गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बनी ‘चुनौती’

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रमेश पाण्डेय
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छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) को लागू करने पर सर्व शिक्षा अभियान के तहत तीन वर्षों में 1.13 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इसके बावजूद कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए स्कूलों में 25 प्रतिशत सीट आरक्षित करना, अशक्त बच्चों को पढ़ाई के अवसर देना, शिक्षकों के रिक्त पदों को भरना, आधारभूत सुविधा मुहैया कराने के साथ गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा जैसे विषय अभी भी चुनौती बने हुए हैं। आरटीई लागू होने पर देशभर में कुल खर्च एवं लाभार्थियों की संख्या पर गौर करें तब 2010-11 में यह राशि प्रति छात्र 2384 रुपए थी जो 2011-12 में बढ़कर प्रति छात्र 2861 रुपए हो गई। स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2010-11 में आरटीई के मद में देशभर में 37.24 हजार करोड़ रुपए उपलब्ध कराए गए जिसमें से 31.35 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। इस अवधि में आरटीई के लाभार्थियों की संख्या 13 करोड़ 89 हजार 841 थी। 2011-12 में आरटीई के मद में 42.43 हजार करोड़ रुपए उपलब्ध कराए गए जबकि 37.83 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए। 2012-13 में आरटीई के मद में देशभर में 47.96 हजार करोड़ रुपए उपलब्ध कराए गए जिसमें से 44.08 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। एक रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 8 प्रतिशत स्कूलों ने ही छह से 14 वर्ष के बच्चों को निरूशुल्क शिक्षा का अधिकार के मापदंडों को पूरा किया है जबकि इसे लागू करने की सीमा करीब एक वर्ष पहले समाप्त हो गई। आरटीई फोरम की रिपोर्ट के अनुसार, नई कक्षाओं का निर्माण किया गया है, लेकिन स्कूलों में पढ़ने वाले 59.67 प्रतिशत बच्चों के समक्ष छात्र-शिक्षक अनुपात की समस्या है। शिकायत निपटारा तंत्र की स्थिति भी काफी खराब बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, आरटीई अधिनियम में कहा गया है कि देश के सभी शिक्षकों को साल 2015 तक प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, वहीं हकीकत यह है कि भारत में 6.6 लाख अप्रशिक्षित शिक्षक है और साढ़े पांच लाख पद रिक्त हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश के विभिन्न प्रदेशों में शिक्षकों के 19.84 लाख रिक्त पदों को भरने के लक्ष्य में से पिछले वर्ष सितंबर माह तक 14.34 लाख पदों को ही भरा जा सका, अर्थात करीब साढ़े पांच लाख शिक्षक पदों को अभी भरा जाना शेष है। पिछले वर्ष 30 सितंबर तक बिहार में वित्त वर्ष 2013-14 तक के लक्ष्य का 50 प्रतिशत हासिल किया जा सका था जबकि गुजरात में 53 प्रतिशत, दिल्ली में 54 प्रतिशत, झारखंड में 67 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में 69 प्रतिशत कार्य पूरा किया जा सका। देश के अनेक क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की स्थिति भी गंभीर बनी हुई है। कई दशकों से उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम संशोधित नहीं किए जाने का जिक्र करते हुए संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डीपी अग्रवाल ने हाल ही में कहा था कि देश में विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को नियमित रुप से उन्नत बनाने की जरुरत है। अग्रवाल ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों में एक या दो दशकों से पाठ्यक्रमों को संशोधित नहीं किया गया है और इन्हें बदलते समय के अनुरुप बनाया जाना चाहिए। स्पास्टिक सोसाइटी आफ इंडिया की अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद की सदस्य रही मिथू अलूर का कहना है कि योजनाओं एवं बजट में अशक्त बच्चों की परिभाषा को पूरी तरह से स्पष्ट किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कई बार परिभाषा स्पष्ट नहीं होने से लाभार्थियों को उपयुक्त लाभ नहीं मिल पाता है। अशक्त बच्चों के संबंध में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने एवं उन्हें बच्चों की जरुरतों के बारे में जागरुक बनाये जाने की जरुरत है। अलूर ने कहा कि अभिभावकों को भी स्कूलों में ऐसे बच्चों (अशक्त) के लिए सीट आरक्षित होने के प्रावधान की जानकारी दिये जाने की जरुरत है। आरटीई फोरम के संयोजक अंबरीश राय का कहना है कि चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो, किसी राज्य ने आरटीई पर पूरी तरह से अमल नहीं किया है। गुजरात में भी आरटीई पर अमल करने का प्रतिशत मात्र 14.4 प्रतिशत है। इंडस ऐक्शन और सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन के ताजा अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में 4 प्रतिशत से कम अभिभावकों को इस बात की जानकारी है कि निजी स्कूलों में आरटीई के तहत समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीट आरक्षित करने का प्रावधान है। देश के 31 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है जो लड़कियों के स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने का एक अहम कारण के रूप में सामने आया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2012-13 में देश के 69 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था है जो 2009-10 में 59 प्रतिशत थी। इस तरह देश के 31 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं है। हालांकि, 95 प्रतिशत स्कूलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध है।

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  1. भारत की तथाकथित सबसे महत्वपूर्ण कम्पनी रिलायंस टाउनशिप जामनगर ( गुजरात ) की ये घटना है जहाँ 25-25 सालों के अनुभव वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को बुरी तरह बेइज्जत करके निकाला जाता है क्योंकि वे हिंदी टीचर हैं, उनके बच्चों तक को अमानवीय यातनाएँ दी जाती हैं- शांति से बोर्ड परीक्षा भी नहीं देने दिया जाता है, वहाँ शिक्षा की गुणवत्ता क्या होगी मैथ टीचर मनोज परमार को इतना सताया जाता है कि स्कूल मीटिंग में उनका ब्रेन हैमरेज हो जाता है, फिजिक्स टीचर अकबर मुहम्मद तंग आकर स्कूल क्वार्टर में ही आत्म हत्या कर लेते हैं – – – – लिखित शिकायतों पर भी सभी सरकारी संस्थाएँ मौन हैं – – – – हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ जानवरों जैसा सलूक होता है, हिंदी दिवस ( 14 सितम्बर ) के दिन भी प्रात:कालीन सभा में माइक पर प्रिंसिपल बच्चों के मन में हिंदी तथा भारतीय सभ्यता और सस्कृति के खिलाफ जहर भरते हैं वो भी पाकिस्तानी बॉर्डर पर, महामहिम राष्ट्रपति-राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री महोदय के इंक्वायरी आदेश और मेरे अनेकों पत्र लिखने के बावजूद गुजरात सरकार मौन है – क्या ये देशभक्ति है ? ? ? ! ! !

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