बदलता ज़माना

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-मिलन सिन्हा- socialism

 

बैसाखियों पर चलनेवाले

दे रहे हैं लेक्चर

कैसे खुद अपने पैरों पर

खड़ा हुआ जाता है !

दूसरों का टांग खींच कर

आगे बढ़नेवाले

बता रहे हैं

आपका आचरण कैसा हो !

दूसरों के कंधों को

सीढ़ी बनाकर ऊपर उठने वाले

उपदेश दे रहे हैं !

कैसे आकाश की बुलंदियों को छुआ जाय !

बात – बात पर

थूककर चाटनेवाले

वचन निभाने का

वादा कर रहे हैं !

दूसरों का पद पूजन करके

पद प्राप्त करनेवाले

अब पद की मर्यादा का

महत्व समझा रहे हैं !

ज़माना बदलता है

ज़माना बदलेगा

ये  तो जानते थे हम

लेकिन इतना और ऐसा बदलेगा

ऐसा कहां सोचा था

ऐसा कब किसी ने कहा था !

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