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हिन्दी की शताब्दियां - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
-आशुतोष फोन की घंटी बजी। दूसरी ओर हिन्दी के एक बड़े साहित्यकार थे। पहले वाक्य में उन्होंने मेरे हाल ही में लिखे गये एक लेख की प्रशंसा की। मेरे लिए यह प्रशंसा किसी पुरस्कार से कम न थी। लेकिन दूसरे ही वाक्य में मेरा उत्साह भंग हो चुका था। उन्होंने…