ह्रदय दीप मेरा ,
परिवर्तन का आगाज़ है ,
दीप को लहू दे रहा ऊर्जा ,
तन तपकर दे रहा है रोशनी ,
मन कर रहां ,
सच्ची विचारो का आह्वाहन ,
मानवीय समानता के लिए।
भूख से कराह रहा ,
समानता की प्यास है ,
आर्थिक उत्थान की
अभिलाषा है ,
कायनात के संग चलने की ,
सफ़र में बड़ी मुश्किलें है ,
पग-पग पर ]
बंटवारे के शूल खड़े है
हैम तो परिवर्तन के लिए ,
चल पड़े हैं.
कर रहे है हवन
जीवन के बसंत को
बस,
मानवीय समानता के लिए।
बुध्द ने यही कहा है
अप्पो दीप्पो भवः
बहुजन सुखाय का,
मंत्र दिया है
जरुरी है
मानवीय एकता के लिए
बुराईयो पर ,
हो गया काबू जिस दिन
धरती से मिट जायेगा
शोषण,उत्पीड़न और
वंचित का दमन भी
आओ परिवर्तन की मशाल
ह्रदय दीप से जलाये ,
मानवीय समानता के लिए ……
डॉ नन्द लाल भारती