आपदा की मार झेल चुके उत्तराखंड की सियासत मे एक बार फिर से भूचाल आने वाला है…आपदा प्रबंधन मे नाकाम रहे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की कुर्सी पर आपदा की गाज गिरने वाली है… सूत्रों की मानें तो कांग्रेस हाईकमान सूबे में नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी कर चुका है और कुछ दिनों में इसकी घोषणा हो सकती है… हालांकि नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही कांग्रेस के लिए अंदरूनी बगावत, जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव जैसी कई मुश्किलें फिर से खड़ी हो सकती हैं,…लिहाजा आलाकमान हर कदम फूंक फूंक कर रख रहा है
जून 2013 में आई भयंकर आपदा के बाद जिस तरह का रवैया मुख्यमंत्री बहुगुणा सरकार ने दिखाया…उससे आलाकमान बिल्कुल खुश नहीं है…आपदा प्रबंधन में सरकार के लचर रवैये और राहत कार्यों पर ध्यान देने से ज्यादा अपना महिमामंडन करने के अंदाज ने न सिर्फ बड़े नेताओं को नाराज किया बल्कि विपक्ष को भी हमलावर होने का मौका दे दिया… मुख्यमंत्री के हर छोटी बड़ी बात पर सोनिया के दरबार में हाजिरी देना भी उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठाने के लिए काफी है… कार्यकर्ता स्तर से भी बहुगुणा के खिलाफ नकारात्मक रिपोर्ट मिली है… दूसरी तरफ आगामी लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस लोगों के बीच ऐसा कोई माइनस प्वाइंट नहीं छोड़ना चाहती जिससे विपक्ष को सवाल उठाने का मौका मिले… लिहाजा हाईकमान ने उत्तराखंड मे नेतृत्व परिवर्तन का फैसला किया है… हाल ही में राज्य के प्रभारी जनार्दन द्विवेदी इस बारे में बड़े नेताओं से बातचीत कर चुके हैं… सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी ही नहीं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी नए चेहरा बिठाया जा सकता है…हालांकि कांग्रेस सीधे सीधे किसी उपचुनाव से बचना चाहती है…इसलिए उसका प्लान उतना ही उलझता जा रहा है
दरअसल सीएम के पद पर बहुगुणा विराजमान हैं तो प्रदेश अध्यक्ष के पद पर दलित नेता यशपाल आर्य काबिज हैं…पहाड़ की राजनीति में जातिगत समीकरण काफी मायने रखते हैं… पार्टी के रणनीतिकार चाहते हैं कि ठाकुर-ब्राह्मण-दलित समीकरण संतुलित रहें इसके लिए अब गद्दी किसी राजपूत चेहरे को सौंपी जाए… अगर मुख्यमंत्री बदलता है तो इस रेस में अब हरीश रावत सबसे आगे चल रहे हैं… लेकिन हरीश रावत को कमान मिलती है तो उन्हें हरिद्वार संसदीय सीट छोड़नी होगी…. 6 महीने के भीतर विधायकी का चुनाव भी लड़ना होगा और उनके लिए एक सीट भी खाली करनी होगी… इसलिए कांग्रेस हाईकमान फिलहाल किसी तरह के उपचुनाव नहीं चाहता… ऐसे में एक दूसरा विकल्प ये है कि सीएम की कुर्सी पर दावा करने वालों में इंदिरा हृदयेश का नाम बढ़ाया जाए… उत्तराखंड की सियासत में गढ़वाल और कुमाऊं को नेतृत्व दिए जाने का मुद्दा भी काफी समय से हावी रहा है… इंदिरा को कमान सौंपने से एक साथ जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण संतुलित हो जाएंगे… लेकिन कांग्रेस को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि अगर रावत को फिर से दरकिनार किया गया तो पार्टी के भीतर कुछ वैसी ही बगावत हो जाएगी जैसी मार्च 2012 में बहुगुणा की ताजपोशी के बाद हुई थी…
अब तक सभी मोर्चों पर फेल रहे मुख्यमंत्री बहुगुणा के साथ साथ प्रदेश अध्यक्ष की भी रिपोर्ट इतनी अच्छी नहीं है…पार्टी में समय समय पर उठे बगावती सुरों को दबाने में प्रदेश अध्यक्ष नाकाम रहे हैं… दूसरी तरफ राज्य प्रभारी जनार्दन द्विवेदी ने एक व्यक्ति एक पद की नीति को साफ कर दिया है… प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य फिलहाल कैबिनेट मंत्री भी हैं… अगर हाईकमान इस पोस्ट पर भी बदलाव चाहता है तो आर्य को दोनों में से एक पद छोड़ना होगा… लेकिन क्षेत्रीय समीकरणों को साधने के लिए उन्हें मंत्रीपद की बजाए पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए कहा जा सकता है…प्रदेश अध्यक्ष का पद भरने के लिए हाईकमान के पास सतपाल महाराज पहली पसंद हैं…सतपाल गढ़वाल से सांसद हैं जबकि उनकी पत्नी कुमाऊं से विधायक… इसलिए क्षेत्रीय समीकरण संतुलित करने में मदद मिल सकती है… लेकिन हरीश रावत के खेमे को इस पर एतराज हो सकता है… रावत खेमा यह दलील दे सकता है कि दलित नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया जाए…ऐसे में हरीश रावत के गुट की तरफ से प्रदीप टम्टा का नाम सामने आ सकता है… बहरहाल कांग्रेस अभी फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रही है…औऱ इस बात की संभावनाएं हैं कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद ही उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की कवायद होगी…