उसे सिर्फ पैसे औऱ पावर से मतलब होता है। यह जिसके पास होता है, सेलीब्रिटीज भी उन्हीं के बगल खड़े होना पसंद करते हैं। यह विडंबना गांव – कस्बे से लेकर राज्यों व देश तक समाज के हर क्षेत्र में फैली हुई है। सामान्य जीवन यापन में भी देखने को मिलता है कि किस तरह किसी के अचानक सफलता हासिल करने पर समाज के हर वर्ग के लोग उसके बगल खड़े होने में गर्व महसूस करते हैं। लेकिन किन्ही कारणों से उसके दुर्दिन शुरू होते ही लोग तत्काल उससे मुंह भी फेर लेते हैं। कथित सफलता के एेसे शिखर की सच्चाई शायद सुब्रत राय को अब तक समझ आ गई होगी। इससे बेहतर तो समाज के निचले स्तर के वे लोग जिन्हें मुसीबत में उनके जानने वाले यूं असहाय नहीं छोड़ते, और जितना संभव हो पाता है, उनका साथ निभाने का भरसक प्रयास करते हैं।
 
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तारकेश कुमार ओझा
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों में तारकेश कुमार ओझा का जन्म 25.09.1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। हालांकि पहले नाना और बाद में पिता की रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शुरू से वे पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर मे स्थायी रूप से बसे रहे। साप्ताहिक संडे मेल समेत अन्य समाचार पत्रों में शौकिया लेखन के बाद 1995 में उन्होंने दैनिक विश्वमित्र से पेशेवर पत्रकारिता की शुरूआत की। कोलकाता से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक महानगर तथा जमशदेपुर से प्रकाशित चमकता अाईना व प्रभात खबर को अपनी सेवाएं देने के बाद ओझा पिछले 9 सालों से दैनिक जागरण में उप संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

1 COMMENT

  1. Aap jaise pravakta hi kkhari baat se rubaru kara sakata hai
    dekha ek bhi cellebrity amitabh ke alava nahi bola

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